मुख्तार अंसारी को दूसरी बार उम्रकैद, फर्जी शस्त्र लाइसेंस मामले में आजीवन कारावास..
माफिया मुख्तार अंसारी को फर्जी तरीके से डबल बैरल बंदूक का लाइसेंस लेने के मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई गई है। मुख्तार पर दो लाख दो हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया गया है। विशेष न्यायाधीश (एमपी-एमएलए) अवनीश गौतम की अदालत ने पूर्व विधायक बाहुबली मुख्तार अंसारी को आईपीसी की धारा 428, 467, 468, 120बी व आर्म्स एक्ट की धारा 30 के तहत मुख्तार पर आरोप सिद्ध होने पर दोषी माना था।
इस दौरान बांदा जेल से वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए मुख्तार अंसारी भी अदालत में हाजिर हुआ। पिछले डेढ़ सालों में मुख्तार अंसारी को आठवें मामले में सजा सुनाई गई है। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय राय के भाई अवधेश राय की हत्या में भी मुख्तार को उम्रकैद की सजा हुई थी।
अदालत ने मुख्तार अंसारी को धारा चार धाराओं में अलग-अलग सजा सुनाई है। धारा 467 में आजीवान कारावास और एक लाख का जुर्माना लगाया गया है। जुर्माना नहीं देने पर छह माह की अतिरिक्त सजा भुगतनी होगी। धारा 420 में 7 वर्ष की सजा सुनाई गई है।
50 हजार का जुर्माना भी लगाया गया है। जुर्माना नहीं देने पर तीन महीने की अतिरिक्त सजा भुगतनी होगी। धारा 468 में सात वर्ष की सजा और 50 हजार का जुर्माना लगाया गया है। जुर्माना नहीं देने पर तीन महीने की अतिक्त सजा भुगतनी होगी।
इसके अलावा 30 आयुष अधिनियम में छह माह की सजा और दो हजार का जुर्माना लगाया गया है। इसमें जुर्माना नहीं देने पर एक सप्ताह अतिरिक्त सजा भुगतनी होगी। अदालत ने यह भी कहा कि सभी सजाएं साथ-साथ चलेंगी। जेल में पहले से बिताए गए समय को सजा में समायोजित भी किया जाएगा।
1987 का है मामला
मुख्तार अंसारी ने 10 जून 1987 को दोनाली बंदूक के लाइसेंस के लिए गाजीपुर के जिला मजिस्ट्रेट को प्रार्थना पत्र दिया था। तत्कालीन डीएम व एसपी के फर्जी हस्ताक्षर से संस्तुति पत्र प्रस्तुत कर शस्त्र लाइसेंस ले लिया गया था।
फर्जीवाड़ा उजागर होने पर सीबीसीआईडी ने चार दिसंबर 1990 को गाजीपुर के मुहम्मदाबाद थाने में मुख्तार अंसारी, तत्कालीन डिप्टी कलेक्टर समेत पांच नामजद एवं कुछ अज्ञात के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था।
जांच के बाद तत्कालीन आयुध लिपिक गौरीशंकर श्रीवास्तव और मुख्तार अंसारी के विरुद्ध 1997 में अदालत में आरोप पत्र प्रेषित किया गया। मुकदमे की सुनवाई के दौरान गौरीशंकर श्रीवास्तव की मौत हो गई थी। इसके चलते उनके विरुद्ध वाद समाप्त कर दिया गया।
अभियोजन ने प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव आलोक रंजन, पूर्व डीजीपी देवराज नागर समेत 10 गवाहों के बयान दर्ज किए थे। पिछली कई तिथियों पर सुनवाई के दौरान आरोपी के वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीनाथ त्रिपाठी ने लिखित बहस के साथ हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की रूलिंग भी कोर्ट में दाखिल की थी। अभियोजन की ओर से भी रूलिंग पेश की गई थी।