बिलासपुर

मोदी मंत्रिमंडल में बदलाव की चर्चाओं पर, क्यों लगे अचानक ताले..? न अरुण साव मंत्री बने, न विजय बघेल या गोमती साय और गुहाराम अजगले…फेरबदल की खबरों ने भी खुदकुशी कर ली शायद..!

(शशि कोन्हेर) : बिलासपुर – आज से लगभग 1 माह पहले मीडिया में सुर्खियां बटोरने वाली केंद्रीय मंत्रिमंडल में फेरबदल की खबरें, अब गायब हो चुकी हैं। जनवरी…उससे अधिक फरवरी में लगभग सभी समाचार पत्रों-छोटे बड़े न्यूज़ पोर्टलों में दावे के साथ खबरें छापी जा रही थी कि बजट के पहले या होली के पहले अथवा बजट के तुरंत बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल में फेरबदल सौ फीसदी तय है। और “एक गिरा ज्योंहि खाड़ में सबै जाहिं तेहि बाट” जैसे भेड़िया धसान मुहावरे के अनुसार केंद्रीय मंत्रिमंडल में फेरबदल के खबरों की मीडिया में एकाएक बाढ़ सी आ गई थी।

अनुमान भी लगाया जाए जाने लगे थे कि बजट के ठीक पहले अथवा होली के ठीक बाद या फिर अमुक अमुक समय में फेरबदल होकर रहेगा। और जब फेरबदल की खबरें आ रही थी। तो इन खबरों में यह भी बताना जरूरी था कि किन्हें हटाया जा रहा है और किन नये लोगों को शामिल किया जाएगा। बस फिर क्या था..? फेरबदल की खबरों को पंख लग गए। हर खबर में अपनी सुविधा के अनुसार मंत्रिमंडल में शामिल होने वाले संभावित सांसदों के नाम की घोषणा होने लगी।

किसी ने कहा कि प्रदेश भाजपा अध्यक्ष और बिलासपुर से सांसद का अरुण साव का नाम केंद्रीय मंत्रिमंडल के लिए तय हो गया है। तो किसी खबर में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की काट के रूप में विजय बघेल का नाम लिया जा रहा था। किसी खबर में कहा जा रहा था कि सोशल इंजीनियरिंग के तहत सतनामी समाज को अपनी ओर करने के लिए भाजपा, गुहाराम अजगले को केंद्रीय मंत्री बनाने जा रही है। किसी खबर में गोमती साय तो कहीं सुनील सोनी…! मतलब सभी सांसदों का नाम उछाला जाने लगा। लेकिन अब कहां गई वो फेरबदल की खबरें। फेरबदल के अनुमानों के गलत साबित होते ही फेरबदल को लेकर चल रही खबरों का सिलसिला भी गायब हो गया।

अब पिछले 1 महीने से कोई भी इस पर चर्चा करता नहीं दिख रहा। अब राहुल गांधी को लेकर केंद्र में मचे नए झंझावात के बवंडर में फेरबदल की तूती भी सुनाई देनी बंद हो गई है। और इसके साथ उन उम्मीदों ने भी दम तोड़ दिया है जो छत्तीसगढ़ को केंद्रीय मंत्रिमंडल में और अधिक प्रतिनिधित्व मिलने की आस को खाद पानी दे रही थीं। केंद्रीय मंत्रिमंडल में फेरबदल की संभावनाएं जिस तरह लापता हो गई उसके चलते यह अनुमान लगाना कठिन हो गया है कि क्या उन संभावनाओं ने खुदकुशी कर ली या फिर स्वाभाविक मौत को गले लगा लिया। बहरहाल, अब खबरनवीसों ने फेरबदल के अनुमानों को छोड़कर, नई-नई खबरों की दूसरी दुकानें सजा ली हैं।

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