बिलासपुर

7 साल से नौकरी मे गैरहाजिर आरक्षक को 32 लाख ₹ वेतन का भुगतान, एसएसपी ने बिठाई जाँच…..

(आशीष मौर्य) : बिलासपुर – बिना ड्यटी सात साल तक करीब 32 लाख से अधिक वेतन उठाने और षड़यंत्र पूर्वक विभाग के अधिकारियों को दोषी बनाए जाने के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका पर सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता की मांग पर हाईकोर्ट ने गृह सचिवालय समेत डीजीपी, आईजी, एसपी बिलासपुर के अलावा जांच अधिकारी तत्कालीन एडिश्नल एसपी रोहित झा,आईसीयूडब्लू डीएसपी को नोटिस जारी की है। साथ ही न्यायाधीश पार्थ प्रतीम साहू के कोर्ट ने जवाब मांगा है कि बताएं याचिकाकर्ता की मांग के बाद भी दस्तावेज क्यों नहीं उपलब्ध कराये…? बिना दस्तावेज दिए विभागीय जांच की एकतरफा कार्रवाई क्यों की गयी..? हाईकोर्ट ने सभी अधिकारियों को पन्द्रह दिनों के भीतर जवाब देने के साथ ही याचिकाकर्ता को दस्तावेज उपलब्ध कराने को कहा है।

मामला बिलासपुर सिविल लाइन सीएसपी कार्यालय और पुलिस अधीक्षक कार्यालय का है। आरक्षक जगमोहन पोर्ते ने साल 2013 में सिविल लाइन सीएसपी कार्यालय में आरक्षक पद ज्वाइन किया। इसके बाद कहीं गायब हो गया। बावजूद इसके उसका वेतन उसके खाते में जमा होता रहा। यह सिलसिला साल 2021 तक चला। इसी दौरान जानकारी मिली कि जगमोहन पोर्ते इस दुनिया में नहीं है। बावजूद इसके वेतन का आहरण किया जाता रहा। प्रारम्भिक तौर पर पुलिस कप्तान ने तत्काल जांच का आदेश दिया। साथ ही वेतन के रूप में किए करीब 32 लाख रुपए के घोटाला का पता लगाने को कहा। प्रारम्भिक जांच के बाद पुलिस कप्तान पारूल माथुर ने चार लोगों के खिलाफ विभागीय जांच का आदेश दिया। तत्कालीन एडिश्नल एसपी रोहित झा समेत आईसीयूडब्लू डीएसपी ने तत्कालीन वेतन शाखा प्रभारी भागीरथी महार, सुधीर श्रीवास्तव,आसुतोष कौशिक और सुरेन्द्र पटेल को जांच के लिए बुलाया। चारो ने जांच टीम से नोटिस मिलने के बाद पुलिस कप्तान लिखित आवेदन दिया। । मामले में एकतरफा कार्रवाई के खिलाफ सुधीर श्रीवास्तव समेत अन्य तीन याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट में न्याय मांगा। याचिकाकर्ता सुधीर श्रीवास्तव की तरफ से अधिवक्ता पवन श्रीवास्तव ने कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ताओं के साथ सोची समझी रणनीति के तहत षडयंत्र किया गया है। अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि नियमानुसार सभी थाना प्रभारियों को हर महीने कर्मचारियों के वेतन निकालने या रोकने को लेकर जरूरी निर्देश पत्र भी दिया जाता है। लेकिन सिविल लाइन सीएसपी कार्यालय ने कभी भी जगमोहन को लेकर एक भी पत्र नहीं दिया। इसलिए बिना बाधा के साल 2013 से साल 2020 तक जगमोहन पोर्ते का वेतन खाते में जमा किया गया। यकायक पुलिस प्रशासन ने एक आदेश जारी कर चारो याचिकाकर्ता को दोषी मानते हुए विभागीय जांच का आदेश दिया। जब याचिकाकर्ताओं ने विभागीय जांच के मद्देनजर जरूरी दस्तावेज उपलब्ध कराए जाने को कहा । लेकिन जांच अधिकारियों ने कोई नहीं जवाब दिया। और ना ही पुलिस ने ही मामले को गंभीरता से लिया। जबकि याचिकाकर्ताओं ने इस बावत संभागीय पुलिस महानिरीक्षक को भी लिखित आवेदन कर दस्तावेज उपलब्ध कराए जाने को लेकर आवेदन भी किया। याचिकाकर्ताओं के वकील ने कोर्ट को बताया कि पुलिस अधीक्षक कार्यालय की तरफ से कुछ लोगों ने षड़यंत्र कर बिना किसी ठोस कारणों के याचिकाकर्ताओं को परेशान किया है। यही कारण है कि दस्तावेज उलब्ध नहीं कराया गया। मामले की सुनवाई के बाद न्यायाधीश पीपी साहू की कोर्ट ने गृह सचिव,डीजीपी छत्तीसगढ़,आईजी बिलासपुर,एसपी बिलासपुर, जांच अधिकारी एडिश्नल एसपी रोहित झा, आईसीयूडब्लू डीएसपी समेत अन्य लोगों को नोटिस जारी किया है। हाईकोर्ट ने सभी को पन्द्रह दिनो के अन्दर जवाब पेश करने का भी आदेश दिया है। कोर्ट ने यह भी कहा है कि जिम्मेदार लोग यह बताएं कि मांग किए जाने के बाद भी याचिकाकर्ताओं को दस्तावेज क्यों नहीं दिया गया।

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