मजिस्ट्रेट ने दिया मनमाना फैसला तो भड़का HC….केस को वापस भेज कहा- पहले सारे Evidence देखो और फिर से लिखो जजमेंट
(शशि कोन्हेर) : महाराष्ट्र के एक मजिस्ट्रेट ने ऐसा फैसला दे किया जो बेसिरपैर का था। मामला बांबे हाईकोर्ट के पास पहुंचा तो फैसले को देखकर जस्टिस एसजी मेहरे भड़क गए। उन्होंने केस मजिस्ट्रेस को वापस भेजकर आदेश दिया कि फैसला दोबारा लिखा जाए। हाईकोर्ट के तेवर इतने तल्ख थे कि मजिस्ट्रेट से पूछा गया कि जजमेंट का दिल और आत्मा कहां हैं। जस्टिस का कहना था कि फैसले के लिए जो नियम गढ़े गए हैं कोर्ट ने उन्हें ही अनदेखा कर दिया।
मामले के मुताबिक मजिस्ट्रेट की कोई ने मारपीट के मामले के चार आरोपियों को इस आधार पर बरी कर दिया कि उनके खिलाफ लगाए आरोप साबित नहीं होते। ये वारदात 2005 में हुई थी। पुलिस ने मामले में चार लोगों को आरोपी बनाया था। पीड़ित ने मजिस्ट्रेट के फैसले के खिलाफ बांबे हाईकोर्ट में रिव्यू पटीशन दायर की थी। बाकू पटेल नामके शख्स का कहना था कि फैसले में उसके बयान का कोई जिक्र नहीं है।
न मेडिकल रिपोर्ट देखी और न ही IO को किया तलब
मजिस्ट्रेट ने उस मेडिकल रिपोर्ट का भी जिक्र अपने फैसले में नहीं किया जो वारदात की सारी कहानी को तफसील से बयां कर रही थी। यही नहीं अभियोजन पक्ष के गवाहों के बयानों का जिक्र भी लोअर कोर्ट ने फैसले में नहीं किया। कोर्ट ने जांच अधिकारी को समन करने की जहमत तक नहीं उठाई। वारदात में जो हथियार इस्तेमाल हुए थे, पुलिस उन्हें भी तलाश नहीं कर सकी है।
बांबे हाईकोर्ट के जस्टिस एसजी मेहरे ने फैसले को देखने के बाद कहा कि अभियोजन पक्ष के गवाहों को लिस्ट तो किया गया लेकिन मजिस्ट्रेट ने उनसे मिले साक्ष्यों को लेकर एक शब्द भी अपने फैसले में नहीं लिखा। जांच अधिकारी को न बुलाने की तुक भी जस्टिस मेहरे की समझ में नहीं आई। हाईकोर्ट का कहना था कि जांच अधिकारी को कोर्ट में न बुलाना तो सीधे पीड़ित पक्ष को नुकसान पहुंचाने जैसा है।
जस्टिस एसजी मेहरे ने मजिस्ट्रेट के खिलाफ तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि कानून के जरूरी सिद्धांतों का भी उनको पता नहीं है। फैसला क्यों दिया गया इसकी वजह तो बताई जानी चाहिए। मजिस्ट्रेट ने कहीं पर नहीं बताया कि वो ऐसा फैसला क्यों दे रहे हैं। ये सरासर गलत है। उन्होंने मजिस्ट्रेट को आदेश दिया कि सारे एविडेंस को फिर से देखने के बाद वो फिर से जजमेंट लिखें।