गर्मी किसी की भी हो.. एक दिन निकलती ही निकलती है… अब मौसम की गर्मी निकालने के लिए…आज से आ गया है…जेठ का महीना..!
(शशि कोन्हेर) : आज जेष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की प्रथमा तिथि है। किसी किसी पंचांग में आज प्रथम और द्वितीया दोनों तिथि बताई जा रही है। ज्येष्ठ मतलब सबसे बड़ा। हिंदू परिवारों में जेष्ठ पुत्र का मतलब होता है सबसे बड़ा पुत्र।। छत्तीसगढ़ी में इसे ही जेठ कहा करते हैं। यहां ज्येष्ठ का मतलब खेती किसानी के हिसाब से लंबरदार होता रहा है। किसानों की ऋण पुस्तिकाओं और राजस्व अभिलेखों में जेष्ठ पुत्र को लंबरदार और बाकियों को खातेदार कहा जाता रहा है। जेठ की पत्नी को जेठ से जेठानी और छोटे भाई की पत्नी को देवर से देवरानी कहने का चलन है। ज्येष्ठ या जेठ का सम्मान इसी बात से समझा जा सकता है कि छोटे भाई की पत्नी या कहें देवरानी बड़े भाई की पत्नी अर्थात जेठानी से हाथ लमा लमा कर झगड़ा लड़ाई कर सकती है। लेकिन जेठ से सामान्य बातचीत में भी देवरानी के लिए परहेज ही रहता है। परिवार में किसी की मृत्यु होने के बाद समाज के द्वारा जिम्मेदारी की पगड़ी उसी के सर बांधी जाती है जो परिवार में सबसे बड़ा अर्थात ज्येष्ठ हो।। गांवों में अभी एक पीढ़ी पहले तक भाइयों के बीच जमीन जायदाद के हिस्सा बंटवारे के समय बड़े भाई अर्थात जेष्ठ पुत्र को जेठौसी देने का रिवाज चला करता था। इसका मतलब यह है कि पूरा बंटवारा संपन्न होने के बाद छोटे भाई मिलकर बड़े भाई को अपनी ओर से संपत्ति का एक छोटा सा हिस्सा “जेठौसी” के रूप में दिया करते थे। अब वह हिस्सा खेत भी हो सकता था या टिकरा-टार अथवा परिया (बंजर जमीन )..!
लेकिन विगत कुछ दशकों से रिश्तों की दरिया के सूखेपन ने जेठ-जेठौसी.. लंबरदार- खातेदार शब्दों का वजूद ही खत्म कर दिया। अब समाज में ना तो बड़ा…बड़े जैसा रहा और ना ही छोटा..छोटे जैसा… हिंदू परिवारों में भी घुसपैठ कर चुके घोर लोकतंत्र ने बड़े और छोटे का लिहाज एक तरह से समाप्त ही कर दिया। अब कोई भी देवरानी अपने जेठ से ठीक उसी तरह लड़ती दिख जायेगी, जैसै वो अपनी जेठानी ने लड़ा करती है। हालांकि बहुत से शहरी और ग्रामीण संयुक्त हिंदू परिवारों में पारिवारिक रिश्तेदारियों और छोटे बड़े का लिहाज अभी भी बचा हुआ है। और इसी से घनघोर अंधेरे में संयुक्त परिवारो के उम्मीद की वह लौ टिमटिमाती दिखाई दे रही है..जो हमारे देश की सामाजिक व्यवस्था की रीढ़ रही है। और जिसे (संयुक्त परिवार व्यवस्था को) विदेशों में वैज्ञानिक तर्क वितर्क और कुतर्क की कसौटी में कसने के बाद अब सर्वाधिक श्रेष्ठ व्यवस्था मानकर…. अपनाने की होड़ सी लगी हुई है।
क्षमा करेंगे… जेठ माह और उसके ज्येष्ठ शब्द की गहराइयों में मन जरा बहक सा गया था। अब बात जरा जेठ माह पर ही की जाए। हिंदू या कहे भारतीय वर्ष के 12 महीनों में ज्येष्ठ माह की अपनी अलग पहचान है। मेरे हिसाब से भीषण गर्मी और मानसून के आगमन के बीच की “संधि वेला”का नाम ही शायद जेष्ठ माह है। इस माह की शुरुआत भीषण गर्मी और आसमान से बरसती आग के बीच होता है। पर जैसे-जैसे यह मां आगे बढ़ते जाता है। भीषण गर्मी की तपिश एक कदम पीछे लौटने लगते हैं। और जब यह माह समाप्त होने जा रहा होता है। तब गर्मी से तड़प रहे पृथ्वी लोक के मानव समेत तमाम जीव जंतुओं को देश के दक्षिणी हिस्सों में धमकने वाले मानसून की आहट से राहत की उम्मीद मिलने लगती है। हालांकि इसी जेष्ठ माह में पड़ने वाला नौतपा भीषण गर्मी के नाम से बेकार ही बदनाम है। जेष्ठ माह के पहले पढ़ने वाला वैशाख माह ही गर्मी के मामले में बड़ा खलनायक है। वैशाख माह ही गर्मी के पारे को 40-45 और कहीं-कहीं 48 डिग्री तक चढ़ा दिया करता है। वैशाख और उसके बाद जेष्ठ माह के शुरुआती कुछ दिनों में विदाई लेती गर्मी सा माहौल रहा करता है। और तो और इसी जेठ माह में आंधी तूफान और बारिश की फुहारों का सिलसिला शुरू हो जाया करता है। इसीलिए मैं कहता हूं कि जेठ माह को भीषण गर्मी वाला महीना ना मानकर गर्मी से राहत देने वाला महीना मानना चाहिए। फिलहाल इतना ही… अब आप अभी जाती बिराती (रवाना होती) भीषण गर्मी की विदाई और मानसून के आगमन के सुनहरे सपनों में गुम हो जाइए… फिर कहा भी गया है… गर्मी किसी की भी हो, एक दिन निकलती ही निकलती है… और जरूरत से ज्यादा तपने वाले गर्मी के मौसम और 3 माह से लगातार तक रहे सूरज की गर्मी निकालने का काम आज से शुरू हो चुका.. यह जेठ का महीना ही करेगा..!