(भूपेंद्र सिंह राठौर) : बिलासपुर : जोनल स्टेशन से गुजरने वाली ट्रेनों की स्थिति ठीक नहीं है। इन ट्रेनों की हालत यह है कि यात्री शौचालय या गेट पर बैठकर सफर करने के लिए विवश है। दरअसल अभी अलग- अलग रेलवे में अधोसंरचना से जुड़े कार्य हो रहे हैं।
इसके चलते अधिकांश दिशा की ट्रेनों को रद कर दिया गया। ऐसे में यात्रियों को मंजिल पर पहुंचने के लिए गिनती की ट्रेनें ही मिल रही है।
बिलासपुर रेलवे स्टेशन से गुजरने वाली हावड़ा- अहमदाबाद की स्थिति कुछ इसी तरह थी। लंबी दूरी की इस ट्रेन के स्लीपर व जनरल कोच में पैर तक रखने की जगह नहीं थी। जिस तरह की स्थिति थी, उससे स्लीपर व जनरल कोच में कोई अंतर नजर नहीं आ रहा था। स्लीपर कोच के अंदर यात्री फर्श पर बैठे थे। वहीं शौचालय में खाली जगह पर यात्रियों को जमावड़ा था।
यात्रियों में नाराजगी थी और वह यह कह रहे थे कि रेलवे यात्रियों की परेशानियों को समझे बिना थोक में ट्रेनें रद कर देती है। यह सोचती तक नहीं कि यात्री, जिन्हें बेहद जरुरी काम से जाना है, वह मंजिल पर कैसे पहुंचेंगे। कम ट्रेनों के परिचालन की वजह से चलने वाली ट्रेनों में भीड़ अधिक रहती है। इसके चलते यात्रियों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
इतना ही नहीं मंजिल पर पहुंचने के लिए वह जान जोखिम में भी डालते हैं। इस ट्रेन के अधिकांश स्लीपर कोच व जनरल कोच के गेट की सीढ़ी पर यात्री बैठे नजर आए। सबसे विडंबना की बात है कि प्लेटफार्म पर आरपीएफ का स्टाफ तक नहीं था।
जो इन्हें मना करता। यात्री जान जोखिम में डालकर सफर करते नजर आए। जनरल कोच की हालत तो इतनी बदत्तर थी कि अंदर बैठे यात्रियों को सांस लेने तक की जगह नहीं थी। इसके बाद भी रेल प्रशासन व्यवस्था सुधारने में जरा भी दिलचस्पी नहीं लेता।
स्लीपर कोच में जिन यात्रियों को कंफर्म बर्थ थी, उनमें रेल प्रशासन के प्रति जबरदस्त नाराजगी दिखी। उनका कहना था कि फर्श व शौचालय के पास जितने यात्री बैठे हैं, उनमें ज्यादा वेटिंग टिकट वाले हैं। जितनी बर्थ, उतने रिजर्वेशन का सिस्टम रेलवे लागू ही नहीं करती। अधिक कमाई के चक्कर में यात्रियों को वेटिंग टिकट जारी कर दिया जाता है और वह इस यात्रा करने के लिए विवश रहते हैं। उनके कारण जिनका रिजर्वेशन है, उन्हें बेवजह की परेशानी होती है।