कुछ दिन पहले जीते जी अपना श्राद्ध करने वाले शख्स की मौत….लोगों को खिलाया था तेरहवीं का भोज
(शशि कोन्हेर) : यूपी के एटा में दो दिन पहले जीते जी अपना क्रिया-कर्म कर देने वाले हाकिम सिंह का देहांत हो गया है। 55 साल के इस शख्स ने दो दिन पहले ही गांव में भव्य तरीके से आयोजन कर 700 लोगों को अपनी तेरहवीं का भोज कराया था। जिंदा रहते अपने पिंडदान और तेरहवीं भोज के पीछे उनका कहना था कि उनकी अपनी कोई संतान नहीं है। परिवार में जो लोग हैं उन पर उन्हें भरोसा नहीं है। शक है कि उनके मरने के बाद परिवार के लोग उनकी तेरहवीं करेंगे भी या नहीं इसलिए उन्होंने खुद जीते-जी ये काम कर दिया। तेरहवीं भोज देने के दो दिन बाद ही हाकिम सिंह की मौत से हर कोई हैरान है।
बताया जा रहा है कि रात को वह ठीक-ठाक सोए थे लेकिन सुबह देर तक नहीं उठे तो लोगों को शक हुआ। हाकिम सिंह एटा के सकीट क्षेत्र के मोहल्ला मुंशी नगर के रहने वाले थे। उनके पिता का नाम बांके लाल था। हाकिम ब्लॉक के पास बनी दुकानों में रहते थे। बुधवार की सुबह रोज की तरह लोग अलाव जलाकर हाथ सेंक रहे थे। तभी किसी का ध्यान हाकिम सिंह की ओर गया। रोज की तरह उन्हें जागा हुआ नहीं पाकर लोगों को आशंका हुई तो उन्होंने उनकी चारपाई के पास जाकर देखा। हाकिम सिंह मृत पड़े थे। उनकी मौत की जानकारी मोहल्ले में फैली तो काफी संख्या में लोग वहां पहुंच गए। सूचना मिलने पर उनके भाई-भतीजे भी पहुंचे। वे शव को अपने घर पर ले गए हैं। उनका कहना है कि वे हाकिम का अंतिम संस्कार ढंग से करेंगे।
हालांकि हाकिम सिंह को उन पर भरोसा नहीं था। उन्होंने अपना क्रिया-कर्म और तेरहवीं भोज देने के लिए अपने नाम वाली करीब आधा बीघा जमीन बेच दी थी। उन्होंने परिवारवालों के साथ गांव के सैकड़ों लोगों को आमंत्रित किया था। अपना पिंडदान किया और ब्राह्मणों को बुलाकर विधि-विधान से हवन-यज्ञ और तेरहवीं संस्कार की सारी रस्में अदा कीं। उनके द्वारा ऐसा किए जाने की चर्चा पूरे इलाके में थी। लेकिन किसी ने नहीं सोचा था कि दो दिन बाद ही हाकिम सिंह दुनिया को अलविदा कह जाएंगे। अब उनकी मौत के बाद आसपास के क्षेत्रों में लोग चर्चा कर रहे हैं कि सोमवार को हाकिम सिंह की तबीयत थोड़ी बिगड़ गई थी। तभी उन्हें अपनी मौत का अंदेशा हो गया था। लोगों का कहना है कि हाकिम सिंह की कोई संतान नहीं थी।