बिलासपुर

कलेक्ट्रेट से कम्पोजिट बिल्डिंग जाने के लिए 75 लाख का फुट ओवर ब्रिज…..20-25 सीढ़ियां चढने-उतरने की बजाय सीधे शार्टकट सड़क पार करना ही अधिक पसंद करेंगे लोग..! कहीं रायपुर के स्काईवॉक जैसा ना हो जाए हाल

(शशि कोन्हेर) : बिलासपुर। ऐसा कहा जाता है कि बड़े-बड़े, लंबे-तगड़े,और भारी-भरकम इरादे पालने की बजाय छोटे-छोटे काम कर देना अधिक बुद्धिमानी के साथ व्यवहारिक माना जाता है। लेकिन बिलासपुर के साथ हमेशा से दुर्भाग्य यह रहा है कि यहां नाली- नाला, पानी निकासी…बेमौत मर चुकी सड़कों और सड़कों के गड्ढों को ठीक करने जैसे छोटे-मोटे काम करने की और कोई नहीं देखता। लिहाजा बरसों से यह समस्याएं नासूर की तरह जस की तस पड़ी हुई है। इनका निपटारा करने की बजाय अब आज के नेताओं को बड़ी-बड़ी योजनाएं ही नहीं वरन परियोजनाएं व प्रोजेक्ट जैसे शब्द अच्छे और लुभावने लगने लगे हैं। पता नहीं ऐसा आम जनता के हित में सोचा जाता है अथवा ठेकेदारों को सीधे-सीधे फायदा पहुंचाने के लिए ऐसी योजनाओं का निर्माण किया जाता है। यह बिलासपुर शहर का शास्वत और यक्ष प्रश्न है।

ताजा मामला कलेक्ट्रेट बिल्डिंग से पुरानी कम्पोजिट बिल्डिंग और कोर्ट कचहरी तक जाने के लिए सड़क के ऊपर एक फुट ओवर ब्रिज बनाने का है। कर्णधारों का मानना है कि कलेक्ट्रेट से लेकर, कम्पोजिट बिल्डिंग, टाउनहॉल और जिला न्यायालय तक सड़क पर भारी भीड़ भाड़ के कारण आम जनता को सड़क पार करने में काफी दिक्कत होती है। मतलब सड़क की भीड़ के कारण लोग कलेक्ट्रेट से पुरानी कम्पोजिट बिल्डिंग और जिला न्यायालय तक नहीं जा पा रहे हैं। अथवा उन्हें सड़क पार करने मैं काफी मुश्किल हो रही है। मोटर गाड़ियों की भीड़ के कारण सड़क पार करना उनके लिए जानलेवा हो गया है। इसलिए जिला कलेक्टर की अध्यक्षता में हुई बैठक में कलेक्ट्रेट से कंम्पोजिट बिल्डिंग और कोर्ट कचहरी आने जाने के लिए फुट ओवरब्रिज बनाने का फैसला किया गया है। इस पर 75 लाख रुपए खर्च होने की बात कही जा रही है।

जाहिर है कि इस फुट ओवर ब्रिज में ऊपर चढ़ने के लिए दोनो ओर कम से कम 20 से 25 सीढ़ियां तो बनानी ही पड़ेगी। अब आप जरा बताइए कि कलेक्ट्रेट से पुरानी कम्पोजिट बिल्डिंग अथवा नगर निगम के टाउन हाल या कोर्ट कचहरी जाने के लिए कौन सा शरीफ आदमी पहले फुट ओवर ब्रिज पर 20- 25 सीढी चढ़ेगा और फिर दूसरी ओर जाकर फिर से 20-25 सीढ़ियां उतरेगा। कस्बाई मानसिकता वाले महानगर की ओर बढ़ रहे बिलासपुर में कहीं भी आने-जाने अथवा सड़क पार करने के लिए आज भी लोगों की पहली पसंद “शॉर्टकट” ही है। और शॉर्टकट के इसी नशे के कारण लोग फुट ओवर ब्रिज बन जाने के बाद भी 20-25 सीढी ऊपर चढ़कर फुट ओवर ब्रिज के जरिए कलेक्ट्रेट से उस पार जाने की बजाए सीधे पैदल सड़क पार कर कंपोजिट बिल्डिंग, नगर निगम और कोर्ट कचहरी जाना ही पसंद करेंगे। इसलिए हमारे विचार से इस फुट ओवर ब्रिज पर 75 लाख रुपए स्वाहा करने के पहले इसकी विजिबिलिटी (संभावित व्यवहारिक उपयोगिता) को लेकर भी विचार किया जाना चाहिए। अन्यथा डर इसी बात का है कि पूरी तरह बन जाने के बावजूद लोग इसका उपयोग करने की बजाय सीधे शार्टकट सड़क पार करना अधिक पसंद करेंगे। और तब इस फुटओवर ब्रिज का हाल भी रायपुर के आधे अधूरे बने पड़े स्काई वॉक की तरह ही हो सकता है। रायपुर में भी स्काईवॉक का निर्माण पैदल चलने वाले लोगों को सड़क आर पार कराने के नाम पर किया गया था। लेकिन इस पूरी तरह अनुपयोगी परियोजना का हाल क्या है या किसी से छुपा नहीं है। एक नेक सलाह यह है कि कलेक्ट्रेट के सामने सड़क की भीड़भाड़ और मोटर गाड़ियों की आवाजाही को वेयरहाउस रोड समेत अन्य सड़कों से डायवर्ट कर कम किया जा सकता है। इससे सरकार के 75 लाख रुपए भी बचेंगे। और लोगों को कलेक्ट्रेट के सामने सड़क से होते हुए कंपोजिट बिल्डिंग अथवा कोर्ट कचहरी आना-जाना जानलेवा नहीं रहेगा। इसी तरह यह भी पता लगाना चाहिए कि अभी तक कलेक्ट्रेट और कंपोजिट बिल्डिंग या कोर्ट कचहरी तक जाने के लिए सड़क पार करने वाले लोगों में से कितनों के साथ दुर्घटनाएं हुई हैं। और साल भर में ऐसी दुर्घटनाओं में (अगर हुई हैं तो) कितने लोगों की जान गई है..अथवा गंभीर रूप से घायल हुए हैं। इति..!

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