बद्रीनाथ धाम में शीतकाल में 12 साधु करेंगे तपस्या, मान्यता है कि भगवान नारायण आज भी हैं यहां तपस्यारत
(शशि कोन्हेर) : शीतकाल के लिए कपाट बंद होने के बाद बदरीनाथ धाम में सुरक्षाकर्मियों के सिवा और कोई नजर नहीं आता। यहां तक कि ठंड से बचने के लिए परिंदे भी पलायन कर जाते हैं।
सर्दियों में तप करने के लिए रहता साधुओं का बसेरा
लेकिन, कम ही लोग जानते हैं कि बदरीशपुरी के बर्फ से ढके होने के बाद भी यहां शीतकाल में तप करने के लिए साधुओं का बसेरा रहता है। इस बार 12 साधुओं को शीतकाल के दौरान धाम में रहने की अनुमति मिली है।
देवर्षि नारद करते हैं भगवान बदरी नारायण की पूजा
मान्यता है कि शीतकाल में धाम के जनशून्य होने के कारण देवताओं के प्रतिनिधि देवर्षि नारद यहां भगवान बदरी नारायण की पूजा करते हैं। जबकि, वास्तविकता यह है कि कड़ाके की ठंड के बावजूद कपाटबंदी की अवधि में यहां साधु-संत साधनारत रहते हैं।
33 साधुओं ने मांगी थी धाम में रहने की अनुमति
उपजिलाधिकारी जोशीमठ कुमकुम जोशी ने बताया कि इस बार शीतकाल में साधना के लिए 33 साधुओं ने पुलिस-प्रशासन से धाम में रहने की अनुमति मांगी थी। लेकिन, पुलिस-प्रशासन ने सभी आवेदन और आवश्यक प्रपत्रों की जांच के बाद 12 को ही धाम में रहने की अनुमति दी है।
तप के पीछे शास्त्रीय मान्यता
स्कंद पुराण के केदारखंड के अनुसार, भगवान नारायण ने भी नर और नारायण रूप में बदरीनाथ धाम में तपस्या की थी। मान्यता है कि वे आज भी यहां पर तपस्यारत हैं। इसीलिए बदरीनाथ धाम को भू-वैकुंठ कहा गया है। मान्यता है कि यहां एक दिन तपस्या का फल 1000 दिन की तपस्या के समान है।
19 नवंबर को बंद हुए बदरीनाथ धाम के कपाट
बदरीनाथ धाम के कपाट 19 नवंबर को दोपहर बाद 3.35 बजे शीतकाल के लिए बंद हुए। इस दौरान पांच हजार से अधिक तीर्थ यात्रियों ने भगवान बदरी नारायण के दर्शन किए। चारधाम यात्रा ने इसी के साथ विधिवत रूप से विराम ले लिया। इस बार यात्रा सीजन में रिकार्ड 17 लाख 60 हजार 649 तीर्थयात्रियों ने भगवान नारायण के दर्शन किए।