बिलासपुर

सन्डे स्पेशल…. शशि कोन्हेर की कलम से : बहुत लोग फोन कर..मेरी “कोटवार बने दलाल” वाली खबर को गलत बता रहे…! जानिए क्यों…?साथ में देश के प्रथम राष्ट्रपति और पटवारी का मामला..!

बिलासपुर – पत्रकारिता के कई दशकों के मेरे अनुभव में यह शायद पहला मौका था जब लोकस्वर. पोर्टल पर मेरे द्वारा लिखी गई एक खबर के प्रसारित होते ही मेरे पास लगातार फोन आने लगे। इनमें कुछ फोन मेरे शुभचिंतकों के थे, तो कुछ मूर्धन्य पत्रकारों के और अधिकांश मुझे जानने वाले आम लोगों के। इन सभी का कहना था कि “गांवों में कोटवार बने दलाल पटवारी मालामाल”शीर्षक से आपने जो खबर लगाई है वह बुनियादी रूप से गलत है। ऐसा लगता है कि आपको जमीनी सचाई की कोई जानकारी नहीं है।

अपनी एक खबर पर लगातार इस तरह नेगेटिव फोन आने से मैं भी हैरत में रह गया। अधिकांश फोन करने वालों का कहना था कि आपको नामांतरण, सीमांकन, बटांकन, नई पर्ची का निर्माण और नंबर निकाल कर देना के लिए पटवारियों के द्वारा आजकल के तय किए गए रेट की कोई जानकारी नहीं है। दरअसल कोटवार बने दलाल.. और पटवारी मालामाल वाली इस खबर में मैंने बिलासपुर तहसील के एक गांव का हवाला देते हुए लिखा था कि वहां पटवारी 10-12 डिसमिल जमीन के नामांतरण के लिए पांच से ₹7000 मांग रहे हैं। इसी तरह मैंने खबर में नामांतरण सीमांकन, भाइयों में पर्ची अलग-अलग करने, नई पर्ची बनवाने के लिए पटवारियों द्वारा वसूल की जा रही रकम का जिक्र किया है।

कोटवार बने दलाल… पटवारी मालामाल

मेरी इस खबर को पढ़ने के बाद लोग फोन कर मुझसे कह रहे हैं कि.. आपको वसूली रेट की कोई जानकारी नहीं है। आप खबर में मात्र कुछ डिसमिल जमीन के नामांतरण के लिए पटवारी द्वारा 4 से 7000 मांगे जाने की बात कह रहे हैं। जबकि बिलासपुर के आसपास के गांव में मात्र 1000 वर्ग फुट जमीन के नामांतरण के लिए ही पटवारी 15 से 20000 रुपए नगद और वह भी एडवांस में ले रहे हैं। पैसे लेने के बाद भी 20 25 दिन बोनस में आपको उनके ऑफिस के चक्कर भी लगाने पड़ रहे हैं। किसी ने फोन कर कहा कि अब तो बिलासपुर में कुछ पटवारी जमीन की मार्केट वैल्यू के हिसाब से उसके नामांतरण सीमांकन के लिए लंबी रकम लेने लगे हैं। एक सज्जन ने कहा की जैसे कुछ कोटवारों को आपने पटवारी का दलाल बताया है वैसे ही कुछ पटवारी भी अपने ऊपर के अधिकारियों के कमीशन एजेंट का काम कर रहे हैं।

एक ने तो अपना आक्रोश जाहिर करते हुए यहां तक कह दिया कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और प्रदेश के किसनहा मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी जमीन के काम के लिए किसानों से वसूली जा रही रिश्वत खत्म नहीं करा पाए। इतने सारे फोन आने के बाद मुझे भी लगने लगा कि वास्तव में मुझे मौजूदा समय में जमीनी कामकाज यथा नामांतरण सीमांकन आदि के लिए हो रहे लेनदेन के रेट की कोई जानकारी नहीं है। हम अपने पुराने जमाने के रेट को ही पकड़े बैठे हैं। जबकि जमीन के कामकाज और लेनदेन का मामला अब आसमान तक जा पहुंचा है।

इस हालत पर पटवारियों की अहमियत पर मुझे बिहार में प्रचलित देश के प्रथम राष्ट्रपति स्वर्गीय राजेंद्र प्रसाद जी का एक किस्सा याद आ गया… स्वर्गीय राजेंद्र प्रसाद जी बचपन से काफी मेघावी थे। उनके गांव में एक वृद्धा उनके प्रति पुत्रवत् स्नेह किया करती थी। उसे उम्मीद थी कि पढ़ने लिखने में तेजतर्रार स्वर्गीय राजेंद्र प्रसाद जी एक ना एक दिन कोई बड़े आदमी बनेंगे। बात आई गई हो गई। और देश का प्रथम राष्ट्रपति बनने के बाद जब स्वर्गीय राजेंद्र प्रसाद जी अपने गृह ग्राम पहुंचे। तो वे उस वात्सल्यमयी वृद्धा के पास भी गए। वहां उन्होंने जब वृद्धा को बताया कि वह देश के राष्ट्रपति बन गए हैं। ‌ तो दीन दुनिया से बेखबर गांव की वह वृद्धा मायूस हो गई। और उसने दुखी होकर राष्ट्रपति स्वर्गीय राजेंद्र प्रसाद जी से कहा..बेटा हम सबको तेरे से बहुत उम्मीद थी कि तू बड़ा होकर पटवारी बन जाएगा ।

लेकिन अब इस बात का दुख है कि तू भी पटवारी नहीं बन पाया।.. समझ गए आप इस देश के गांवों और ग्रामीणों की नजर में सीमांकन नामांतरण सरीखे जमीनी काम करने वाले पटवारियों की अहमियत..! उन्हें पता है कि राष्ट्रपति उनके किस काम आएंगे..! उनका अपना काम तो कल भी पटवारी साहब करते धे और आज भी वे ही करेंगे।इति..!

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