युग तुलसी महाराज रामकिंकर को कल निर्वाण दिवस पर श्रद्धा सुमन
(शशि कोन्हेर) : रायपुर। युग तुलसी पद्मभूषण महाराजश्री रामकिंकर के सगुण लीला संवरण के दिवस को समस्त शिष्य परिवार समर्पण दिवस के रूप में नमन करते हैं। महाराजश्री को नहीं रहे 21 वर्ष बीत जाने के बाद भी पूरे विश्व में उनका स्मरण उसी श्रद्धा भाव और आदर से किया जाता हैं क्योकि आध्यात्म जगत में उनका योगदान अप्रतिम हैं। 9 अगस्त को उनके निर्वाण दिवस पर समूचे छत्तीसगढ़ में भी साधक परिवार उन्हे श्रद्धा सुमन अर्पित करता।
है,महाराजश्री को छत्तीसगढ़ से विशेष लगाव था। उन्हे याद करते हुए दीदी मंदाकिनी कहती हैं पूज्य गुरुदेव ने अपने को बढ़ा धोता ,बड़ा पोथा ,पंडता पगडा बड़ा के कथा वाचकत्व से बचाकर अपने वक्तृत्व को प्रवचन का ऐसा वृक्ष का स्वरुप दिया जिसकी हर टहनी में एक न एक जीवन तत्व प्रतिष्ठित हैं -पारिवारिकता का,नागरिकता का,धार्मिकता का,राष्ट्रीयता का और मानवीयता का..यह एक असाधारण कार्य था।
उन्होने धर्म को कर्म कांड के मायाजाल से निकलकर आध्यात्म और सामाजिक नैतिकता के आसन पर बैठाने जैसा राष्ट्रीय कार्य किया। जिस तरह से लोकमान्य तिलक ने गीता रहस्य के द्वारा भगवत गीता को नकली वैराग्य के बीहड़ जंगल से निकाल कर कर्म संघर्ष के मोर्चे पर बैठाया था ,उसी तरह महाराजश्री रामकिंकर ने अपनी विशाल परिकल्पना से रामचरितमानस का वैचारिक कायाकल्प किया हैं.ये कह सकती हूँ की पूज्य गुरुदेव ने प्रवचन की नयी शैली का आविष्कार किया।
हिमालय में एक नन्ही घास होती हैं,सर्दियों में जब बफऱ्बारी होती हैं तो घास बर्फ से ढक जाती है। बर्फ सख्त कठोर पत्थर जैसा जम जाता हैं और ठंडा इतना की उंगलिया गलकर गिर जाए.पर अप्रैल-मई की गर्मी में बर्फ पिघल कर नदियों का पानी बन जाती हैं और आश्चर्य कि वह घास लहराती मिलती हैं.वह घास हमारी सनातन संस्कृति का सर्वोत्तम प्रतीक हैं जो बहरी तत्वों को आत्मसात कर शीतलता और कठोरता में भी पनपती रहती हैं.युग तुलसी महाराजश्री रामकिंकर इसी संस्कृति के शिखरस्त व्याख्या कवि हैं.
पूज्य गुरुदेव का अनूठा भाव दर्शन वैसा ही उनका जीवन दर्शन अपने आप में एक संपूर्ण काव्य हैं..श्री रामचरितमानस के अन्तर्रहस्यों को प्रगट करते हुए,आपने जो अभूतपूर्व एवं अनूठी दिव्य दृष्टि प्रदान की हैं..जो भक्ति ज्ञान का विश्लेषण तथा समन्वय, विश्व के सम्मुख रखा हैं ,उस प्रकाश स्तम्भ के दिग्दर्शन में आज सारे इष्ट मार्ग आलोकित हो रहे हैं।
मानस सागर में बिखरे हुए विभिन्न रत्नो को संजोकर आपने अनेक आभूषण रुपी ग्रंथो की रचना की हैं.मानस मंथन,मानस चिंतन ,मानस दर्पण,मानस मुक्तावलि ,मानस चरितावली जैसी आपकी 100 से अधिक अमृतमयी अमर कृतियाँ हैं जो असंख्य भक्तों को दिग दिगान्तर तक प्रेरित अनुप्राणित करती रहेंगी.
रामायणं आश्रम अयोध्या में 9 अगस्त 2002 को युग तुलसी समाधिस्थ हो गए..आज उस समाधि मंदिर में उनका दर्शन करने,साहित्य प्राप्त करने देश देशान्तर से मत मतान्तर के लोग आते हैं और अपनी ऐसी भावनाये और उदगार उड़ेलते हैं कि मुझे परम पूज्य गुरुवार के नित नए रूपों का दर्शन मिलता रहता हैं।