(शशि कोन्हेर) :बिलासपुर: हसदेव अरण्य को बचाने की मुहिम को जहां एक ओर हाई कोर्ट से झटका लगा है, वहीं दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट ने इसी से जुड़े एक मामले में केंद्र और राज्य सरकारों को नोटिस जारी किया है।
इस मामले की जानकारी देते हुए अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव ने बताया कि हाई कोर्ट में ग्रामीणों की ओर से परसा केते कोल ब्लॉक के लिए जमीन के अधिग्रहण को गलत बताते हुए उसे रोके जाने संबंधी याचिका दायर की गई थी। मगर कोर्ट ने इस याचिका को ख़ारिज कर दिया है।
परसा केते बासन कोल ब्लॉक के मामले में ही एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर करते हुए खदान को अनुमति दिए जाने का विरोध किया था। अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने आज इस मामले की पैरवी की। उन्होंने बताया कि हसदेव अरण्य जंगल नो गो एरिया घोषित था। इसमें परसा ईस्ट केते बासन खदान को दी गई अनुमति को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने 2014 में ही रद्द कर दिया था। ट्रिब्यूनल ने भारतीय वन्यजीव संस्थान और इंडियन काउंसिल ऑफ फॉरेस्ट्री रिसर्च से इस क्षेत्र में खनन के प्रभावों का विस्तृत अध्ययन करने को भी कहा था, मगर केंद्र ने ऐसा अध्ययन कराए बिना ही अन्य खदानों को परमिशन देना जारी रखा।
अब 7 साल बाद वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट की अध्ययन रिपोर्ट आई है जिसमें साफ कहा गया है कि हसदेव के जितने हिस्से में खनन हो गया उसके अलावा अन्य इलाकों में खनन ना किया जाए इसके बाद भी छत्तीसगढ़ सरकार ने परसा ईस्ट केते बासन खदान के दूसरे चरण और परसा खदान को अनुमति दे दी है। इसमें 4 लाख 50,000 पेड़ काटे जाएंगे इसकी वजह से इस क्षेत्र में हाथियों और इंसानों के बीच संघर्ष बढ़ेगा।
इस मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार,राज्य सरकार, राजस्थान विद्युत् मंडल और अडानी MDO को नोटिस जारी कर दी गई है। अब अगली सुनवाई अब 14 जुलाई को होगी।