शांति के टापू बिलासपुर को अधकचरे बिल्डरों, नवधनपिशाचों, नराधम सूदखोरो,सुपरफास्ट नेतागिरी, बेखौफ गुण्डागिरी और सुस्त प्रशासनिक अमरबेल और चिंदी चोरों की लगी बुरी नजर..!
(शशि कोन्हेर) : बिलासपुर : बात भले ही हजारों मील दूर की हो पर दर्द हमारा भी वही है। आज सुबह के अखबारों में ब्रिटेन के ताजा-ताजा प्रधानमंत्री बने ऋषि सुनक का एक बयान मेरा ध्यान खींच ले गया। इस बयान में प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने कहा…मेरी बेटी अकेले बाहर जाना चाहती है…लेकिन पिता होने के नाते मुझे उसकी सुरक्षा की चिंता लगी रहती है। और यह बोलते हुए ऋषि सुनक ने संकल्प लिया कि वे ब्रिटेन की तमाम सड़कों को महिलाओं और लड़कियों के लिए बेहद सुरक्षित (महफूज) बनाना चाहते हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि अपराध घटाने के लिए अपराधियों को हर हाल में पकड़ना ही होगा। इससे जेलों में भीड़ बढ़ेगी। लेकिन मुझे उसकी चिंता नहीं है। हम 10,000 और नई जेलें बना लेंगे। लेकिन ब्रिटेन की सड़कों पर लड़कियों और महिलाओं तथा आम जनों के लिए हर हाल में सुरक्षित बनाएंगे। ऋषि सुनक की चिंता और भारत छत्तीसगढ़ तथा बिलासपुर में रहने वाले माता-पिता की चिंता बिल्कुल एक समान है। यहां भी घर के बाहर निकलते पर लड़कियों महिलाओं और पुरुषों की भी सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं है।
मतलब यह कि छत्तीसगढ़ तथा बिलासपुर के निवासियों का दर्द और भय वही है, जो ब्रिटेन के भारतीय मूल के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक का है। ब्रिटेन की तरह ही हर हिंदुस्तानी लड़कियों और महिलाओं के लिए हमारे देश प्रदेश और शहर की सड़कें खतरनाक बनती जा रही हैं। हमारे देश में पहले ऐसा नहीं था। देश की बात तो दूर हमारे अपने छत्तीसगढ़ और बिलासपुर में भी ऐसा नहीं होता था।
लेकिन आज यहां लड़कियों के घर से बाहर निकलते ही माता पिता और भाइयों की पेशानी पर बल आ जाते हैं। जमाने के दस्तूर को देखते हुए बिलासपुर के लोग ना तो अपने घरों की लड़कियों, महिलाओं, युवा छोकरों को घरों से बाहर आने जाने से मना कर सकते हैं। और ना ही घर के बाहर (कई बार भीतर भी) उनकी सुरक्षा की कोई गारंटी ही हासिल कर सकते हैं। ब्रिटेन में तो भारतीय मूल के ऋषि सुनक जनता की नब्ज पकड़ते हुए प्रधानमंत्री पद की लेने के तुरंत बाद एक और शपथ ले ली कि वहां की सड़कों को वह हर हाल में लड़कियों तथा महिलाओं के लिए सुरक्षित (महफूज)बनाएंगे।
फिर इसके लिए चाहे जो करना पड़े। लेकिन अफसोस कि हमारे अपने देश प्रदेश और तो और बिलासपुर शहर में वह दिन कब आएगा जब यहां के नेता और प्रशासन, गौ माता की पूंछ पकड़कर ऐसी कसम खाने का साहस दिखाएंगे। बात अगर बिलासपुर की ही करें 25-30 साल पहले तक बिलासपुर छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश और विदर्भा का ऐसा अकेला शहर हुआ करता था। जहां लोग कुछ दिन के लिए आते थे। फिर यहीं के होकर रह जाते थे।
लेकिन अब ना वो दौर रहा, ना हालात। शांति के टापू बिलासपुर को आज अधकचरे बिल्डरों, छूट भैये नेताओं, सुपरफास्ट नेतागिरी, गुंडागिरी और गो स्लो के नारे लगाते प्रशासन की नजर लग गई है। हत्याएं, बलात्कार अपहरण, चाकूबाजी, घरों जमीनों पर कब्जा करने वालों की दादागिरी, राह चलती महिलाओं लड़कियों से जिल्लत भरी छेड़खानी करने वाले छोकरे और इन सब को संरक्षण देने वाली राजनीति ने बिलासपुर के शांत फिजां और अमन पसंद माहौल का कबाड़ा कर दिया है।
आज घर से बाहर निकलते ही लड़कियों और महिलाओं की बात तो दूर शहर का कोई भी सुरक्षित नहीं है। अब यहां कोई भी महफूज नहीं रह गया है। बिलासपुर के इस विषाक्त वातावरण और रोजगार के मामले में हर दिन बंजर होती जा रही यहां की धरती, अब हमारे ही शहर की पढी लिखी और उद्यमशील युवा पीढ़ी को रास नहीं आ रही है। बिलासपुर के लोगों को इन सब बातों पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। वरना हमारी अपनी अगली पीढ़ी, नौकरी-रोजगार और बेहतर स्वास्थ्य तथा पर्यावरण के लिए बिलासा की नगरी छोड़कर दूर कहीं बंगलुरु, चेन्नई हैदराबाद, गाजियाबाद या फिर दिल्ली में बसने को मजबूर हो जाए जहां और अधिक संगठित अपराधियों के चलते जीवन और भी असुरक्षित हो चला है। आज शहर में ऐसे घरों की कमी नहीं है।
जहां के बच्चे काफी दूर मेट्रो सिटीज में रह रहे हैं। और बिलासपुर के घरों का मोह नहीं छोड़ने वाले उनके बुजुर्गोंवारों की मृत देह दो-दो तीन-तीन दिन तक बर्फ की सिल्लियोंं पर पड़ी अंतिम संस्कार के लिए बच्चों के पहुंचने का इंतजार करने पर मजबूर होने लगी है।