अम्बिकापुर

उल्लास के साथ मनाया गया पारम्परिक त्योहार करमा – रात भी थिरकता रहा मांदर की थाप पर….


(मुन्ना पाण्डेय) : लखनपुर -(सरगुजा) – लोक संस्कृति में करमा त्योहार का विशेष महत्व रहा है। आदिकाल से इस पर्व को एक जूट होकर मनाने की रिवाज रही है करमा प्रकृति पूजा के रूप में भादों मास के शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि को मनाया जाता है इसे पद्मा एकादशी भी कहा जाता है।इस रोज महिलाएं दिन भर उपवास रखती है । जंगल से करमी पेड़ के डाल लाकर घर आंगन के बीच गाड़ उस डाल को करम देव का प्रतीक मान पूजा अर्चना सामुहिक रूप से करते हैं । ग्राम बैगा द्वारा पारम्परिक पूजा कराया जाता है। बैगा वर्ती महिलाओं को प्रचलित लोक कहानी सुनाता है।


रियासत काल में करमा त्योहार राजमहल प्रांगण में या गांवों के प्रधान, गवटिया, पटेल के घरों में एक स्थान पर मनाते थे जहां उपवास रखने वाली महिलाएं तथा गांव कस्बें के लोग राजमहल प्रांगण या एक निश्चित स्थान मे एकत्रित होकर ग्राम बैगा से करम देव की कहानी सुनते थे तथा नाचते गाते इस त्योहार को उत्साह उमंग के साथ मनाते थे ।आज भी मनाते हैं। परन्तु कालांतर में इसका स्वरूप बदला है। गांव कस्बों में लोग अपने तरीके से करमा त्योहार मनाते है । मांदर के थाप पर थिरकते हुए हाथ में हाथ धरे श्रृंखलवद मोहक अंदाज में नृत्य करते हुए करम डाल का परिक्रमा करते हैं।


राजमहल के सामने करमा त्योहार मनाने की की प्रथा सदियों पुरानी रही है। ग्राम बैगा करम डाल राजमहल प्रांगण में लाकर गाड़ देता है जहां वर्ती महिलाऐं एकत्रित होकर करम देव की पूजा अर्चना करती है । आज भी परंपरा जिंदा है। आदिवासी बाहुल इलाकों में करमा नृत्य किये जाने का रिवाज़ आज भी बरकरार है। 6 सितमबर मंगलवार को नगर लखनपुर राजमहल प्रांगण के अलावा आसपास ग्रामीण अंचलों में करमा त्योहार उल्लास के साथ मनाया गया। करमा प्रेमी ही नहीं अपितु रात भी करमा पर्व के खुमार में डुबा रहा। करमा प्रेमी युवक युवतियां पारम्परिक भेष भूषा में सजे संवरे मांदर, ढोल,नगाड़ों के स्वर लहरी पर रात भर थिरकते रहे। लोगों ने एक जूट होकर सौहार्दपूर्ण वातावरण में करमा त्योहार मनाया। कुछ वर्ती महिलाओं ने अपने घरों में तथा कुछ महिलाओं ने परंपरानुसार राजमहल के सामने एक जूट होकर करम देव की पूजा अर्चना किया तथा ग्राम बैगा से पारम्परिक कहानी सुने।


पंडित पुजारियों ने भी करम देव के पूजा अर्चना कराया तथा वर्ती महिलाओं को पौराणिक वृत्तांत सुनाया। दरअसल इस त्योहार को प्रकृति पूजा से जोड़ कर देखा जाता है शायद यही वजह रही है कि करमी पेड़ के डाल की पूजा अर्चना की जाती है। उपरांत इसके कहानी सुनने सुनाने की भी परिपाटी रही है। ग्रामीण आदिवासी बाहुल इलाकों में करमा त्योहार शांति प्रिय तरीके से मनाया गया।


इस त्यौहार की खासियत रही है कि इस त्योहार को आदीवासी अंचल में सप्ताह भर तक मनाया जाता है। करमा त्योहार के मौके पर कच्ची महुआ एवं चावल से बने हंडिया शराब पीने पिलाने पकवान खाने खिलाने का भी दौर चलता है। बहरहाल क्षेत्र में करमा त्योहार मनाने का सिलसिला जारी है।

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