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यहां लगता है गधों का मेला, फिल्मी हस्तियों पर नाम….इतनी होती है कीमत

(शशि कोन्हेर) : मध्य प्रदेश के सतना में एक बार फिर गधों का बाजार सज गया है. दिवाली के मौके पर गधों का ये बाजार चित्रकूट में लगा है. बता दें कि हर साल दिवाली के दूसरे दिन मंदाकिनी नदी के तट पर लगने वाला यह बाजार ढाई दिनों तक लगा रहता है.

माना जाता है कि गधा मेले की शुरुआत करीब साढ़े 3 सौ साल पहले मुगल शासक औरंगजेब ने की थी. इसकी वजह ये थी कि गधों, खच्चरों के जरिए कारोबार किया जाता था, जिसकी उस समय बहुत जरूरत हुआ करती थी.

गधा मेला में यूपी-एमपी के कई कारोबारी गधा बेचने और खरीदने आते हैं. दिलचस्प ये है कि गधा बेचने वाले कारोबारी अपने गधों का नाम फिल्मी हस्तियों के नाम पर भी रखते हैं. मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश से सटे एमपी वाले हिस्से के चित्रकूट में लगे इस मेले को ऐतिहासिक मेला कहा जाता है.

वैसे तो आपने कई मेले देखे होंगे, लेकिन चित्रकूट का ये बेहद प्राचीन और ऐतिहासिक गधों का मेला शायद ही आपने पहले कभी देखा या सुना होगा. यही वजह है कि दूर-दूर से लोग गधों के मेले को देखने पहुंचते हैं.

देश में इकलौता गधों का बाजार चित्रकूट में ही लगता है. यही नहीं, यह मेला सिर्फ साल में एक बार दीपावली के मौके पर ही लगता है. इस बाजार में कई प्रदेश के व्यापारी अपने खच्चर-गधे लेकर चित्रकूट पहुंचते हैं, यहां खच्चरों की बोली लगाई जाती है.

इस मेले के ठेकेदार सनी पांडेय ने बताया कि औरंगजेब का लाव-लश्कर यहां गंगा किनारे पड़ा रहता था. गधे और खच्चर खाद्यान्न, असलहा, बारूद लाने का काम करते थे. तभी से यह मेला लग रहा है. बहुत ही ऐतिहासिक मेला है. दीपदान के बाद ही इसकी शुरुआत होती है. यहां 3 हजार से लेकर 60 हजार रुपए तक में गधे और खच्चर बिकते हैं.

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