छत्तीसगढ़

पिछले दो सालों में 3 हाथियों ने तोड़ा दम, हथनी की मौत के बाद फिर उठे सवाल……


(शशि कोन्हेर) : गरियाबंद – गरियाबंद सिकासेर जलाशय के जंगलों में पिछले तीन चार दिनों से डेरा डालने वाली लगभग 35 वर्षीय वयस्क मादा हथनी ने मंगलवार की दोपहर इलाज के अभाव में दम तोड़ दिया ? जिसके बाद वनविभाग के आला अधिकारियों द्वारा मंगलवार को पहला पोस्टमार्टम करने के बाद हथनी की मौत को बीमारी से होना बताया और फिर बुधवार की सुबह फिर से उसका दोबारा पोस्मार्टम कर उसे दफनाया गया। बुधवार की सुबह 7 बजे वनविभाग के अधिकारियों ने घटना स्थल पहुँचे मीडियाकर्मियों को कवरेज करने से रोकना शुरू कर दिया । सुबह लगभग 2 से 3 घंटे तक चले पोस्टमार्टम और हाथी को दफनाने के दौरान वनविभाग के एसडीओ मनोज चन्द्राकर ने लगातर को मीडियाकर्मियों को यह कहकर वीडियो और फ़ोटो लेने से रोके रखा, कि आखरी में आपको फ़ोटो और वीडियो लेने दिया जाएगा । मगर आखरी तक एक भी फ़ोटो और वीडियो मीडियाकर्मियों को नही लेने दिया गया । इस बारे में डीएफओ मयंक अग्रवाल का तर्क का था कि हाथी का पोस्टमार्टम बाकी जानवरों की अपेक्षा अलग होता है इसलिए फ़ोटो-वीडियो नही ले सकते है। आसपास के लोगों का कहना था कि हथनी पहले से ही घायल थी और समय रहते अगर गरियाबंद वनविभाग ने इसका इलाज किया होता तो शायद बचाया जा सकता था।


धमतरी जिले में 5 लोगों को मौत के घाट उतारने वाली यही हथनी या कोई और ? सिकासेर डुबान क्षेत्र में दम तोडऩे वाली हथनी की मौत के बयान में भी विरोधाभास है एक ओर गरियाबंद डीएफओ मयंक अग्रवाल दावा कर रहे है कि यह वही हथनी है जिसने धमतरी में 5 लोगों को मौत के घाट उतारा है तो वही दूसरी पशुओं और जानवरों के जानकार डॉ राकेश वर्मा इस बात में इत्तेफाक रखते नही दिखाई देते और कहते है कि इस बारे में उन्हें कोई जानकारी नही है ।


इधर हाथियों की मौत पर आरटीआई लगाने वाले प्रीतम सिन्हा कहते है कि छत्तीसगढ़ में गजराज पर आफत आन पड़ी है। गरियाबंद जिला में दो वर्षों में तीन हाथियों की मौत ने वन्यप्राणी सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। गरियाबंद वन मंडल क्षेत्र में लगातार विगत दो साल के अंदर तीन हाथियों की मौत और अन्य वन्य प्राणियों की संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मौतों पर वन विभाग के अधिकारी जानकारियां छिपा रहे हैं। यह ठीक नहीं हैं।

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