मनाया गया पारम्परिक लोक त्योहार छेरछेरा
(मुन्ना पाण्डेय) : लखनपुर -(सरगुजा)
लोक त्योहारों की श्रृंखला में छेरछेरा का विशेष महत्व रहा है। शुक्रवार को नगर सहित आसपास ग्रामीण इलाकों में छेरछेरा त्योहार उत्साह के साथ मनाया गया। किसानी संस्कृति से जुड़े इस त्योहार को पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता हैं खासकर इसे बच्चों का त्योहार कहा जाता है दरअसल इस दिन बच्चे टोली बनाकर सबके घर छेरछेरा मांगने जाते हैं। बड़े बुजुर्ग भी बच्चों के साथ शामिल होते हैं छेरछेरा के दिन बच्चों बुजुर्गों को धान चावल पैसा आदि का दान दिया जाता है।
यह त्योहार पौष शुक्ल पक्ष के पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है।
इस मौके पर बच्चे पिकनिक मनाने किसी जलसरोवरो के समीप जाते हैं देर शाम को मुहल्ले टोले के घरों में जाकर लोक गीत लोकडी के साथ नृत्य करते हुए पुनः लोकडी मांगते हैं। बच्चों को एकबार फिर धान चावल पैसा आदि दान दिया जाता है।
इस दिन नये धान से बने चुडा तथा गन्ने के गुड खाने का विशेष महत्व है। इस त्योहार की एक खास परम्परा यह भी रही है कि इस दिन से बंधुआ मजदूर ,गाय बैलो को चराने वाले, लोहा कुटने वाले लोहार, सामाजिक प्रयोजनों में सम्मिलित होकर साल भर तक काम करने वाले कोटवार नाई आदि लोगों को नया पुराना किया जाता है। अर्थात पिछला हिसाब पूरा करने के पश्चात इसी दिन से बंधुआ मजदूरों के काम की शुरुआत फिर से होती है।आने वाले साल भर के लिए किसानों से धान पैसा आदि काम करने के एवज में लेते हैं।
यह सामाजिक प्रथा रही है परन्तु कालांतर में बंधुआ मजदूरी का चलन लगभग समाप्त हो गया है।
लेकिन छेरछेरा त्योहार मनाने की परम्परा आज भी यथावत बनी हुई है। आदीवासी बाहुल इलाकों में छेरता त्योहार सप्ताह भर तक मनाईं जाती है इस मौके पर बकरा मुर्गा सेवन करने के अलावा पीने पिलाने का भी दौर चलता है ।
सही मायनो में किसान वर्ग के लोग कृषि कार्य के थकन को भूल जाने की चाह लेकर एवं अच्छे फसल प्राप्ति के खुशी में सराबोर यह छेरछेरा त्योहार आपस में मिलजुल कर मनाता हैं।
क्षेत्र में छेरछेरा त्योहार धूमधाम से मनाया गया। तथा मनाये जाने का सिलसिला जारी है।