छत्तीसगढ़बिलासपुर

एक-एक पैसे को तरस रहे नगर निगम के 70 वार्ड…स्मार्ट सिटी की सरासर पार्शलिटी…और इसै लेकर क्या कहती है… रामचरितमानस के सुंदरकांड की वो चौपाई…?

बिलासपुर। बिलासा की नगरी न्यायधानी बिलासपुर में स्मार्ट सिटी का काम “अंधा बांटे रेवड़ी-चिन्ह-चिन्ह आपन को देय”जैसा चल रहा है। स्मार्ट सिटी के कर्णधारों ने बिलासपुर के केवल कलेक्ट्रेट के आसपास के हिस्से, लिंक रोड में पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल के घर से सिविल लाइन तक, वेयर हाउस रोड और सिंधी कॉलोनी भक्त कंवर राम गेट से नेहरू नगर जाने वाली स्मार्ट सिटी रोड को ही बिलासपुर मान लिया है। और इतने ही इलाके में स्मार्ट सिटी के पैसों की बरसात हो रही है। सड़क नाली निर्माण के लिए एक एक पैसे को तरस रहे शहर के बाकी हिस्सों, वार्डों को स्मार्ट सिटी के कर्णधार शायद बिलासपुर की सीमा के बाहर मानते हैं।

उनके लिए स्मार्ट सिटी बस एक चौथाई लिंक रोड और नेहरू चौक से इधर-उधर के कुछ स्थानों तक ही सीमित है। जबडापारा, चांटीडीह, कतिया पारा मगरपारा कर्बला दयालबंद, लिंगियाडीह, गोंडपारा , खपरगंज, मसानगंज, दयालबंद के भीतरी मोहल्ले व चुचहियापारा, सरीखे मोहल्लों तथा सिरगिट्टी, तिफरा यदुनंदन नगर कोनी, बिरकोना,और बिजौर जैसे सहित हाल ही में शामिल हुए गांवों को बिलासपुर शहर और इसीलिए स्मार्ट सिटी परियोजना का हिस्सा नहीं माना जा रहा। स्मार्ट सिटी वालों की सोच शायद कुछ ऐसा ही है कि कलेक्ट्रेट के चारों तरफ लिंक रोड और सिंधी कॉलोनी नेहरू नगर स्मार्ट रोड तथा वेयर हाउस रोड सहित आसपास के क्षेत्रों को ही सजा संवार कर बिलासपुर को स्मार्ट सिटी का दर्जा दिलाया जा सकता है।

जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है। बिलासपुर स्मार्ट सिटी तभी बनेगा.. या तभी स्मार्ट कहा जाएगा.. जब इसके एक छोर उसलापुर से लेकर देवरीखुर्द तक और बिजौर से लेकर परसदा तक अर्थात, रेल लाइन और अरपा नदी के दोनों ओर बसे सभी वार्डों का मतलब ही बिलासपुर नगर निगम या बिलासपुर शहर हो चुका है। ऐसे में अधिकांश इलाकों को छोड़कर शहर के केवल 5-10 प्रतिशत इलाके की ही “डेंटिंग-पेंटिंग” कर बिलासपुर शहर को स्मार्ट सिटी का दर्जा नहीं दिलवाया जा सकता।

और ना ही इसे स्मार्ट सिटी कहा जा सकता है। जब तक पूरे शहर और उसके सभी मोहल्ले तथा इन सभी की सड़कों नालियों और साफ-सफाई का मुकम्मल इंतजाम नहीं किया जाता तब तक बिलासपुर को स्मार्ट नहीं कहा जा सकता। यदि बिलासपुर को इसे सरकारी फाइलों, दस्तावेजों के बाहर भी स्मार्ट सिटी कहलाना है।

तो पूरे शहर अर्थात नगर निगम के सीमा क्षेत्र की सूरत और सीरत दोनों ही बदलनी होगी। ऐसा ना कर केवल नेहरू चौक के आसपास के इलाकों की सजावट से बिलासपुर को स्मार्ट सिटी बनाने के मौजूदा घटिया इरादों पर रामचरितमानस के सुंदरकांड की यह चौपाई 100 फ़ीसदी सही उतरती है..जिसमें संत तुलसीदास ने लिखा है…

बसन हींन, नहीं सोह सुरारी, सब भूषण, भूसित नर-नारी

अर्थात, ऐसे लोग कतई शोभा नहीं देते। जिन्होंने आभूषण तो पूरे पहन रखे हैं लेकिन शरीर से वस्त्र नदारद है।

बिलासपुर स्मार्ट सिटी का काम भी कुछ ऐसा ही चल रहा है। शहर के कुछ हिस्सों को आभूषणों की तरह सजाया जा रहा है जबकि बाकी हिस्सों से फटे चिथड़े भी गायब हो रहे हैं। केवल कुछ इलाकों की डेंटिंग पेंटिंग से बिलासपुर को स्मार्ट सिटी का दर्जा नहीं दिया जा सकता। यह तभी संभव है जब निगम के उस पूरे इलाके का, बिना किसी पक्षपात अथवा पार्शलिटी के समान रूप से विकास और सौंदर्यकरण किया जाए जिसे हम सभी बीते कुछ सालों से…”हमर बिलासपुर” कहते आ रहे हैं।

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