बिलासपुर

थोक में बंद ट्रेनों के लिए ऐतिहासिक धरना प्रदर्शन, और सांसद निवास का घेराव…..लेकिन 2 सालों से थोक में बंद बिलासपुर की “सिटी बसों” के लिए कोई “चूं” तक क्यों नहीं करता..?

(शशि कोन्हेर) : बिलासपुर। बिलासपुर समेत पूरे छत्तीसगढ़ में रेलवे के तुगलकी फरमान से थोक में दर्जनों ट्रेनें बंद कर दी गई। इससे क्षेत्र के लोगों को हो रही परेशानियों को‌ स्वर देने और रद्द की गई ट्रेनों को फिर से शुरू करने के लिए कांग्रेस ने बिलासपुर में एक बहुत (ऐतिहासिक) बड़ा आंदोलन किया। इस आंदोलन के तहत पहले तो शहर के नेहरू चौक पर धरना प्रदर्शन किया गया और फिर वहीं पास में रहने वाले बिलासपुर लोकसभा क्षेत्र के सांसद अरुण साव के शासकीय निवास का घेराव किया गया। आंदोलन में शामिल लोगों की संख्या और उनके जोशोखरोश को देखते हुए इसे सफलतम आंदोलन कहा जा सकता है। निस्संदेह बिलासपुर में रेलवे के द्वारा जिस तरह एक तरफा दादागिरी प्रदर्शित करते हुए ट्रेनों को बंद कर दिया जा रहा है। उसे अक्षम्य अपराध ही कहा जाएगा। उससे अधिक गुस्से की बात तो यह है कि, रेल प्रबंधन को अपने इस कुकर्म पर जरा सी भी शर्म नहीं है। इस लिहाज से बिलासपुर में हुआ कांग्रेस का आंदोलन और सांसद निवास का घेराव एकदम सही और लोकतांत्रिक कदम कहा जाएगा।

लेकिन वहीं बिलासपुर शहर की जनता के कोरोना के पहले लॉकडाउन के समय से बंद सिटी बसों को जितनी जल्दी संभव हो शुरू कराना चाहती है। सिटी बसों के बंद होने से बिलासपुर के आम लोगों को जो तकलीफ हो रही है और जो परेशानी झेलनी पड़ रही है, उसे वही जानती है। लेकिन अफसोस की बात यह है कि बंद ट्रेनों को शुरू करने के मामले में पूरा आसमान सर पर उठाने वाले लोग…बंद सिटी बसों को शुरू करने के लिए इतने ही मुखर क्यों दिखाई नहीं देते। इसके लिए कोई, ना तो धरना दे रहे हैं । । कोई प्रदर्शन ज्ञापन घेराव जैसा कुछ करने के मूड में भी दिखाई नहीं देते । जबकि शहर की जनता को सिटी बसों के बंद होने से कितनी परेशानी हो रही है इसका अनुमान सभी को है। जो परेशानी पूरे छत्तीसगढ़ में दर्जनों ट्रेनों के बंद किये जाने से हो रही है। कमोबेश वैसी ही परेशानी छत्तीसगढ़ के रायपुर बिलासपुर कोरबा दुर्ग और राजनांदगांव जैसे शहरों में सिटी बसे बंद होने से भी हो रही है। लेकिन अफसोस की बात यह है कि सांसद का घेराव करने वाले नेता और उनके सैकड़ों समर्थक सिटी बसों के लिए न तो कोई घेराव करने को तैयार हैं और ना प्रदर्शन। इससे भी बड़ी विडंबना यह है कि विपक्ष में बैठी भारतीय जनता पार्टी और उसके नेताओं के मन में भी बिलासपुर रायपुर कोरबा दुर्गा और राजनांदगांव में सिटी बसों के लगातार ढाई 3 सालों से बंद होने को लेकर कोई धरना प्रदर्शन आंदोलन का विचार तक नहीं आता। शायद वे इसे कोई बड़ा मसला ही नहीं मानते। सिटी बसें बिलासपुर शहर की लाइफ लाइने थीं। इसके बावजूद बिना बताए इस लाइफ लाइन को काटकर इस पर निर्भर बिलासपुर की आम जनता को ऑटो वालों की महंगी शरण में जाने पर मजबूर कर दिया गया। भारतीय जनता पार्टी के स्वनामधन्य बिलासपुरिहा नेताओं ने भी इसके लिए, धरना प्रदर्शन आंदोलन भाषण और घेराव तो दूर शासन प्रशासन से जरा सी चूं- चपड तक नहीं की। आश्चर्य की बात यह है कि सिटी बसों के संचालन के लिए बनाई गई कमेटी में बिलासपुर के कलेक्टर और नगर निगम आयुक्त जैसे दमदार पदाधिकारी प्रमुख रूप से तैनात है। इसके बाद भी इसे किस्मत के रहमों करम पर जिस तरह छोड़ा गया है,वह दुर्भाग्यपूर्ण ही है।

