स्वामी शारदानंद महाराज का दुखद निधन….अंतिम संस्कार में शामिल होने छग से गए शिष्यगण
(शशि कोन्हेर) – रायपुर-बिलासपुर। प्रयागराज आश्रम में रह रहे स्वामी शारदानंद महाराज का रविवार को दुखद निधन हो गया,अंतिम संस्कार सोमवार शाम को होगा जिसमें शामिल होने के लिए छत्तीसगढ़ से काफी संख्या में उनके शिष्य मैनपुरी गए हैं। जैसे कि मालूम हो स्वामी जी के पेट में काफी समय से शिकायत थी। इसका इलाज कराने के लिए वे अपने भक्तों के साथ रविवार को नईदिल्ली स्थित मेदांता हास्पिटल पहुंचे थे। यहां डाक्टरों ने उनके स्वास्थ्य की जांच की। साथ ही उन्होंने बिस्तर में बैठकर ही डाक्टरों को सारी समस्या बताई। इसके कुछ देर बाद ही उनका निधन हो गया। स्वामी शारदानंद की उम्र लगभग 80 वर्ष थी। जैसे ही स्वामी के आत्मा में लीन होने की खबर आई देश के अलावा विदेश में रह रहे उनके शिष्यों में शोक की लहर छा गई। शारदानंद महाराज माहभर पहले ही बिलासपुर प्रवास पर आए थे। वे एक निजी अस्पताल के उद्घाटन कार्यक्रम में शामिल हुए। वहीं 25 सितंबर को अंबिकापुर में आयोजित सहशस्त्रचंडी महायज्ञ, संत सम्मेलन व भागवत कथा महायज्ञ में प्रवचन देने पहुंचे थे।
स्वामी शारदानंद महराज आदिवासियों से बहुत प्रेम करते थे। यही वजह है कि उन्होंने कोरबा के केंदई फाल में उनका आश्रम था। एक शिष्य ने बताया कि केंदई फाल में आदिवासी वर्ग के उत्थान के लिए कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। यहां बीते 35 सालों से आदिवासी गरीब परिवार के बच्चों की शादी निशुल्क कराई जाती है। साथ ही उन्हें जीवन यापन के लिए घरेलू सामान भी दिए जाते हैं। इन जोड़ों को स्वामी शारदानंद महराज अपने शिष्यों को सौंप देते थे। शिष्य माता-पिता की तरह ही उनकी देखभाल करते हैं। साथ ही मतांतरित हो चुके आदिवासी परिवारों की घर वापसी के लिए भी मुहिंंम चलाई जाती है। स्वामी शारदानंद महाराज का अंतिम संस्कार सोमवार की शाम चार बजे उत्तरप्रदेश के होगा। उनके अंतिम दर्शन के लिए बड़ी संख्या में शिष्य सोमवार को मैनपुरी के लिए रवाना होंगे।
महामंडलेश्वर स्वामी आत्मानंद महाराज के प्रवचन की खासियत यह थी कि वे पुराण, उपनिषद या अन्य धर्म ग्रन्थों में वर्णित विषयों को उदाहरण के साथ आसानी से समझाते थे। यही वजह थी कि सामान्य इंसान को भी उनका प्रवचन बांधे रखता था। इससे प्रवचन का व्यापक स्तर पर प्रभाव भी पड़ता था।