उदय के साथ अस्त होना प्रकृति का नियम है, छठ महापर्व पैगाम देता है कि जो अस्त हुआ है उसका उदय होना निश्चित है
(मुन्ना पाण्डेय) : लखनपुर- (सरगुजा) – लोक आस्था एवं सूर्य उपासना का महापर्व सूर्य षष्ठी (छठ) नगर सहित आसपास के गांवों में उत्साह उमंग के साथ मनाया गया इस चार दिवसीय त्योहार की शुरुआत नहाय खाय के साथ हुई। वास्तव में छठ श्रद्धा और शुद्धता का पर्व है। छठ महापर्व को महिलाएं ही नहीं अपितु पुरूष भी रखते हैं।चार दिनो तक चलने वाले लोकास्था के इस महापर्व में वर्ती महिलाओं को तीन दिन का उपवास रखना होता है। जिसमें दो दिन निर्जला व्रत रखा जाता है।इस नियम को कायम रखते हुए व्रती महिलाओं ने शुक्रवार को नहाये खाये के साथ व्रत का शुभारंभ किया । सूर्य उपासना का महापर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष छठवीं तिथि व सप्तमी को मनाया जाता है। रस्म के मुताबिक वर्ती महिलाओं ने शनिवार को जलसरोवरो के तट पर घाट बाधे । रविवार षष्ठी तिथि को अस्ताचल के डुबते सूर्य को अर्घ्य देते हुए छठी मईया के पूजा अर्चना किये। धार्मिक ग्रंथों में छड़ी मईया भगवान सूर्य के बहन मानी जाती है प्रकृति को उर्जा प्रदान करने वाले भगवान सूर्य की महिमा इस व्रत से जुड़ी हुई है। वेदपुराणों में छठ पूजा किये जाने का वृत्तांत मिलता है महाभारत काल में द्रोपदी ने राज्य, सौभाग्य, संतान तथा सुख समृद्धि खुशहाली की कामना को लेकर छठ महापर्व का व्रत किये थे। इस त्योहार को प्रकृति पूजा से जोड़ कर देखा जाता है। इस व्रत में व्रती महिलाएं अपने पूजा सूप में मौसमी ईख नारियल आंवला ,बेर, बादाम आदि फल फूल खास कर रखते हैं। शायद प्रकृति के प्रति सच्ची श्रद्धा है।इस तारतम्य में नगर एवं गांव कस्बों में वर्ती महिलाऐं निर्जला उपवास रख सोमवार सप्तमी तिथि को उदयाचल के सूर्य को अर्घ्य देकर वैदिक मंत्रोंचार के साथ पूजा अर्चना किये। नगर के मध्य बहने वाली चुल्हट नदी के सतीघाट, आमा घाट, ढोढी घाट , के अलावा प्राचीन देवतालाब में काफी भीड़भाड़ रही। मान्यता है इस व्रत के करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं ।वर्ती महिलाओं ने पुत्र पौत्र सौभाग्य धनधान्य सुख समृद्धि खुशहाली रक्षा की कामना दिल में लिए भगवान भास्कर एवं छठी मईया से प्रार्थना किये। पारण के साथ छठ महापर्व सम्पन्न हुई। छठ घाटों में नगरवासियों तथा वर्ती महिलाओं के परिजनों की भीड़भाड़ देखी गई । भक्ति गीत संगीत कार्यक्रम का आयोजन हुआ । नदी तालाब जल सरोवरों के तट आतिशबाजी एवं डी जे साउण्ड सिस्टम ढोल नगाड़ों के स्वर लहरी से गुंजायमान रहा।