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दिन में दो बार समुद्र के गोद में समा जाता हैं महादेव का यह मंदिर….

देशभर में भगवान शिव के बहुत से प्राचीन मंदिर हैं. इस सभी मंदिरों की अपनी-अपनी मान्यताएं और पौराणिक इतिहास हैं. आपने अक्सर 12 ज्योतिर्लिंगों के बारे में सुना ही होगा लेकिन क्या कभी आपने भगवान भोलेनाथ के ऐसे मंदिर के बारे में सुना है, जो दिन में खुद गायब हो जाता है. इतना ही नहीं, इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग का जलाभिषेक समुद्र की लहरें खुद करती हैं. इस मंदिर की यही खासियत हमेशा से चर्चा का केंद्र बनी रहती है जिसकी वजह से इस मंदिर में दर्शन करने के लिए लाखों की संख्या में भक्त आते हैं. हम बात कर रहे हैं गुजरात के वड़ोदरा स्थित स्तंभेश्वर महादेव मंदिर की. चलिए जानते हैं इस मंदिर के गायब होने के पीछे का रहस्य.

स्तंभेश्वर महादेव मंदिर गुजरात के भरूच जिले में समुद्र के किनारे स्थित है. यह दिन में दो बार अपनी जगह से गायब हो जाता है जिस वजह से इस अनोखे मंदिर को गायब मंदिर भी कहा जाता है. दरअसल, मंदिर के गायब होने के पीछे कोई चमत्कार नहीं, बल्कि प्रकृति की मनोहरी घटना जुड़ी है. इस मंदिर की खोज करीब 200 साल पहले हुई थी.

मंदिर के समुद्र किनारे स्थित होने के कारण, जब समुद्र में ज्वार-भाटा यानी कि लहरें ऊपर उठती हैं, तब पूरा मंदिर समुद्र में समा जाता है. समुद्र में ज्वार कम होने के बाद ही इस लोग इस मंदिर में भगवान के दर्शन करते हैं . ऐसी नेचुरल एक्टीविटी सदियों से होता आ रही है. ज्वार के समय उठने वाली पानी की लहरें मंदिर में महादेव की शिवलिंग का जलाभिषेक करती हैं. यह घटना हर रोज सुबह और शाम में होती है.

इस मंदिर के निर्माण की कहानी का वर्णन स्कन्दपुराण में मिलता है. ऐसा कहा जाता है कि ताड़कासुर ने भगवान शिव की काफी कठोर तपस्या की थी, जिससे भगवान भोलेनाथ प्रसन्न हो गए थे और असुर से मनचाहा वरदान मांगने को कहा. वरदान में असुर ने मांगा कि उस असुर को सिर्फ भगवान शिव का छह महीने का पुत्र ही मार पाए.

भगवान शिव से वरदान मिलते ही ताड़कासूर ने सब जगह आतंक फैला दिया और सभी देवी-देवताओं और ऋषि-मुनियों को काफी परेशान कर दिया. असुर के अंतक से परेशान होकर सभी देवता और ऋषि-मुनि महादेव के पास पहुंचे और भोलेनाथ को सभी बात बताई जिसके बाद कार्तिकेय ने ही मात्र 6 दिन की आयु में ताड़कासुर का वध किया.

बाद में जब कार्तिकेय को ताड़कासुर के भगवान शंकर भक्त होने का पता चला तो वह काफी निराश हुए. भगवान विष्णु ने कार्तिकेय से कहा कि इस पाप से मुक्ति पाने के लिए वह असुर के वधस्थल पर शिवालय बनवा दें. इसके बाद ही सभी देवताओं ने मिलकर महिसागर संगम तीर्थ पर विश्वनन्दक स्तम्भ की स्थापना की, जिसे आज के समय में स्तम्भेश्वर तीर्थ के नाम से जाना जाता है.

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