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दिल्ली अध्यादेश पर चर्चा और वोटिंग से दूर रहकर BSP देगी केजरीवाल को झटका….कैसे भाजपा को फायदा


(शशि कोन्हेर) : दिल्ली में शासन व्यवस्था से जुड़े अध्यादेश पर लोकसभा और राज्यसभा में जबरदस्त ध्रुवीकरण होने वाला है। एक तरफ INDIA के नाम से बना विपक्षी गठबंधन वोटिंग में एकजुट रहने की तैयारी में है तो वहीं एनडीए भी शक्ति प्रदर्शन के लिए मेहनत कर रहा है। इस बीच मायावती की पार्टी बसपा का रुख अरविंद केजरीवाल को झटका देने वाला है, जो लगातार गैर-भाजपा दलों से समर्थन की अपील कर रहे हैं। मायावती की पार्टी ने फैसला लिया है कि वह दिल्ली वाले अध्यादेश पर वोटिंग और चर्चा से दूर ही रहेगी। इस तरह बसपा ने इस मामले में किसी का भी पक्ष ना लेने की बात कही है, लेकिन इससे अप्रत्यक्ष तौर पर अरविंद केजरीवाल को ही झटका लगेगा।

वहीं मायावती का यह फैसला भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए को राहत देने वाला है। सरकार इसी मॉनसून सेशन में 31 विधेयकों को पेश करने की तैयारी में है, जिनमें पहले नंबर पर दिल्ली वाले अध्यादेश को रखा गया है। हालांकि बेंगलुरु की विपक्षी बैठक से दूर रहने वाली भारत राष्ट्र समिति ने जरूर इस मसले पर समर्थन का रुख दिखाया है। बसपा से जुड़े एक सूत्र का कहना है कि पार्टी ने संसद की कार्यवाही से ही उस दौरान दूर रहने का फैसला लिया है, जब दिल्ली वाला बिल पेश किया जाएगा। बसपा के लोकसभा में 9 सांसद हैं, जबकि राज्यसभा में उसका महज एक ही सदस्य है।

भले ही उच्च सदन में बसपा का एक ही सदस्य है, लेकिन कांटे की लड़ाई में उसका भी गैर-हाजिर रहना मायने रखता है। अब तक इस मसले पर बीजेडी और वाईएसआर कांग्रेस ने अपना रुख साफ नहीं किया है। माना जा रहा है कि इन दोनों दलों का पलड़ा एनडीए की ओर झुक सकता है। पहले भी दोनों पार्टियों ने कई बार एनडीए के पक्ष में ही मतदान किया है। हालांकि विपक्ष को लगता है कि वह इन दोनों दलों को राजी कर लेगा। बता दें कि दिल्ली वाले अध्यादेश को आम आदमी पार्टी के अलावा कांग्रेस ने भी संघीय ढांचे के खिलाफ माना है।

लोकसभा में अकेले भाजपा के ही 303 सांसद हैं। एनडीए के 350 के पार हैं। ऐसे में यहां भाजपा के लिए बिल पास कराना आसान रहेगा, लेकिन राज्यसभा में यदि बीजेडी और वाईएसआर विपक्ष के पाले में गए तो फिर मुश्किल हो सकती है। उच्च सदन की कुल संख्या 238 की है, जबकि भाजपा के 93 सांसद हैं और गठबंधन के मिलाकर 111 हैं। अब यदि बीजेडी, टीडीपी, जेडीएस और वाईएसआर जैसे दलों का समर्थन मिलता है तो फिर वह बाजी मार सकती है। वहीं विपक्ष अब तक 106 सांसदों की संख्या पर अटकता दिख रहा है।

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