भाजपा कार्यकर्ताओं की नई पौध को शायद पता ही ना हो कौन थे”भारत रत्न” नानाजी देशमुख..?
(शशि कोन्हेर) : 70 और 80 के दशक में भारतीय जनता पार्टी की मातृ संस्था जनता पार्टी और जनसंघ का पूरा संगठन जिनके इर्द-गिर्द घूमा करता था ऐसे नानाजी देशमुख का भी (लोकनायक जयप्रकाश नारायण और बिग बी अर्थात अमिताभ बच्चन की तरह ही) कल 11 अक्टूबर को ही जन्म दिन था। लेकिन किसी ने उन्हें उस तरह याद नहीं किया ऐसा किया जाना था। भाजपा कार्यकर्ताओं की नई नस्ल शायद उन्हें ठीक से जानती भी नहीं। वहीं नानाजी के कारण ही पुष्पित पल्लवित सरस्वती शिशु मंदिर में भी जन्मदिन पर उनके पुण्य स्मरण को लेकर एक तरह का सन्नाटा छाया हुआ रहा। वैसे ये स्वाभाविक है कि समय और कालचक्र के फेरे में धीरे धीरे सभी लोग भुला दिए जाते हैं। लेकिन स्वर्गीय नानाजी देशमुख को उनके अपना संगठन की नई पौध (भारतीय जनता पार्टी)भी इतनी जल्दी भूल जाएगा इसकी उम्मीद नहीं थी। यह हाल तब है, जब देश के मौजूदा प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के सर्व प्रिय नेता तथा प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेई नानाजी देशमुख के आगे श्रद्धानवत रहा करते थे। भारतीय जनता पार्टी की मातृ संस्था (जिसकी कोख से भाजपा का जन्म हुआ) भारतीय जनसंघ और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तथा उसके सरस्वती शिशु मंदिर सहित कई अनुषांगिक संगठनों को मजबूत बनाने में नानाजी देशमुख जैसे दधीचियों की हड्डियों का ही प्रमुख योगदान रहा है। स्वर्गीय नाना जी ने ही आर एस एस के प्रचारक भाऊराव देवरस और कृष्ण चंद्र शास्त्री के साथ मिलकर 1952 में 5 रुपय के किराए के मकान से गोरखपुर
में, जिस सरस्वती शिशु मंदिर को शुरू किया था। वो देश का ही नहीं पूरे विश्व का सबसे बड़ा शिक्षा संस्थान बन चुका है। कांग्रेस नेता श्री दिग्विजय सिंह जिस शिशु मंदिर पर भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की नर्सरी होने का आरोप लगाते रहे हैं। नानाजी देशमुख ही उसे रोपित, पुष्पित और पल्लवित करने वाले प्रमुख स्तंभ रहे हैं। आज विद्या भारती के बैनर तले चलाए जा रहे शिशु मंदिरों में 34 लाख 50 हजार विद्यार्थी, (पुराना आंकड़ा) 1 लाख 46 हजार शिक्षकों (आचार्यो) से गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के साथ ही देशप्रेम और राष्ट्रवाद का ऐसा पाठ भी पढ़ रहे हैं, जो आज पूरे देश में हुंकार भरता दिखाई दे रहा है। सन 1975 से 77 तक देश पर थोपे गए आपातकाल के दौरान नानाजी देशमुख ऐसे राजनीतिक रणनीतिकार के रूप में उभरे थे। जिन्होंने उस समय की तमाम विपक्षी पार्टियों को एक सूत्र में बांधकर उन्हें आपातकाल और उसके लिए जिम्मेदार प्रधानमंत्री(तत्कालीन)श्रीमती इंदिरा गांधी के खिलाफ खड़े करने में जबरदस्त भूमिका निभाई थी। संघ कार्य (RSS) और देश के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाले नानाजी देशमुख का असल नाम चंद्रिका दास अमृतराव देशमुख था। उनका जन्म 11 अक्टूबर 1916 में महाराष्ट्र के एक अनाम से गांव कडाली में हुआ था।
इस महान हस्ती का निधन 27 फरवरी सन 2010 में चित्रकूट के उस संस्थान में हुआ जिसे नानाजी देशमुख ने गोण्डा जिले का सबसे बड़ा लोक हितकारी संस्थान बनाने का संकल्प ले रठा था। एक दिन चित्रकूट में सरयू नदी के किनारे बैठे-बैठे उन्हें भगवान श्री राम की कर्मस्थली रहे चित्रकूट की दुर्दशा देखकर काफी व्यथा हुई। शायद उसी समय उन्होंने इसे ही अपनी भी कर्म स्थली बनाने का संकल्प ले लिया । पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें इस देश के सबसे बड़े नागरिक सम्मान “भारत रत्न” की उपाधि से सम्मानित किया था। इसके पूर्व एक और नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से भी वे नवाजे जा चुके थे। एक मंजे हुए राजनीतिज्ञ से शिक्षा स्वास्थ्य और ग्रामीण भारत को आत्मनिर्भर बनाने का सोच रखने वाले समाज सुधारक नानाजी देशमुख संभवत ऐसे पहले शख्स थे जिन्होंने राजनीति के शिखर पर रहते समय ही एक दिन अचानक सामाजिक कार्यों के लिए उसका (राजनीति का) एक बार जो परित्याग किया तो फिर दोबारा लौटकर उस ओर नहीं देखा। राजनीति में किसी भी व्यक्ति को अधिकतम 70 साल की उम्र तक ही काम करने के हिमायती नानाजी ने
महाराष्ट्र के बीड़ और मध्य प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश की सीमा पर स्थित (भगवान राम श्रीराम की कर्मस्थली) गोंडा जिले के चित्रकूट के सामाजिक आर्थिक विकास में अपने जीवन की “सेकंड इनिंग” न्यौछावर कर दी। उनका लक्ष्य था, हर घर को काम और खेत को पानी। उन्होंने, आज पूरे देश की सियासत का राजनीतिक वट वृक्ष बन चुकी भारतीय जनता पार्टी की इमारत को खड़ा करने में नींव के पत्थर की तरह अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया था। देश में बनी पहली गैर कांग्रेसी सरकार मे प्रधानमंत्री (तत्कालीन) स्वर्गीय मोरारजी देसाई ने उनसे केंद्रीय उद्योग मंत्री के रूप में कार्यभार संभालने का आग्रह किया। लेकिन हमारे इस कथा नायक ने उसे विनम्रता पूर्वक अस्वीकार कर दिया। बिरला इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (पिलानी) से गोल्ड मेडलिस्ट नाना जी ने राजनीति की काली कोठरी में रहने के बावजूद खुद पर एक दाग कभी नहीं लगने दिया। भाजपा और संघ के आलोचक भी उनका बेहद सम्मान किया करते थे। 27 फरवरी 2010 को चित्रकूट में 93 वर्ष की आयु में अपना देहावसान होते तक उन्होंने कभी विश्राम नहीं किया। ऐसे दधीचि को शत-शत प्रणाम..इति।