अभी कहां है चंद्रयान-3, लॉन्चिंग के 12वें दिन हासिल की बड़ी सफलता……
(शशि कोन्हेर) : 12 दिन पहले चंद्रयान-3 को लॉन्च किया गया था। इसरो ने मंगलवार को चंद्रयान-3 को लेकर बड़ा अपडेट दिया है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के वैज्ञानिकों ने ‘चंद्रयान-3’ को चंद्रमा की कक्षा में ऊपर उठाने की पांचवें चरण की प्रक्रिया (भू-समीपक कक्षा में पहुंचाना) मंगलवार को सफलतापूर्वक पूरी कर ली। यह कार्य बेंगलुरु में इसरो टेलीमेट्री, ट्रैकिंग एंड कमांड नेटवर्क (आईएसटीआरएसी) से किया गया।
इस तरह से चंद्रयान-3 चांद के थोड़ा और करीब पहुंच गया है। इसरो ने कहा, ”यान के 127609 किलोमीटर X 236 किलोमीटर की कक्षा में पहुंचने की उम्मीद है। अवलोकन के बाद हासिल की गई कक्षा की पुष्टि की जाएगी।”
चंद्रयान-3 ने 14 जुलाई को चंद्रमा की सतह के लिए उड़ान भरी थी। इसरो ने कहा, ”चंद्रयान को कक्षा में ऊपर उठाने की अगली प्रक्रिया ‘ट्रांसलूनार इंजेक्शन (टीएलआई)’ एक अगस्त 2023 को मध्य रात्रि 12 बजे से एक बजे के बीच की जाएगी।”
इसरो के एक अधिकारी ने बताया कि टीएलआई की प्रक्रिया के बाद चंद्रयान-3 पृथ्वी की कक्षा से बाहर निकल जाएगा और उस पथ पर अग्रसर हो जाएगा, जो उसे चंद्रमा के करीब ले जाएगा। अधिकारी के मुताबिक, दूसरे शब्दों में कहें तो एक अगस्त को टीएलआई प्रक्रिया पूरी होने के बाद यान पृथ्वी की कक्षा से बाहर निकल जाएगा और चंद्रमा के करीब पहुंचने के अपने सफर की शुरुआत करेगा।
उन्होंने बताया कि टीएलआई प्रक्रिया चंद्रयान-3 को ‘लूनार ट्रांसफर ट्रैजेक्टरी’ (चंद्र स्थानांतरण प्रक्षेपवक्र) यानी चंद्रमा की कक्षा में दाखिल होने के सफर पर ले जाएगी। इसरो ने कहा है कि वह आगामी 23 अगस्त को चंद्रयान-3 की चंद्रमा की सतह पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ कराने की कोशिश करेगा।
इसरो ने चंद्रयान-3 को 14 जुलाई को सतीश धवन स्पेस सेंटर, श्रीहरिकोटा से लॉन्च किया था। इसका उद्देश्य चंद्रमा तक पहुंचकर उससे जुड़ी अहम जानकारियों को जुटाना है। चार साल पहले साल 2019 में भी इसरो ने चंद्रयान-2 को लॉन्च किया था। हालांकि, उस वक्त चंद्रमा पर लैंडिंग करने के दौरान मायूसी हाथ लगी थी।
इस बार सॉफ्ट लॉन्चिंग के लिए चंद्रयान-3 में कई तरह के बदलाव भी किए गए हैं। अंतरिक्ष यान का वजन 3,900 किलोग्राम है, जिसमें प्रणोदन मॉड्यूल का वजन 2,148 किलोग्राम और रोवर सहित लैंडर मॉड्यूल का वजन 1,752 किलोग्राम है। मिशन का लक्ष्य चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में उतरना है, जहां पानी होने की संभावना है। सफल होने पर, भारत उन विशिष्ट देशों के समूह में शामिल हो जाएगा -अमेरिका, रूस और चीन – जिन्होंने यह उपलब्धि हासिल की है।