IAS जी कृष्णा की पत्नी ने बाहुबली आनंद मोहन की रिहाई पर कहां.. ईमानदार अधिकारी को मारने वाला छूट गया
(शशि कोन्हेर) : IAS जी.कृष्णैया की पत्नी टी. उमा देवी ने आनंद मोहन की रिहाई पर अफसोस जताया है.उन्होंने, पूर्व सांसद आनंद मोहन को बिहार जेल नियमों में हुए बदलाव के तहत रिहा करने के संबंध में कहा कि ईमानदार अधिकारी को मारने वाला छूट गया. उन्हेंने इसे अन्याय बताया है साथ ही कहा कि सरकार ने बहुत गलत फैसला लिया है.
राष्ट्रपति और पीएम से हस्तक्षेप करने की रखी मांग
IAS कृष्णैया की पत्नी ने कहा कि एक ईमानदार अफसर की हत्या करने वाले को छोड़ा जा रहा है, इससे हम समझते हैं कि न्याय व्यवस्था क्या है? उन्होंने कहा कि राजपूत समुदाय सहित अन्य समुदायों में भी इस रिहाई का विरोध होना चाहिए. उसे रिहा नहीं किया जाना चाहिए, उसे दंडित किया जाना चाहिए और मौत की सजा दी जानी चाहिए. उमा देवी ने कहा कि ‘मैं प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति से इस मामले में हस्तक्षेप करने और इसे रोकने का अनुरोध करती हूं.’
वहीं, अपनी रिहाई के ठीक बाद, आज तक को दिए गए अपने इंटरव्यू में आनंद मोहन ने कहा कि, जो लोग मेरी रिहाई का विरोध कर रहे हैं, वह कोर्ट की अवमानना कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि 2007 में उन्हें सजा मिली थी. इसके बाद 2012 में एक एक्ट आया. इसके आधार पर ही उन्हें रिहाई मिली है. वैसे भी अजीवन कारावास का मतलब, जिंदगी भर नहीं होता है. इसका मतलब होता है 20 साल की सजा. उन्होंने आगे कहा,’अगर किसी भी कैदी का आचरण अच्छा होता है तो 14 साल की सजा काटने के बाद उसे रिहा किया जा सकता है और अपने केस में मैं 15 साल की सजा काट चुका हूं. डीएम जी. कृष्णैया की मौत पर आनंद मोहन ने कहा कि उनकी मौत का उन्हें भी दुख है.
पांच दिसंबर 1994 की है घटना
ये घटना पांच दिसंबर 1994 की है. बिहार में एक गैंगस्टर के मारे जाने के बाद मुजफ्फरपुर की जनता में आक्रोश था. इसी दौरान गोपालगंज की डीएम रहे जी. कृष्णैया अपनी सरकारी गाड़ी से उसी रास्ते से आ रहे थे. आक्रोशित भीड़ ने उन्हें लिंच किया था और डीएम को गोली भी मारी गई थी. आरोप था कि डीएम की हत्या करने वाली उस भीड़ को कुख्यात आनंद मोहन ने ही उकसाया था. यही वजह थी कि पुलिस ने इस मामले में आनंद मोहन और उनकी पत्नी लवली समेत 6 लोगों को नामजद किया था.
2008 में उम्रकैद में बदली थी सजा
ये केस अदालत में चलता रहा और साल 2007 में पटना हाईकोर्ट ने आनंद मोहन को दोषी करार दिया और फांसी की सजा सुना दी. आजाद भारत में यह पहला मामला था, जब एक राजनेता को मौत की सजा दी गई थी. हालांकि 2008 में इस सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया गया. साल 2012 में आनंद मोहन सिंह ने सुप्रीम कोर्ट से सजा कम करने की अपील की थी, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया था. तभी से वो जेल में बंद थे
बिहार सरकार ने ऐसे दी रिहाई
इसके बाद, बिहार की वर्तमान सरकार ने कुख्यात आनंद मोहन सिंह को जेल से बाहर निकालने की तरकीब निकाली. राज्य सरकार ने इसी साल 10 अप्रैल को जेल नियमावली में एक संशोधन कर डाला और उस खंड को हटा दिया, जिसमें अच्छा व्यवहार होने के बावजूद सरकारी अफसरों के कातिलों को रिहाई देने पर रोक थी. राज्य गृह विभाग ने बिहार जेल नियमावली, 2012 के नियम 481 (1) ए में संशोधन की जानकारी एक नोटिफिकेशन जारी करके दी थी.