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उद्धव ठाकरे ने छोड़ा साथ, तो मुश्किल में आ जाएगा ‘हाथ’?

शिवसेना (उद्धव ठाकरे) के प्रमुख उद्धव ठाकरे के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के लिए बदले सुर ने महाराष्ट्र की राजनीति से लेकर देश की राजनीति तक अटकलों का नया दौर शुरू हो गया है। इससे जहां विपक्षी गठबंधन INDIA में संशय पैदा हुआ है, वहीं भाजपा नेताओं ने भी दबे सुर कहना शुरू कर दिया है कि राजनीति में दरवाजे कभी बंद नहीं होते हैं।

विपक्षी गठबंधन के दो बड़े मजबूत माने जाने वाले राज्य बिहार और महाराष्ट्र की राजनीति में बड़े बदलाव दिखने लगे हैं। बिहार में तो नीतीश कुमार ने राजग में आकर ‘INDIA’ को करारा झटका दिया ही है, अब महाराष्ट्र में भी वैसी ही सुगबुगाहट है?

उद्धव ठाकरे ने एक दिन पहले एक रैली में कहा कि वह मोदी को बताना चाहते हैं कि हम कभी आपके दुश्मन नहीं थे। आज भी दुश्मन नहीं है। वह और शिवसेना उनके साथ थी। हमने पिछली बार अपने गठबंधन के लिए प्रचार किया था। आप प्रधानमंत्री बने। बाद में आपने हमें खुद से दूर कर दिया। हमारा हिंदुत्व और भगवा ध्वज आज भी कायम है।

ठाकरे का यह बयान उस समय आया है जबकि लोकसभा चुनावों से पहले विपक्षी गठबंधन ‘INDIA’ दरक रहा है और भाजपा नए पुराने साथियों को जोड़ रही है। महाराष्ट्र में भाजपा ने दो दलों शिवसेना और एनसीपी को तोड़कर अपने साथ लिया है। दोनों ही दलों के अधिकांश नेता भाजपा के साथ हैं। ऐसे में विपक्षी गठबंधन बेहद कमजोर हुआ है। उद्धव ठाकरे सदन से लेकर अदालत व चुनाव आयोग तक पार्टी व चुनाव चिन्ह की लड़ाई हार चुके हैं। एनसीपी और कांग्रेस के साथ चुनाव में जाने पर उनकी दिक्कतें और बढ़ सकती हैं।

उद्धव को ही बालासाहब ठाकरे का उत्तराधिकारी माना जाता है
भाजपा के लिए शिवसेना के ठाकरे गुट का साथ आना लाभ का सौदा होगा। दरअसल जमीन पर जनता के बीच अभी भी उद्धव ठाकरे को ही बालासाहब ठाकरे और शिवसेना का उत्तराधिकारी माना जाता है। राज्य की जनता ने बाल ठाकरे के भतीजे राज ठाकरे की पार्टी को स्वीकार नहीं किया था। ऐसे में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे वाली शिवसेना को जनता कितना स्वीकार कर पाएगी?

एनसीपी की अधिकांश ताकत अजित पवार के साथ पहले ही भाजपा के साथ है। ऐसे में अगर उद्धव ठाकरे की राजग में वापसी होती है तो महाराष्ट्र में ‘INDIA’ का कोई अर्थ नहीं रह जाएगा। भाजपा के एक प्रमुख नेता ने ठाकरे के बयान पर कहा है कि राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं और दरवाजे कभी बंद नहीं होते हैं।

सबसे बड़ा असर कांग्रेस पर पड़ेगा
इसका सबसे बड़ा असर कांग्रेस पर पड़ेगा, जो गठबंधन राजनीति में लगातार अलग थलग पड़ती जा रही है। जिन नेताओं और दलों पर उसे ज्यादा भरोसा था वही साथ छोड़ रहे हैं। दूसरी तरफ भाजपा की कोशिश कांग्रेस को अलग थलग कर उसे और ज्यादा निचले स्तर पर ले जाने और खुद को चार सौ पार ले जाने पर है।

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