अकलतरा मामलों में गाल बजाने वालों को बुरा मानने की आजादी नहीं है
(सीता टण्डन) : आज अकलतरा नगर हर मामलों में उपेक्षा का शिकार है चाहे वह रेलवे का मामला हो , सड़क हो , बायपास रोड हो या स्वयं नगर की सुव्यवस्था का मामला हो । आज अकलतरा नगर और नगर क्षेत्र में आने वाले गांवो का हर तरह से शोषण हो रहा है और यहां के मूल निवासी केवल मजदूर बन कर रह गये है चाहे वह वर्धा पावर प्लांट जैसे उपक्रम हो चाहें क्रशर हो अंग्रेजो के उपनिवेशवाद की नीति आज स्वदेशी उपनिवेशवाद बनकर फल-फूल रही है ।
अगर हम ये कहे कि अकलतरा नगर की रक्त वाहिकाओं से रक्त लेकर बाहरी लोग स्वयं को बलवान और अकलतरा के मूल निवासियों को कमजोर बना रहे हैं तो किसी को बुरा मानने की जरूरत भी नहीं होनी चाहिए क्योंकि केवल गाल बजाने वाले लोगों को बुरा मानने की आज़ादी नहीं है ।
आज यहां स्थापित पावर प्लांट्स में हमारे युवा तकनीकी विशेषज्ञ न होने के तानों के साथ ठेकेदारों के हाथों की कठपुतली है जबकि यहां के गाल बजाने वाले नेता क्या इन डेढ़ से ज्यादा दशकों में तकनीक विशेषज्ञ पैदा नहीं कर पाये । क्या वे विश्वविद्यालयों में ऐसे कोर्स , ऐसे डिप्लोमा नहीं शुरू करवा सकते थे जिनकी इन पावर प्लांट्स को जरूरत थी ।
नहीं क्योंकि उन्हें डर है कि अगर ऐसे कोर्स विश्वविद्यालयों में शुरू करवा दिया जाये तो उनकी गुलामी रुपी मजदूरी कौन करेगा , आज यहां छोटे-बड़े मिलाकर तीन सौ उद्योग है और उससे राजस्व भी करोड़ों में अरबों में निश्चित ही आता है तो आखिर वह धन कहां जाता है।
अकलतरा के गांवों की दशा देखकर तो ऐसा लगता है जैसे विकास नाम की चिड़िया ने अभी यहां आंखें भी न खोली हो और सबसे हास्यपूर्ण बात यह कि हर विभागीय मंत्री जानते हुए उन्ही गांवों का दौरा करते हैं जिन्हें वे गोद लिये रहते हैं या जिसे आदर्श गोठान आदि-आदि कहकर थोडी तवज्जो दी जाती है । ये जिम्मेदार दूसरे गांवों का रूख करने से डरते हैं कहीं लेने के देने न पड़ जाये…..आगे जारी