आदिवासी आरक्षण के नाम से घड़ियाली आंसू बहाना बंद करें भाजपा के नेता: धनंजय सिंह
(शशि कोन्हेर) : रायपुर : आरक्षण को लेकर राजनीति कर रहे भाजपा नेताओं पर कड़ा प्रहार करते हुए प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता धनंजय सिंह ठाकुर ने कहा कि भाजपा जब सत्ता में थी। तब आदिवासियों के आरक्षण की लड़ाई कोर्ट में तो लड़ नहीं पाई। अब सत्ता जाने के बाद सड़क पर आदिवासियों की लड़ाई लड़ने की नौटंकी कर रही है।
रमन भाजपा सरकार की बदनीयती के चलते ही न्यायालय में आदिवासियों के 32 प्रतिशत आरक्षण का पक्ष कमजोर हुआ था। आदिवासी नेता ननकीराम कंवर की अध्यक्षता में कमेटी गठन करने के बाद भी कमेटी की अनुशंसा को रमन सरकार ने न्यायालय के समक्ष नहीं रखा और आदिवासी समाज के साथ साथ न्यायालय को भी गुमराह करने किया गया। श्री धनंजय सिंह ठाकुर ने कहा कि आरक्षण का मसला जब न्यायालय में पहुंचा अगर उसी दौरान रमन सरकार अपने न्ययालय में दिये एफिडेविट में ननकीराम कमेटी गठन करने का जिक्र कर देती और ननकीराम कंवर रिपॉर्ट को कोर्ट में प्रस्तुत कर देती तो आदिवासियों का 32 प्रतिशत आरक्षण खारिज नहीं होता।
प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता ने पूर्व मंत्री रामविचार नेताम, पूर्व मंत्री विक्रम उसेंडी, पूर्व मंत्री रामसेवक पैकरा, महेश गागड़ा, विकास मरकाम से पूछा कि जब 32 प्रतिशत आदिवासी आरक्षण के पक्ष में रमन सरकार ने ननकीराम कंवर कमेटी के सिफारिश को न्यायालय में प्रस्तुत नहीं किया। तब वो सब मौन क्यों थे? क्या ननकीराम कंवर रिपोर्ट को प्रस्तुत करने रमन सरकार पर दबाव बनाते तो क्या रामविचार नेताम, विक्रम उसेंडी, रामसेवक पैकरा और महेश गागड़ा, विक्रम मरकाम को अपने कुर्सी जाने का खतरा महसूस हो रहा था?
प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता धनंजय सिंह ठाकुर ने कहा कि असल मायने में आरएसएस और भाजपा के बड़े नेता कई बार सार्वजनिक मंचों से आरक्षण को खत्म करने की बात कह चुके हैं।
ऐसे में एसटी और एससी वर्ग के बीच आरक्षण की लड़ाई करा कर आरक्षण से दोनों वर्गों को वंचित करने का षड्यंत्र रमन सरकार ने रचा था और आज वह साबित भी हो गया। भाजपा से जुड़े आदिवासी नेता आज अपने समाज को गुमराह कर रहे हैं। असल मायने में 32 प्रतिशत आरक्षण कम होने के पीछे सिर्फ पूर्व भाजपा सरकार की नाकामी रही है।
आज रमन सरकार की गलतियों पर पर्दा करने भाजपा का अनुसूचित जाति जनजाति प्रकोष्ठ सड़कों पर लड़ाई लड़ने की बात कर रहे हैं और जब न्यायालय में लड़ाई लड़ने की बारी थी तब यही नेता खामोश और दुबके हुए बैठे थे।