ये तो मनमानी है…गलत तरीके से कॉपी जांचने पर यूनिवर्सिटी पर भड़का HC..
जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाई कोर्ट ने हाल ही में कश्मीर यूनिवर्सिटी को कड़ी फटकार लगाते हुए एक छात्र को एक लाख रुपये मुआवजा देने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने सत्र 2017-18 के बीए के 5वें सेमेस्टर की परीक्षा में अंग्रेजी के एक पेपर में गलत मूल्यांकन करने पर यह निर्देश दिया है। पीड़ित छात्र ने आरोप लगाया था कि उसकी कॉपी सही तरीके से नहीं जांची गई औऱ उसे जानबूझकर फेल कर दिया गया, जबकि उसने सभी सवालों के जवाब अच्छे से दिए हैं।
कोर्ट ने मूल्यांकन के तौर तरीके पर सवाल उठाते हुए उसे अवैध और मनमाना करार दिया है। दरअसल, परीक्षा फल घोषित होने के बाद पीड़ित छात्र ने पाया कि सामान्य अंग्रेजी के पेपर में 38 उत्तीर्णांक की तुलना में उसे महज 27 अंक मिले हैं। इस वजह से वह उस विषय में फेल हो गया था। इसके बाद छात्र ने विश्वविद्यालय से अपनी उत्तर पुस्तिका की ज़ेरॉक्स कॉपी निकलवाई। उसमें उसने पाया कि उत्तर पुस्तिका के एक प्रश्न का मूल्यांकन ही नहीं किया गया था।
याचिका के अनुसार, इसके बाद छात्र ने उस कॉपी के पुनर्मूल्यांकन के लिए आवेदन किया। पुनर्मूल्यांकन के बाद छात्र को उस विषय में 40 अंक प्राप्त हुए लेकिन विश्वविद्यालय ने एक नियम के आधार पर 40 अंकों को घटाकर 34 कर दिया। इस तरह और इस प्रक्रिया से छात्र को फिर से फेल कर दिया गया। छात्र ने यूनिवर्सिटी के इस कदम के खिलाफ हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
कश्मीर यूनिवर्सिटी ने हाई कोर्ट में सौंपे अपने जवाब में यह तथ्य कबूल किया है कि छात्र की कॉपी के मूल्यांकन में चूक हुई थी और पुनर्मूल्यांकन करने पर छात्र ने 40 अंक प्राप्त किए हैं। लेकिन यूनिवर्सिटी ने कोर्ट को बताया कि ‘उत्तर पुस्तिकाओं के पुनर्मूल्यांकन से संबंधित विश्वविद्यालय के परिनियम 10’के मुताबिक उसके प्राप्तांक 40 को घटाकर 34 कर दिया गया। कोर्ट ने यूनिवर्सिटी के इस रूख पर नाराजगी जताई और कहा कि पुनर्मूल्यांकन प्रक्रिया छात्र को राहत देने के लिए है न कि उसे सजा देने के लिए।
कश्मीर ऑब्जर्वर की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस जावेद इकबाल ने अपने आदेश में कहा, “यहां शैक्षणिक मामलों से संबंधित अभिव्यक्तियों, ‘पुनर्मूल्यांकन’ और ‘पुनः जांच’ के अर्थ को समझना महत्वपूर्ण है।’पुनः जांच’ का मतलब किसी चीज की दोबारा जांच करना है, जिसमें छूटे हुए बिंदुओं को चिह्नित करने में त्रुटियों या विसंगतियों को दूर करने की प्रक्रिया या किसी अन्य त्रुटि/विसंगति जो मूल ग्रेड को प्रभावित कर सकती है।”
हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि सभी तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान से देखने पर यह पता चलता है कि प्रतिवादी (यूनिवर्सिटी) ने नासमझी की है और गलत तरीके से याचिकाकर्ता को फिर से परीक्षा में बैठने के लिए मजबूर किया है। इसके साथ ही कोर्ट ने यूनिवर्सिटी को आदेश दिया कि वह पीड़ित छात्र को एक लाख रुपये का मुआवजा 6 फीसदी वार्षिक ब्याज दर के साथ करे।