छत्तीसगढ़ में उर्दू और सिंधी अकादमी तो है, पर छत्तीसगढ़ी भाषा की अकादमी…?
(शशि कोन्हेर) : छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़ी भाषा की दुर्दशा का आलम चिंताजनक है। छत्तीसगढ़ी भाषा के लिए जो कुछ किया जाना चाहिए। उसकी और किया जा रहा दुर्लक्ष आगे जाकर छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़ी के विकास में कितने रोड़े अटका आएगा..? इस पर हर छत्तीसगढ़िया को गंभीरता के साथ विचार करना चाहिए। इस बात में कोई दो मत नहीं है कि छत्तीसगढ़ी लोक परंपरा और संस्कृति को लेकर प्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का कोई सानी नहीं है। लेकिन वहीं यह भी दुर्भाग्य जनक है कि उनके ही कार्यकाल में छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग के अध्यक्ष का पद साढे 4 साल से खाली पड़ा हुआ है।
उस आयोग में 10 से 12 स्थाई कर्मचारी और लाखों का बजट ना तो छत्तीसगढ़ के काम आ रहा है और ना ही छत्तीसगढ़ी भाषा के। ठीक ऐसा ही हाल छत्तीसगढ़ी भाषा की अकादमी गठन के मामले में है। किसी भी भाषा की अकादमी का गठन उस भाषा की सेहत, सूरत, सीरत और भविष्य के लिए ठोस सुविचारित कदम माना जाता है। लेकिन छत्तीसगढ़ के कर्णधार शायद ऐसा नहीं मानते।
अगर ऐसा नहीं होता तो छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़ी भाषा की अकादमी की स्थापना कब की हो चुकी होती..? आश्चर्य की बात यह है कि छत्तीसगढ़ में सिंधी अकादमी और उर्दू अकादमी तथा संस्कृत की अकादमी तो है। लेकिन ना तो यहां की मातृभाषा छत्तीसगढ़ी की अकादमी है और ना ही देश की राष्ट्रभाषा हिंदी की। इन दोनों अकादमियों का गठन या स्थापना क्यों नहीं की गई..? इस सवाल का जवाब किससे मांगा जाए..? और साथ ही एक और सवाल..कका के मुख्यमंत्री रहते हुए ऐसा क्यों हो रहा है..?