बिलासपुर। (शशि कोन्हेर के साथ जयेंद्र गोले) जरा सोचिए कि आप अपने होटल से लगे एक कमरे में आराम से सो रहे हैं। उसी समय अचानक रात को 12 बजे के बाद एक कार बेकाबू होकर होटल और उससे लगे कमरे में घुस जाय। और होटल का पूरा सामान बिखेर दें। टेबल कुर्सियां टूट जाएं। ईश्वर की कृपा से होटल के भीतर सो रहे आप आपकी पत्नी एक बच्चा और एक मिस्त्री की जान बच जाए। और इस जानलेवा आपराधिक मामले की रिपोर्ट सरकंडा थाने में करने के बाद भी 3 दिनों तक पुलिस को जांच करने की फुर्सत ना मिले तो उसे आप क्या कहेंगे। कुछ ऐसा ही हादसा हुआ है ।
रपटा चौक के पास दीपक गुप्ता नामक व्यक्ति के गुप्ता जी स्वीट्स होटल में। मंगलवार की रात 12 बजे के बाद एक कार बेकाबू होकर धड़ाधड़ाते इनके होटल में घुस गई। सारा सामान क्षतिग्रस्त कर दिया। चारों ओर टूट-फूट हो गई। उस समय होटल में ही सो रहे दीपक गुप्ता उनकी पत्नी एक बच्ची और एक मिस्त्री बहुत ही भाग्यशाली थे कि इतनी भयंकर दुर्घटना में भी उनकी जान नहीं गई। केवल मिस्त्री को खरोच आई है।
रात को 12 बजे के बाद पूरी तरह बेकाबू होकर तेज रफ्तार में धड़ाधड़ाते हुए होटल में घुस जाने वाली इस कार का नंबर सीजी 04 डीक्यू 5678 बताया जा रहा है। यह गाड़ी रिट्ज गाड़ी है और रायपुर के किसी हनीश उपाध्याय के नाम से रजिस्टर्ड है। इतना सब पता दुर्घटना से पीड़ित लोगों ने लगा लिया। दुर्घटना होते ही उन्होंने पुलिस को इसकी सूचना दे दी थी। इस दुर्घटना में होटल संचालक को 3 से 4 लाख रुपए का नुकसान हो गया।
लेकिन रिपोर्ट लिखाने के बाद भी सरकंडा पुलिस के कानों में जूं नहीं रेंगी। उसने कार्रवाई करना तो दूर, मौके पर पहुंचकर बस रस्म अदायगी कर अपने हांथ झाड़ लिए। दरअसल आजकल सरकंडा थाना के स्टाफ को जमीन-जायदाद संबंधी बहुत सारे मलाईदार कार्यों का बोझ झेलना पड़ता है। इसलिए एक्सीडेंट जैसे मामूली कामों के लिए उसके पास वक्त नहीं है। सवाल यह है कि होटल में सो रहे परिवार की जान को खतरे में डालने वाले रिड्ज चालक को आखिर पुलिस क्यों नहीं पकड़ रही है।
बताया गया कि दुर्घटना के दौरान होटल में कार घुसने के बाद कार चालक ने गाड़ी को तुरंत रिवर्स किया और भाग गया। यह सारी बातें सरकंडा पुलिस को बताई जा चुकी हैं। इसके बावजूद अभी तक पीड़ित को न्याय नहीं मिल पाया है। और सरकंडा पुलिस का जैसा रवैया इस मामले में दिखाई दे रहा है उसे देखते हुए उसे न्याय करने की उम्मीद भी बेकार लग रही है। सवाल यह है कि कार दुर्घटना का शिकार व्यक्ति और उसका परिवार त्रासदी के कारण रोजी रोजगार से हाथ धो बैठेने के बाद और कितने दिनों तक दाने-दाने को मोहताज रहे..?