बन गया तो… सीवरेज..! और नहीं बना तो,.. दुनिया का सबसे महंगा 450 करोड़ का जनाजा..!
(शशि कोन्हेर) : बिलासपुर। ऐसा लगता है कि बिलासपुर शहर की सीवरेज परियोजना को लेकर बिलासपुर नगर निगम तथा शहर के कर्ताधर्ताओं का हाल उस बंदरिया की तरह हो गया है जो अपने मृतबच्चे को, यह जानकर भी अपने सीने से लगाए रहती है कि वह मर चुका है। लेकिन इसके बाद भी बंदरिया उसे छोड़ती नहीं और अपने सीने से लगाए यहां-वहां आती जाती रहती है। 14 साल पहले सन 2008 में बिलासपुर शहर को झूल धक्कड़ व मच्छर मुक्त कराने और शहर का जलमल भूमिगत नाली के जरिए शहर से बाहर निकालने का लक्ष्य लेकर इस सीवरेज परियोजना का काम शुरू किया गया था। यह जब शुरू हुआ तब इसकी लागत मात्र 180 करोड रुपए थी। और इसे 24 महीने में तैयार हो जाना था। लेकिन इस सचाई से सभी वाकिफ हैं कि 14 महीने में करोड़ों रुपए खर्च कर बनने वाली यह परियोजना आज 14 साल बीतने के बावजूद ना तो पूरी हुई है और ना इस बात की कोई गारंटी है कि इस परियोजना से बनी भूमिगत नालियों से बिलासपुर शहर का जल और मल बाहर निकल सकेगा। शहर के लोगों का दावा है कि इस परियोजना की पाइप लाइन से ना तो शहर का जल और ना ही मल बाहर निकलने वाला है। 14 साल पहले बनी 180 करोड़ रुपए की इस परियोजना की लागत अब लगभग 500 करोड रुपए तक जा पहुंची है। जबकि इस पर अभी तक 400 करोड रुपए से भी अधिक रकम न्यौछावर की जा चुकी है। प्रदेश में 15 साल तक रही भाजपा सरकार के जाति बिराती काल में इस सीवरेज प्रोजेक्ट को लेकर यह प्रचारित किया गया कि अरपापार सरकंडा क्षेत्र में इसका काम पूरा हो गया है। और तब के मुख्यमंत्री डॉक्टर रमन सिंह के द्वारा नदी के उस पार सरकंडा क्षेत्र के लिए इस योजना का उद्घाटन भी कर दिया गया। लेकिन तब जिन लोगों ने इस योजना का कनेक्शन लिया था उन सभी ने दो चार दिनों में ही कनेक्शन कटवा कर इससे तौबा कर ली। उनका कहना है कि घर का जलमल बाहर निकलने की बजाय इसके पाईप लाईन से बाहर का जलमल घर में आ रहा था।
14 साल बाद आज भी कहा जा रहा है कि इस परियोजना का 20% से ज्यादा काम बाकी है। मेरे ख्याल से लागत को देखते हुए 14 साल के बाद भी आधी अधूरी रहने वाली इस योजना का नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में शामिल किया जाना चाहिए। इस परियोजना को लेकर आज शहर की जनता कुछ सवाल पूछ रही है। इसमें एक तो यह है कि अभी बाकी बताया जा रहा 20% काम के पूरा होने के बावजूद क्या यह प्रोजेक्ट बिलासपुर के जलमल को शहर के बाहर ले जा सकेगा..? सभी को शक है कि ऐसा नहीं होगा। दरअसल हम सभी को यह सच्चाई स्वीकार कर लेनी चाहिए कि 14 साल और 400 करोड रुपए खपाने के बाद भी यह परियोजना पूरी तरह फेल हो चुकी है। और बिलासपुर के कर्णधार इस मर चुकी परियोजना का कफन दफन करने की बजाय, (अपने मर चुके बच्चे को सीने से लगाए घूम रही बंदरिया की तरह) इस परियोजना पर और भी करोड़ों रुपए खर्च करने के मूड में दिखाई दे रहे हैं। बिलासपुर शहर में 70 और 80 के दशक में भी इसी तरह की एक भूमिगत नाली योजना, जमींदोज हो चुकी है। वहीं अब इस सीवरेज का हाल आईसीयू में भर्ती उस मरीज की तरह हो गया है। जिसकी किडनी, लीवर हार्ट, लंग्स,ब्रेन सब फेल हो चुका है। इसलिए एक बार फिर इस परियोजना की विजिबिलिटी की परीक्षा कर आगे कदम उठाना चाहिए। हमें तो ऐसा लगता है कि अब आने वाले 5 सालों के विचार इस योजना का जनाजा उठना तय है। उसकी केवल दिन और तिथि तय होनी है। और जिस दिन इस प्रोजेक्ट का जनाजा उठेगा… संभवत यह दुनिया का सबसे महंगा (450 करोड़ का) जनाजा रहेगा।। और इसका श्रेय किसे दिया जाना चाहिए…यह बिलासपुर की जनता अच्छे से जानती है।