गांव-गांव में चल रही लुआई मिसाई और किसानों की जान के दुश्मन बने हैं जनपदों के अति बुद्धिमान सीईओ..जिला प्रशासन निर्देश दे
(शशि कोन्हेर) : बिलासपुर। खरीफ धान की कटाई लुगाई मिंजाई और सरकार का कर्ज चुकाने तथा समर्थन मूल्य पर धान बेचने के हिसाब से जिले के गांव गांव में यह समय कितना महत्वपूर्ण और मारामारी वाला है। इसे हर छत्तीसगढ़िया जानता है। लेकिन जिले के जनपद पंचायतों में बैठे मुख्य कार्यपालन अधिकारियों को इससे कोई लेना-देना नहीं है।जिले के गांव गांव में काम करने वाले कुछ बदनामशुदा (जिनका नाम सभी जानते हैं)पंचायत सचिव और रोजगार सहायक, जनपद के सीईओ के लिए उगाही के हथियार बने हुए हैं। मतलब जो भी इनके चक्कर में पड़ेगा उसे अपनी जेब कटवाने ही पड़ेगी। अपने-अपने सीईओ की कमाई के लिए दिन भर दौड़ भाग करने वाले बेचारे ग्राम ये सचिव तथा रोजगार सहायक इन दिनों सीईओ की हठधर्मिता के कारण गांव के किसानों के दुश्मन बने हुए हैं। उन्हें क्यों समझ में नहीं आता कि जब गांव में लुआई मिसाई धान की कटाई या फिर बुवाई चलती है तब गांव में रोजगार गारंटी का काम नहीं किया जाता।
रोजगार गारंटी का काम व्यवहारिक रूप से तभी किया जाता है जब भूमि हीन ग्रामीणों के पास गांव में कोई काम नहीं होता। लेकिन जनपदों में बैठे ताहुतदार और जरूरत से ज्यादा पढ़े लिखे मुख्य कार्यपालन अधिकारियों को शायद छत्तीसगढ़ और यहां के कार्य व्यवहार तथा ग्रामीण पारिस्थितियों का कोई ज्ञान नहीं है। अभी गांव गांव में लुगाई, मिसाई समर्थन मूल्य पर धान की बिक्री के लिए किसान हाय तौबा मचा रहे हैं। ठीक है ऐसे समय में हमारे जनपद पंचायतों के बुद्धिमान मुख्य कार्यपालन अधिकारियों ने रोजगार गारंटी का काम जबरिया शुरू कर दिया है। इसके कारण किसानों के धान की खरीद फसल की कटाई मिसाई और समर्थन मूल्य पर बैंकों तक ले जाने में मजदूरों की जबरदस्त किल्लत का सामना करना पड़ रहा है।
जनपद पंचायतों के अविवेकपूर्ण मुख्य कार्यपालन अधिकारियों के कारण कहीं-कहीं धड़ल्ले से ऐसे समय में भी रोजगार गारंटी का काम चल रहा है। जिससे किसानों को एक तो लेबर नहीं मिल रहे हैं और मिल भी रहे हैं तो इतनी अधिक कीमत चुकानी पड़ रही है जिससे उनका दिवाला निकलना तय है। लेकिन इससे जनपद पंचायतों के मुख्य कार्यपालन अधिकारियों को क्या फर्क पड़ता है। उन्हें इससे कोई लेना-देना नहीं है। उन्हें तो बस बारहों माह अपने ऊपर माल मलाई की अमृत वर्षा के इंतजाम की चिंता लगी रहती है। यह ठीक है कि चांदी की सिल्लियों पर बैठे कुछ कार्यपालन अधिकारियों को यह बात समझ में नहीं आ रही है लेकिन क्षेत्र के जनप्रतिनिधि और प्रशासन के अधिकारियों को तो सारा कुछ पता है। तब फिर भी ऐसे “टाइम कू टाइम” रोजगार गारंटी का काम युद्ध स्तर पर चलाने वाले जनपदों के सीईओ पर अंकुश क्यों नहीं लगाते..?