फायर सेफ्टी के मामले में ज्वालामुखी के मुहाने पर खड़ा है बिलासपुर का अपोलो अस्पताल… हास्पिटल प्रबंधन और फायर सेफ्टी विभाग के संदिग्ध प्रभारी की लापरवाही से ही हुई आगजनी की घटना..
बिलासपुर। अपोलो अस्पताल में लगी गुरुवार को लगी “आग” कोई दुर्घटना या हादसा नहीं, वरन घोर लापरवाही का नतीजा है। अपने फायर सेफ्टी को लेकर खुद की पीठ थपथपाने वाले अपोलो प्रबंधन को शायद इस बात की जानकारी ही नहीं है कि उसके इस विभाग के ढोल में कितने पोल हैं। 300 बिस्तरों वाले इस नामी-गिरामी अस्पताल में फायर सेफ्टी का काम देखने वाली टीम में एक तो जरूरत से काफी कम कर्मचारी हैं। दूसरे इस कार्य के प्रभारी से लेकर नीचे तक सभी फायर सेफ्टी वर्कर पूरी तरह प्रशिक्षित और पात्र भी नहीं है। जरा सोचिए…अगर आग लगने की घटना दिन की बजाए रात्रि के समय और आईसीयू जैसे वार्ड में लगी होती तो क्या होता..? इसकी कल्पना से ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। जैसी की जानकारी मिली है अपोलो प्रबंधन के द्वारा फायर सेफ्टी जैसे अत्यंत महत्वपूर्ण और जोखिम भरे काम का प्रभार ऐसे व्यक्ति को दिया गया है जिसके पास मौजूद डिप्लोमा की जांच जरूर की जानी चाहिए।
फिर इस प्रभारी का ध्यान, अपोलो के फायर सेफ्टी से कहीं अधिक अपोलो से बाहर दूसरों के नाम से, ठेकेदारी के तहत चलाए जा रहे हैं अपने निजी कार्यो पर ज्यादा रहता है। फायर सेफ्टी का प्रभारी अपोलो का पूर्णकालिक कर्मचारी है। लेकिन उसके द्वारा बिलासपुर शहर में अपोलो की गुडविल की आड़ में फायर सेफ्टी के बहुत सारे काम लिए गए हैं। ऐसे में वह अपोलो अस्पताल के फायर सेफ्टी से जुड़े कार्यों में इतना समय नहीं दे पाता जितना देना चाहिए। फिर फायर सेफ्टी विभाग में कर्मचारी भी बहुत कम है। उस पर वे पूरी तरह प्रशिक्षित भी नहीं है। इस विभाग में प्रभारी को मिलाकर कुल 4 या 5 लोग ही काम कर रहे हैं। जबकि 450 बेड वाले अपोलो में कम से कम 30 से 40 कर्मचारी इस विभाग में होने चाहिए।
रात्रि में केवल 1 कर्मचारी ड्यूटी पर रहता है। अपोलो प्रबंधन भी इस अति संवेदनशील विभाग को लेकर जिस तरह लापरवाही बरत रहा है उसे देखते हुए यह दावा नहीं कहा जा सकता है कि अपोलो में आगजनी की ऐसी घटना इसके बाद फिर कभी नहीं होगी। फायर सेफ्टी को लेकर अपोलो प्रबंधन का जो रवैया है उसमें ऐसी घटनाएं अपेक्षित ही कहीं जाएंगी। आमतौर पर अपोलो प्रबंधन अपने परिसर के भीतर हुई किसी भी अप्रिय घटना अथवा वारदात की जांच कर उसकी सच्चाई बाहर लाने की बजाय तथ्यों को छुपाने मैं अधिक रूचि लेता है। इसलिए जिला प्रशासन और जिले के स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख अधिकारी को इस आगजनी को हल्के में न लेकर इसकी पूरी गंभीरता से जांच करनी चाहिए। जैसे 450 बेड वाले इस अस्पताल में फायर सेफ्टी के तहत कितने कर्मचारी चाहिए..?
इस विभाग के प्रभारी के पास उसके मौजूदा पद की पात्रता है अथवा नहीं..? उसके पास जो डिप्लोमा है उसकी भी जांच होनी चाहिए..? साथ ही उसने अपोलो के अलावा दूसरे नामों से बिलासपुर शहर में कहां कहां और कितने भवनों तथा निर्माणाधीन अथवा बन चुके चिकित्सालयों में फायर सेफ्टी का काम ले रखा है..? अगर इन सारे सवालों का जवाब तलाशा जाएगा। तभी आने वाले समय में अपोलो में आगजनी की ऐसी आपदा पर विराम लगाया जा सकेगा। लेकिन फायर सेफ्टी को लेकर प्रबंधन के मौजूदा रवैया को देखते हुए यही कहा जाएगा कि बिलासपुर संभाग का यह सबसे बड़ा अस्पताल फायर सेफ्टी के मामले में ज्वालामुखी के मुहाने पर ही खड़ा है।
ये ठीक है कि अपोलो अस्पताल निजी मिल्कियत वाला अस्पताल है। लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि वहां भर्ती होने वाले अधिकांश मरीज हमारे अपने इसी प्रदेश के रहते हैं। और उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी शासन प्रशासन की है। इसलिए जिला प्रशासन को भी आगजनी की इस घटना को पूरी गंभीरता से लेकर जरूरी कार्रवाई करनी चाहिए। अगर ऐसा नहीं किया जाता तो हमें अपोलो में आगजनी की ऐसी और दुर्भाग्यजनक घटनाओं के लिए मानसिक रूप से तैयार रहना चाहिए।