यहां हम आपको बता दें कि बिलासपुर में तकरीबन 50 से अधिक सिटी बसें चला करती थी। कोराना काल की आड़ में इन सिटी बसों को एकाएक बंद कर दिया गया। बंद होने से पहले और उसके बाद मरम्मत के नाम पर सिटी बसों को भगवान भरोसे छोड़ दिया गया। नतीजा यह हुआ कि आज 50 में से मात्र 27 सिटी बसें हीं इस लायक बची है कि उन पर एक से डेढ़ करोड़ रुपए खर्च होने के बाद ही वे सड़कों पर दौड़ने लायक हो सकेंगी। बाकी 23 सिटी बसों की हालत इतनी खराब हो गई है कि अब उन्हें भगवान भी चुस्त-दुरुस्त और तंदुरुस्त नहीं बना सकता। लिहाजा इन 23 कण्डम बसों को कबाड़ियों का और कबाड़ियों को इन बसों का इंतजार है। धूमधाम से शुरू हुई बिलासपुर की सिटी बस सेवा में शामिल 50 सिटी बसों के बेड़े का संचालन करने के लिए लगभग 100 से अधिक ड्राइवर 6 टिकट चेकर एक मैनेजर समेत कुछ और लोग काम किया करते थे। इन सब का क्या हुआ..? इनकी रोजी रोटी का क्या हो रहा है.. ? उनका परिवार कैसे जी रहा होगा..? हमारे शहर के कर्णधारों के लिए ऐसे तमाम सवाल..? छोटे-मोटे और तुच्छ विचार से अधिक मायने नहीं रखते। जानकारी मिली है कि तुरत फुरत अगर सिटी बसों को शुरू करने के लिए कोई व्यवस्था बन जाए तो 30 बसें ऐसी जरूर हैं जिन्हें टायर ट्यूब और थोड़ी बहुत मरम्मत के बाद सड़कों पर दौडाया जा सकता है।

एक और जानकारी यह मिली है कि प्रदेश शासन तथा जिला प्रशासन इन सिटी बसों को फिर से शुरू करने के लिए बीते कुछ दिनों से ठोस प्रयास करने पर विचार कर रहा है। शासन की इच्छा है कि बिलासपुर रायपुर दुर्ग कोरबा और राजनांदगांव सरीखे जिन शहरों में भी सिटी बसेज चला करती थीं.. वहां फिर से इनका संचालन शुरू हो। इसके लिए बकायदा टेंडर भी निकाले गए। रायपुर में कुछ बस ऑपरेटर आगे आए और उन्होंने वहां सिटी बसें शुरू करने की जिम्मेदारी ले ली है। बिलासपुर में दो तीन बार टेंडर निकाले जा चुके हैं। लेकिन टेंडर भरने कोई भी नहीं आया। दरअसल अधिकारियों के मुताबिक बिलासपुर के बस ऑपरेटर रायपुर की तुलना में कम मालदार हैं। और वे चाहते हैं कि टेंडर की शर्तों में कुछ और नरमी की जाए। देखने लायक बात यह होगी कि अब शासन… बिलासपुर के बस ऑपरेटरों के मन की मुराद पूरी करते हुए नए नरम टेंडर निकालता है या फिर‌ कोनी रोड के डिपो में बची खुची ठीक-ठाक बसों के भी कबाड़ होने का इंतजार करता है।

अब रहा सवाल जनता का तो बिलासपुर की जनता को यह समझ लेना चाहिए कि यहां उसकी जरूरत के लिए धरना प्रदर्शन और आंदोलन करने का समय किसी भी पार्टी संगठन और संस्था के पास नहीं है। लिहाजा बिलासपुर के लोगों को सिटी बसें बंद होने को भी अपने नसीब की खराबी मानकर चुप बैठ जाना चाहिए। बिलासपुर के लोगों को या ध्यान रखना चाहिए कि बिलासपुर को जो भी चीज यह सुविधा चाहिए… वो सुविधा कोई नहीं देगा.. जनता को एक बार पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई कि इस बात को याद करना पडेगा.. दुनिया झुकती है.. झुकाने वाला चाहिए… बिलासपुर को रेलवे जोन और पहला विश्वविद्यालय तथा सेंट्रल यूनिवर्सिटी इसी खुद्दारी के कारण मिली थी, किसी के आगे रिरियाने, गिड़गिड़ाने से नहीं..!

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