बिलासपुर

यूपी-बिहार की कारीगरी बिलासपुर मे घोलती है मिठास, स्थानीय को ये काम नही लगता खास


(दिलीप जगवानी) : बिलासपुर – दीपावली से पहले महंगाई काफ़ी बढ़ गईं है हालांकि शक़्कर के बताशे की क़ीमत बढ़ने का कारण जरा इतर है. बिलासपुर मे इसकी मांग दीपावली पर्व पर अधिक रहती है. अमीर गरीब सभी त्यौहार पर लक्ष्मी पूजन मे बताशा जरूर शामिल करते है.

कारीगरी का कमाल की हर सेकेण्ड मे एक बताशा मतलब दिन भर मे एक कारीगर अपने सहयोगी की मदद से तीन क्विटल तक तैयार क़र लेता है. यहाँ इस समय हर साल बड़े पैमाने मे बताशे बनाये जाते है. शनिचरी के चना मंडी औऱ चिंगराजपारा मे दीपावली का प्रमुख मिष्ठान बनाया जा रहा है. आपको जानकर हैरानी होंगी की इनमे एक भी लोकल बताशा कारीगर नही है. कई साल हुए स्थानीय लोगो ने खुद से इसका निर्माण करना बंद क़र दिया है.

कहते है यह काम सधे हाथों औऱ चाशनी की परख रखने वाला व्यक्ति ही अच्छी तरह क़र सकता है. चना मुर्रा के लोकल व्यवसाई दीपावली से महीना भर पहले कारीगरो को बुलावा भेज देते है जिससे वे बड़ी संख्या मे पहुंचकर आर्डर का माल तैयार करते है. बड़े से गंज मे शक़्कर का स्टॉक भरकर भट्ठी से लगा क़र रखा जाता है जिससे यह आसानी से खड़ी कढ़ाई मे उबाला जा सके. अपने उस्ताद से या फिर परिवार से विरासत मे यह कला सीखने वाले कारीगर इस साल भी उप्र औऱ बिहार से शहर पहुंचे है.

वे बताते है की उन्हें छत्तीसगढ़ मे ज्यादा बेहतर मेहनताना मिलता है. महीने भर हाड़तोड़ मेहनत करने के बाद यह लोग अच्छी खासी रकम यहाँ से लेकर घर लौट जाते है. सीजन के लिए इस समय उप्र औऱ बिहार के अलग अलग शहरों से 30 से ज्यादा संख्या मे कारीगर पहुंचे है.


खुले बाजार मे 42 की शक़्कर का एक किलो बताशा 100 रु किलो बिक रहा, जबकि थोक भाव 60 से 65 है. बाहर से कारीगर बुलाकर बताशा की स्थानीय मांग पूरा कराने से लागत बढ़ना स्वाभाविक है. शहर मे पुराने व्यवसाई परम्परागत चीजे बाजार को अभी तक दे रहे है वरना बताशा नयी पीढ़ी के लिए भुलाने वाली चीजों मे कब का शामिल हो जाता.


परफेक्ट तार की चाशनी का ज्ञान होने से कढ़ाई से टपक कर मोटे कपड़े पर सफ़ेद करारे बताशे मिनटों मे बन जाते है. खाने योग्य सफ़ेद पाउडर छिड़क देने से चाशनी कपड़े पर चिपकती, बताशा बनाने सामान्य से अधिक सफ़ेद शक़्कर का चयन किया जाता है. काम जोखिम भरा होता है इस लिए खौलती चाशनी वाली कढ़ाई को उपर बाँधी रस्सी के सहारे बताशा बनाते समय दाये बाये औऱ आगे पीछे करना आसान होता है. बनाते समय निगाह इसी पर टिकी रहती है. करीब दो सौ डिग्री ताप पर खौलती चाशनी से तैयार होता है बताशा.

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