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राज्यों की सेहत खराब कर सकती है मुफ्त की रेवड़ी संस्कृति.. नायडू

(शशि कोन्हेर) : उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने जाते-जाते ‘मुफ्त की रेवड़ी’ संस्कृति पर राजनीतिक दलों को सावधान किया है। नायडू ने कहा है कि चुनाव से पहले राजनीतिक दलों द्वारा लोकलुभावन घोषणाएं राज्यों की वित्तीय सेहत के लिए ठीक नहीं हैं।

इस तरह की घोषणाओं से कई राज्यों की वित्तीय स्थिति खराब हुई है। हालांकि, AAP के बाद तेलंगाना में सत्तारूढ़ टीआरएस ने भी लोकलुभावन घोषणाओं का समर्थन करते हुए कहा है कि गरीबों के कल्याण को ‘मुफ्त की रेवड़ी’ नहीं कहा जा सकता।

उपराष्ट्रपति नायडू का कार्यकाल बुधवार को पूरा हो रहा है। उनके कार्यालय की तरफ से जारी बयान के अनुसार मंगलवार को दिल्ली में भारतीय सूचना सेवा के 2018 और 2019 बैच के अधिकारियों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि सरकार को निश्चित रूप से गरीबों और जरूरतमंदों की सहायता करनी चाहिए। लेकिन इसके साथ ही स्वास्थ्य, शिक्षा और बुनियादी सुविधाओं के विकास को भी प्राथमिकता देनी चाहिए।

हैदराबाद में जारी प्रेस विज्ञप्ति में तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव की बेटी व एमएलसी कविता कल्वाकुंतल ने कहा कि गरीबों की देखभाल करना सरकार का दायित्व है, चाहें वह राज्य की हो या केंद्र की।

उन्होंने कहा कि इस समय गरीबों की कल्याणकारी योजनाओं को मुफ्त की रेवड़ी बताने का चलन बढ़ गया है। बता दें कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी गरीबों के लिए कल्याणकारी योजनाओं को रेवड़ी संस्कृति बताने पर आपत्ति जता चुके हैं। उन्होंने कहा है कि मुफ्त शिक्षा, मुफ्त स्वास्थ्य व्यवस्था और रोजगार देना मुफ्त की रेवड़ी बांटना नहीं है।

वहीं, मुफ्त रेवड़ि‍यां बांटने के मुद्दे पर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में फिर से सुनवाई है। भाजपा नेता और वकील अश्वनी उपाध्याय की जनहित याचिका सुप्रीम कोर्ट में लंबित है जिसमें चुनाव से पहले मतदाताओं को लुभाने के लिए अतार्किक मुफ्त घोषणाएं करने वाले राजनैतिक दलों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई है। याचिका में कहा गया है कि ऐसे दलों के चुनाव चिन्ह जब्त होना चाहिए और पार्टी की मान्यता खत्म होनी चाहिए।

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