बीजेपी को ना बजरंगबली का मिला साथ और ना चला ध्रुवीकरण का दांव….येदियुरप्पा की उपेक्षा पड़ी भारी
(शशि कोन्हेर) : कर्नाटक चुनाव में बीजेपी चाहकर भी कांग्रेस से पार नहीं पा सकी। बावजूद इसके कि जब डबल इंजन सरकार के विकास का नारा कहीं पर भी ठहरता नहीं दिखा तो पीएम नरेंद्र मोदी ने गालियों को भी मुद्दा बनाने की कोशिश की। वो भी दांव नहीं चला तो बजरंग बली को भी चुनाव मैदान में उतार दिया गया। लेकिन शनिवार को काउंटिंग शुरू हुई तो बीजेपी के तमाम दांव धाराशाई होते दिखे। कांग्रेस बहुमत की तरफ तेजी से बढ़ती दिख रही है। 224 की असेंबली में बहुमत के लिए 113 के आंकड़े की जरूरत है। कांग्रेस की सीटें शनिवार सुबह से ही बहुमत के पार दिख रही हैं।
बीजेपी ने कर्नाटक चुनाव की तैयारी अरसा पहले शुरू कर दी थी। हिजाब विवाद की शुरुआत कर्नाटक से हुई थी। बजरंग दल और विहिप जैसे संगठनों ने हिजाब को लेकर तीखे तेवर दिखाए। उसके बाद ये दुनिया भर में फैल गया। बीजेपी को लगता था कि हिजाब विवाद से हिंदू वोटर उसके पक्ष में आ खड़े होंगे। लेकिन ऐसा होता नहीं दिखा। चुनाव से ऐन पहले बसवराज सरकार ने मुस्लिमों को दिए जा रहे चार फीसदी आरक्षण को खत्म कर दिया। मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। लेकिन नतीजे देखकर नहीं लगता कि बीजेपी का ये दांव उसके किसी भी काम आ सका है।
कर्नाटक की सत्ता में वापसी बीजेपी के लिए कई कारणों से महत्व रखता है। दक्षिण के 5 बड़े राज्यों कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु और केरल में से सिर्फ कर्नाटक ही ऐसा सूबा है, जहां बीजेपी का जनाधार है। आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु और केरल में बीजेपी का जनाधार नहीं है। इन सूबों में पैठ बनाने के लिए आरएलएस हाथ पैर तो मार रहा है। लेकिन लगता नहीं कि कोई बड़ी सफलता उसके हाथ लग रही है। चारों सूबों में बीजेपी चाहकर भी मजबूत टीम नहीं बना पाई है। कर्नाटक की सत्ता बीजेपी के हाथों से जाने से उसके मिशन साउथ को भी गहरा झटका लगेगा।
कर्नाटक में बीजेपी 2007 से सत्ता में आ जा रही है, लेकिन कर्नाटक में उसे अब तक स्पष्ट बहुमत हासिल नहीं हुआ है। बीजेपी को 2018 में 104, 2013 में 40, 2008 में 110, 2004 में 79, 1999 और 1994 में 44-44 सीटों पर जीत मिली थी। लिंगायत नेता के तौर पर कर्नाटक में मशहूर येदियुरप्पा बीजेपी की ताकत रहे हैं। 2013 में जब वो बीजेपी से अलग थे तब बीजेपी 40 सीटों पर सिमट गई थी। कहने की जरूरत नहीं कि कर्नाटक में बीजेपी की अब तक जो हैसियत है, उसमें सबसे बड़ा हाथ बीएस येदियुरप्पा का रहा है। इस बार बीएस येदियुरप्पा चुनाव नहीं लड़े। वो प्रचार अभियान में जुटे जरूर रहे। लेकिन उनको टिकट न मिलने से निचले स्तर पर संदेश गया कि पार्टी उनको नजरंदाज कर रही है। बीजेपी की हार के पीछे सबसे बड़ा कारण येदुयिरप्पा को नजरंदाज करना ही माना जाएगा। बेशक उनके ऊपर करप्शन के आरोप रहे हैं लेकिन वो मॉस लीडर हैं।
कांग्रेस ने कर्नाटक को हासिल करने के लिए शिद्दत से तैयारी शुरू की। पार्टी अध्यक्ष डीके शिवकुमार ने बीजेपी नेताओं के 40 फीसदी कमीशन को मुद्दा बनाकर सीधा हमला बोला। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने भी इस मुद्दे की अहमियत को समझा और चुनावी रैलियों में इसे जमकर मुद्दा बनाया। उनको पता था कि बीजेपी नेताओं के करप्शन से लोग परेशान हैं और ये चीज ही कांग्रेस को सत्ता के शीर्ष पायदान तक पहुंचा सकती है। नतीजों से लगता है कि जनता भी 40 फीसदी कमीशनखोरी से परेशान थी। चुनावी नतीजों पर सबसे ज्यादा असर इस मुद्दे का ही होता दिख रहा है।