केदारनाथ से कन्याकुमारी और कामाख्या से द्वारका तक जलेसर की गूंज…..
(शशि कोन्हेर) : महज कुछ वर्ग किलोमीटर में फैला ये क्षेत्र किसी के लिए भी अनजान हो सकता है, लेकिन देश भर में फैले मंदिरों के लिए नहीं। ये यहीं की मिट्टी है, जो केदारनाथ से कन्याकुमारी तक या फिर कामाख्या से द्वारका तक मंदिरों में घंटे की टंकार उत्पन्न कर रही है। जी हां, जलेसर है ही ऐसा। कहा जाता है कि शायद ही देश का कोई मंदिर हो, जहां यहां के बने घंटे न बजते हों।
जलेसर की मिट्टी घंटा बनाने के लिए बेहतर
जानकार बताते हैं कि जलेसर में बनने वाले घंटे की ध्वनि से देर तक ध्यान लगाना आसान रहता है। दावा किया जाता है कि घंटा एक बार बजाने पर उसकी आवाज एक मिनट तक गूंजती है। यहां की मिट्टी में काफी कमाल की है। इस मिट्टी से जो घंटा बन जाता है उसका की आवाज में खनक बढ़ जाती है।
घंटों के अलावा घुंघरू, घंटी, दीपक व मजीरा बनाने का देश भर का 40 फीसदी काम जलेसर में ही होता है। इसके अलावा जिन स्थानों पर पीतल से जो भी सामान बनते है वहां भी जलेसर की मिट्टी का ही प्रयोग किया जाता है। इसमें मुरादाबाद, पुणे, बनारस, इंदौर एवं भटिंडा प्रमुख हैं। यहां की मिट्टी देश के करीब आधा दर्जन शहरों में जाती है।
केदारनाथ के बाहर लगा घंटा, जलेसर का ही
केदारनाथ में हादसे के बाद वहां किए पुनरुद्धार कार्य में जलेसर से ही भेजे गए घंटे लगाए गए थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पुनरुद्धार के लोकार्पण के दौरान मंदिर में जो घंटा बजाया था वह भी जलेसर का ही बना था। यह घंटा पूर्व पालिकाध्यक्ष विकास मित्तल की फैक्ट्री से बनकर गया था।
राम मंदिर के लिए भी बनाए गए हैं यहां से घंटे
अयोध्या में चल रहे राम मंदिर निर्माण कार्य के लिए भी जलेसर से ही घंटे बनाकर भेजे जा रहे हैं। ये कई आकार में हैं। इसके लिए निर्माणदायी संस्था की ओर से ऑर्डर दिया गया था।
अखाड़ों में भी जाती है जलेसर की मिट्टी
देश के विभिन्न अखाड़ों में भी जलेसर से ही मिट्टी जाती है। अखाड़ा तैयार होने के बाद करीब एक-एक फुट जलेसर की मिट्टी ऊपर डाली जाती है। मुख्य रूप से दिल्ली का हनुमान अखाड़ा, बनारस आदि के अखाड़ों में मांग रहती है।
ओडीओपी में शामिल है घुंघरू-घंटी उद्योग
राज्य सरकार ने जलेसर के उद्योग की महत्ता को देखते हुए इसे एक जिला एक उत्पाद की श्रेणी में रखा है। इन्वेस्टमेंट समिट के दौरान भी इस उद्योग को बढ़ावा देने के लिए करीब 100 करोड़ के निवेश का प्रस्ताव आया था, जिस पर काम चल रहा है। जलेसर में घुंघरू-घंटी से जुड़ी करीब 350 इकाइयां हैं, जिनमें करीब पांच हजार मजदूर काम करते हैं।
यहां सुबह चार बजे ही हो जाता है दिन
सुबह चार बजते ही जलेसर की भट्ठियों में काम शुरू हो जाता है। दोपहर होते ही इस काम को बंद कर देते हैं। भट्ठियों की आग के सामने बैठने वाले कारीगर पांच घंटे से अधिक कार्य नहीं करते। दो शिफ्टों में भट्ठियों में काम होता है। अधिकांश भट्ठियां कस्बे के लोगों ने अपने ही घरों में बना रखी हैं। पीतल का कच्चा माल लेने के बाद तराशने के लिए दूसरे लोगों को दे दिया जाता है।