“22 मार्च विश्व जल दिवस विशेष” : प्रशासनिक उदासीनता व जन उपेक्षा का शिकार नगर के तालाब
(विजय दानिकर) : बिलासपुर – इस वर्ष मार्च महीना से ही गर्मी ने अपना तेवर दिखाना शुरू कर दिया है दिनों दिन तापमान में बढ़ोतरी होते जा रही है और ऐसे में तालाबों की नगरी से प्रसिद्धि प्राप्त रतनपुर जो अपने में प्रत्येक तालाब के ऐतिहासिक व धार्मिक महत्व को समेटे हुए हैं तो यह धर्म सरोवर वाले तालाब आज की स्थिति में अपनी दुर्दशा की आंसू बहा रहा है और धीरे-धीरे अपना अस्तित्व खोते जा रहा है।
तालाबों का सबसे बड़ा नासूर बेजा कब्जा है जिसके कारण तालाबों की दुर्गति हो गई है ना तो अब इन तालाबों में पहले जैसे पानी का जल भराव हो पा रहा है और न ही कमल के फूल व पुरइन के पत्ते दिखाई पड़ रहे हैं इन तालाबों में प्रदूषण व गंदगी की भरमार है। यहां के कुछ तालाब जिनकी हम बात करते हैं जैसे विकमा तालाब, कृष्णार्जुनी तालाब, घीकुड़िया तथा कुंवरपार जैसे तालाबों में जलकुंभी ने तो अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया है और इन तालाबों के पानी इतना ज्यादा प्रदूषित हो चुका है कि इसे पीना तो दूर इसमें नहाया भी नहीं जा सकता,ये बताते हैं कि लोग कभी इन तालाबों का पानी पीते थे किंतु आज की स्थिति में इन तालाबों के पानी का उपयोग करना बीमारीयों को न्योता देना है।
रतनपुर में ऐतिहासिक तौर पर देखें तो यहां 1400 तालाब होने का उल्लेख मिलता है किंतु अभी वर्तमान में नगर पालिका रिकॉर्ड में 150 से अधिक तालाब है लेकिन सब की समस्या एक जैसी बनी हुई है ,यहां के तालाबों पर लोग बलात बेजा कब्जा कर रहे हैं जो प्रशासनिक उदासीनता का एक उदाहरण व प्रमाण है तथा तालाब के कुछ रासुदखोरों द्वारा कुछ तालाबों को अपना निजी मिल्कियत बताने में भी पीछे नही हट रहे हैं, जिस पर इन बेजा कब्जा धारियों के चलते तालाब के मुहाने पूरी तरह बंद हो चुका हैं जिससे इन तालाबों में जलभराव नही हो पाता, साथ ही इन कब्जा धारियों के चलते तालाबों का रकबा धीरे-धीरे सिमटते जा रहा है इस तरह से रतनपुर के उपेक्षा का शिकार है। और तालाबों का अस्तित्व खतरे में है।