ओल्ड टैक्स रिजीम का लाभ लेने के लिए इस डेट तक हर हाल में भर दें ITR..
वित्त वर्ष 2023-24 (एसेसमेंट ईयर 2024-25) के लिए आयकर रिटर्न भरने वाले करदाता सचेत रहें। जो करदाता पुरानी कर व्यवस्था को अपना कर आईटीआर (ITR) भरना चाहते हैं, उन्हें हर हाल में 31 जुलाई तक रिटर्न दाखिल करना होगा। इसमें चूकने पर पुरानी व्यवस्था का लाभ नहीं मिलेगा और नई प्रणाली के आधार पर आयकर की गणना की जाएगी।
एक अप्रैल 2024 से आकलन वर्ष 2024-25 के लिए आयकर रिटर्न भरने की शुरुआत हो गई है। इसमें आईटीआर दाखिल करने के नियमों में बड़ा बदलाव किया गया है।
इसके तहत जो करदाता बिना जुर्माना चुकाए 31 जुलाई 2024 तक की अंतिम समयसीमा के भीतर आयकर रिटर्न दाखिल करेंगे, उन्हें ही पुरानी कर व्यवस्था का लाभ दिया जाएगा। इसके बाद न्यू टैक्स रिजीम की डिफॉल्ट प्रणाली लागू हो जाएगी।
गौरतलब है कि 31 जुलाई की समयसीमा समाप्त होने के बाद टैक्सपेयर्स को जुर्माने के साथ विलंबित आईटीआर दाखिल करने का मौका दिया जाता है। इसकी अंतिम तिथि 31 दिसंबर होती है।
अगर कोई करदाता इस अवधि में आईटीआर दाखिल करता है तो उस पर न्यू टैक्स रिजीम के अनुसार आयकर देय होगा। उसे पुरानी व्यवस्था में मिलने वाली कर छूट और अन्य कटौतियों का लाभ भी नहीं मिलेगा। इससे बचने के लिए कर विशेषज्ञों ने 31 जुलाई तक रिटर्न दाखिल करने की सलाह दी है।
आयकर कानून के अनुसार, न्यू टैक्स रिजीम डिफाल्ट व्यवस्था है यानी करदाता के लिए यह पहले से ही लागू है। यदि कोई वेतनभोगी करदाता ओल्ड टैक्स रिजीम को चाहता है तो उसे नए वित्त वर्ष की शुरुआत में अपने नियोक्ता को इस संबंध में सूचित करना होगा।
अगर वह ऐसा नहीं करता है तो वह अपने आप नई कर व्यवस्था में आ जाएगा और इसके तहत तय इनकम टैक्स स्लैब के आधार पर उसके वेतन से टैक्स काटा जाएगा। आयकर रिफंड का दावा करने के लिए उन्हें अगले वित्तीय वर्ष तक इंतजार करना होगा।
यदि कोई टैक्सपेयर अपने नियोक्ता को सूचित करने में विफल रहता है, तब भी आयकर रिटर्न दाखिल करते समय टैक्स सिस्टम को बदल सकता है। बशर्ते यह नियत तारीख के भीतर किया गया हो। टैक्स एक्सपर्ट्स के अनुसार, अगर करदाता को लगता है कि नई अथवा पुरानी व्यवस्था में उसे अधिक फायदा पहुंच रहा तो है.।
तो आयकर रिटर्न दाखिल करते समय इसे बदल सकता है। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि हर साल कर व्यवस्था बदलने की यह सुविधा सिर्फ वेतनभोगियों के लिए है। कारोबारी या व्यापारी सिर्फ एक बार ही बदल सकते हैं, हर साल नहीं।
पुरानी कर व्यवस्था में 2.5 लाख रुपये की कर छूट मिलती है। इसमें 80सी के तहत 1.5 की कर छूट, 50 हजार की मानक कटौती और 50 हजार रुपये एनपीएस में योगदान के शामिल हैं। वहीं, नई व्यवस्था में केवल 50 हजार की मानक कटौती का ही लाभ मिलता है।