पार्टी एक परिवार चला रहा हो तो समूह टूटने में क्या बुराई, शिवसेना बिखरने पर बोला SC
(शशि कोन्हेर) : उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने गुरुवार को उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे समूहों के बीच शिवसेना पार्टी के भीतर दरार से संबंधित मामलों में फैसला सुरक्षित रख लिया।
मामले में उच्चतम न्यायालय ने उद्धव ठाकरे के वकील अभिषेक मनु सिंघवी से सवाल भी पूछे। शिवसेना में टूट के कारण जुलाई 2022 में महाराष्ट्र में सरकार बदल गई थी। याचिका में कई मुद्दों पर शिंदे और ठाकरे गुट के सदस्यों द्वारा दायर याचिकाएं शामिल हैं।
मुख्य न्यायाधीश ने सिंघवी से पूछा, आप उद्धव ठाकरे सरकार को बहाल करने की मांग कैसे कर सकते हैं। आपने इस्तीफा दे दिया था। जस्टिस एम.आर. शाह ने पूछा, अदालत उस सरकार को कैसे बहाल कर सकती है, जिसने विश्वास मत का सामना नहीं किया।
यदि आप विश्वास मत खो चुके हैं तो यह एक तार्किक बात होगी, ऐसा नहीं है कि आपको सरकार ने बेदखल कर दिया है। बात यह है कि आपने विश्वास मत का सामना ही नहीं किया। सिंघवी ने कहा, ‘क्योंकि राज्यपाल ने गैरकानूनी तरीके से फ्लोर टेस्ट बुलाया था। वहां आज भी गैरकानूनी सरकार चल रही है, कोई चुनाव हुआ ही नहीं।’
बागी विधायकों को भाजपा में विलय की क्या जरूरत
उच्चतम न्यायालय ने उद्धव ठाकरे की शिंदे गुट द्वारा विलय की दलीलों पर सवाल उठाया। कोर्ट ने पूछा, शिवसेना के बागी विधायकों को भाजपा में विलय की क्या जरूरत थी। विलय होने के बाद उनकी पहचान नहीं रहती, वो तो अब भी शिवसैनिक की राजनीतिक पहचान के साथ हैं।
ठाकरे की ओर से सिंघवी ने कहा कि वैसे तो हर पार्टी में असंतुष्ट हैं, लेकिन उनसे निपटने के और भी समुचित उपाय है। लेकिन ये कैसे हो सकता है कि आप असंतुष्ट होकर सरकार को ही अस्थिर कर उसे गिरा दें, इसलिए व्हिप का उल्लंघन करने के बजाय आप सदस्यता छोड़ दें।
पार्टी परिवार चला रहा तो समूह में टूटने में क्या बुराई
पीठ के एक जज जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा ने कहा कि पार्टियों में लोकतंत्र बचा ही नहीं है। पार्टियों को एक परिवार के व्यक्ति चला रहे हैं। उनके सामने किसी का कोई विरोध नहीं चलता। ऐसे में समूह के रूप में टूटकर अगल होने में क्या बुराई है।
यह तर्क कभी-कभी खतरनाक भी हो सकता है, क्योंकि पार्टी में एक नेता के अलावा बिल्कुल भी आजादी नहीं है। कई बार इसे एक ही परिवार चलाता है। फ्रेम में किसी और के आने की कोई गुंजाइश नहीं है। आप यह कहने के लिए संविधान की व्याख्या कर रहे हैं कि यह किसी विधायक के लिए संभव नहीं है।