राहुल गांधी के बोल से अखिलेश यादव का नुकसान….! समझें ‘मोदी सरनेम’ पर भाजपा का OBC प्लान
(शशि कोन्हेर) : मोदी सरनेम’ पर उठे सियासी विवाद के अभी थमने के आसार नहीं हैं। इसी बीच भारतीय जनता पार्टी की तैयारियां संकेत दे रही हैं कि वे इसे OBC एंगल के जरिए भुनाने की कोशिश में है। खबर है कि पार्टी उत्तर प्रदेश में ओबीसी तक पहुंच बढ़ाने के लिए इस दांव का इस्तेमाल कर सकती है। अब अगर भाजपा का यह पैंतरा सफल होता है, तो कांग्रेस के साथ-साथ समाजवादी पार्टी को भी झटका लग सकता है।
भाजपा का ओबीसी से जुड़ा 8 दिवसीय अभियान 6 अप्रैल से शुरू होने जा रहा है। ‘गांव गांव घर घर चलो’ के तहत पार्टी पदाधिकारी और कार्यकर्ता 15 हजार गांवों तक पहुंचेंगे और लोगों को बताएंगे कि कैसे राहुल ने ‘ओबीसी समुदाय का अपमान किया है।’ हाल ही में सूरत की एक कोर्ट ने आपराधिक मानहानि मामले में दोषी पाया है।
इस दौरान पार्टी सपा प्रमुख अखिलेश यादव पर भी निशाना साधेगी। पार्टी दावा कर रही है कि अखिलेश ओबीसी कल्याण के नाम पर केवल अपने परिवार की चिंता करते हैं। प्रदेश भाजपा के ओबीसी मोर्चा प्रमुख और मंत्री नरेंद्र कश्यप ने जानकारी दी है कि यह अभियान ओबीसी की भावनाओं से खेलने की साजिश का खुलासा करेगा।
मीडिया रिपोर्ट्स में प्रकाशित आंकड़े बताते हैं कि राज्य में सामान्य जातियों की हिस्सेदारी 25 से 27 फीसदी है। वहीं, ओबीसी का आंकड़ा 39 से 40 प्रतिशत है। जबकि, यहां अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति 20 प्रतिशत के आसपास हैं। इस लिहाज से प्रदेश की राजनीति में ओबीसी बड़ी भूमिका निभाते हैं।
वहीं, तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह की तरफ से साल 2001 में गठित सामाजिक न्याय समिति ने अनुमान लगाया था कि ओबीसी 43.13 प्रतिशत हैं। रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया था कि यादव 19.4 फीसदी, कुर्मी 7.46 फीसदी, काछी-कुशवाह-शाक्य-मौर्य-सैनी-माली 6.68 फीसदी, लोध 4.9 फीसदी, जाट 3.6 फीसदी, केवट 4.33 फीसदी, कहार-कश्यप 3.31 फीसदी हैं।
अब साल 1931 के बाद से जातिगत जनगणना नहीं हुई है, तो ये आंकड़े अनुमान ही हैं। चुनाव के दौरान राजनीतिक दल अपने कार्यकर्ताओं की मदद से भी जानकारियां जुटाते हैं।
साल 2014 के चुनाव से पहले नरेंद्र मोदी ने राज्य में सोशल इंजीनियरिंग पर खासा ध्यान दिया। साल 2017 में भी पार्टी की रणनीति काम कर गई। उस दौरान पार्टी ने मौजूदा डिप्टी सीएम को भाजपा प्रदेश अध्यक्ष का प्रमुख बनाया और नतीजे घोषित हुए तो पार्टी के खाते में 312 सीटें आई। वहीं, उसके साथी अपना दल और SBSP क्रमश: 9 और 4 सीटें जीती। इन आंकड़ों ने ही संकेत दे दिए थे कि कुछ ओबीसी जातियों को छोड़कर अन्य का भाजपा को समर्थन है।
2024 लोकसभा चुनाव से पहले अखिलेश सभी 75 जिलों की यात्रा की योजना बना रहे हैं। कहा जा रहा है कि उनकी यात्रा का फोकस जातिगत जनगणना पर होगा, जिसके जरिए सपा अपने पक्ष में अन्य पिछड़ा वर्ग को जोड़ने की कोशिश कर रही है। खास बात है कि 2024 चुनाव से पहले सपा को ओबीसी वोट बेस दोबारा हासिल करना जरूरी है। साल 2007 और 2012 में ओबीसी वोट ही थे, जिनके जरिए सपा और बहुजन समाज पार्टियों ने बहुमत की सरकारें बनाईं थीं।