जरा संभलकर चले कांग्रेस आलाकमान…. अब “गौरसा” और “बहरा” ये दो ही खेत बचे हैं उसके पास
(शशि कोन्हेर) : बिलासपुर – गांव का कोई नामी किसान पूरे खेत-खार बिकने के बाद भी यह कहते हुए मूछें ऐंठते घूमता है कि कि अभी तक उसके “गौरसा” और “बहरा” खेत उसी के पास हैं। छत्तीसगढ़ में, “गौरसा” और “बहरा” ऐसे उपजाऊ खेतों को कहा जाता है जहां भरपूर अकाल के समय में भी गुजर लायक धान हो ही जाता है।
लेकिन यदि किसान के हालात उससे “गौरसा”तथा “बहरा” ये दोनों खेत भी छीन लेते हैं..तब वह किसान कहीं का नहीं रह जाता। यहां यह बताने का आशय यह है कि कांग्रेस आलाकमान के पास भी तमाम चुनावी पराजयों के बावजूद अभी भी “गौरसा” और “बहरा” ये दो ही खेत बचे हुए हैं। छत्तीसगढ़ यदि, कांग्रेस आला कमान के लिए अभी “गौरसा” खेत की तरह है तो राजस्थान भी किसी “बहरा” से कम नहीं।
कांग्रेस पार्टी (आलाकमान) अपनी गलतियों, गलतफहमियां और भरोसेमंद लोगों की गलत सलाहों के कारण, एक के बाद एक विभिन्न प्रदेशों की सत्ता से बाहर होती जा रही है। अब उसकी सत्ता देश के केवल 2 राज्यों छत्तीसगढ़ और राजस्थान में बची हुई है। हालांकि कहने को महाराष्ट्र जैसे राज्यों में भी वह सत्ता की साझीदार है। पर, साझी के काम का कोई भरोसा नहीं होता। बाकी देश के दूसरे राज्यों में उसे एक के बाद एक चुनावी नाकामियों के बवण्डर झेलने पड़ रहे हैं। लेकिन जिस तरह पूरे खेत खार बेच चुका किसान, अपने पास बचे गौरसा और बहरा खेतों के दम पर एक बार फिर उठ खड़ा होता है।
उम्मीद की जानी चाहिए कि कांग्रेस आलाकमान अब सम्लकर चलेगा..फूंक फूंक कर पांव धरेगा। और दो गुना उत्साह जोश व हौसला लेकर अपने हालात सुधारने तथा
सियासती खेती-बाड़ी संभालने, बढ़ाने की अल्पकालीन योजना और निर्णायक रणनीति बनाएगा। अगर कांग्रेस आलाकमान ने ऐसा नजरिया नहीं अपनाया तो उसके “बहरा” और “गौरसा” भी एक एक कर उसके हाथ से निकल जाने का खतरा बढ़ सकता है।