श्री राम कथा में छठवें दिन उमड़ा जन सैलाब छत्तीसगढ़ तपस्वियों की धरती : संत श्री विजय कौशल
(शशि कोन्हेर) : बिलासपुर – एक कुसंग..एक कुनीति ने धर्मात्म दशरथ के परिवार को छिन्न भिन्न कर दिया। लेकिन कुसंगति ने जो चाहा महात्मा भरत ने उसे होने नही दिया। महात्मा भरत ने फिर कभी भी अपनी मां को मां नहीं कहा। विधि का विधान है कि कुसंग का परिणाम बेशक कुछ देर के लिए अच्छे लगे। लेकिन अंजाम बहुत बुरा होता है। कैकयी को शायद इस बात का अहसास नहीं था। भरत ने ऐसी सजा दी..जिसे शायद ही कोई मां सहन कर सके। यह बातें रामकथा के छठवें दिन संत प्रवर विजय कौशल महाराज ने श्रद्धालुओं के जनसैलाब के सामने कही। विजय कौशल महाराज ने इस दौरान भरत कैकेयी संवाद और राम भरत मिलाप को इस तरह से प्रस्तुत किया देखते ही देखते पंडाल में बैठे हजारों हजार श्रद्धालुओं की आंखें सावन भादों हो गयी। इस दौरान विजय कौशल महाराज ने ऋषि सुतीक्ष्ण और शबरी राम संवाद भी पेश किया। कथा को सुन श्रद्धालु भाव विभोर होकर नाचने लगे।
छठवें दिन उमड़ा जन सैलाब
लालबहादुर शास्त्री मैदान में आयोजित रामकथा के छठवें दिन पिछले पांच दिनों की अपेक्षा राम भरत, भरत कैकयी, सुतीक्ष्ण और माता शबरी का प्रसंग सुनने श्रद्धालुओं का सैलाब देखने को मिला। संत प्रवर ने बताया कुसंग और कुमति हमेशा ना केवल निरंकुश होता है। बल्कि आत्मघाती भी होता है। लोग किसी तरह इसके आग से बच तो जाते हैं..लेकिन कुमति का सूत्रधार कभी नहीं बचता है। यही कारण है कि भरत के लिए राजगद्दी मांगने वाली माता कैकयी को भरत ने ऐसी पीड़ा दी। जिसे शायद ही कोई माता बर्दास्त करे। लेकिन विधि का विधान है कि सबको इसी जन्म में ही सब कुछ भोगना होता है।कैकयी के साथ भी ऐसा हुआ। और उसी राम ने 14 साल बाद जब मां कहा तो कैकयी को अपनी भूल का अहसास हुआ।
भरत ने छीना मां का अधिकार
संतप्रवर ने बताया जैसे ही किसी अनिष्ठ की आशंका से प्रेरित भरत अपने ननिहाल से आयोध्या पहुंचते हैं। उन्हें राम वनवास की जानकारी से जो धक्का लगा उसका वर्णन करना शायद काल के लिए भी मुश्किल है।भरत को जब पता चला कि मां कैकयी ही पिता के निधन, और राम वनवास का कारण है। उन्होने ना केवल अपनी मां तिरस्कार किया बल्कि कैकयी को मां कहने से ही इंकार कर दिया। इसके बाद भरत ने ना केवल राजगद्दी ठुकराया। बल्कि गुरू वशिष्ठ को भी सुनीति का पाठ पढ़ाया। भरत ने कहा..आयोध्या दशरथ की नहीं …जनता की है..अयोध्या का राजा परम्परानुसार राम ही है।
जब फफक कर रोने लगा पंडाल
विजय कौशल महाराज ने संक्षिप्त लेकिन आंखों को आंसुओं से भर देने वाली भरत राम मिलाप प्रसंग को सबके सामने रखा। बताया कि त्याग,न्याय और नीति के प्रतीक जनमानस में भरत की पहचान साधु का भी है। भरत आयोध्यावासियों के के साथ राम को मनाने पंचवटी गए। लेकिन राम ने अपने लाड़ले भरत को यह कह कर लौटा दिया कि पिता का आधा भार भरत उठाएं और वह खुद उठाएंगे। विजय कौशल ने बताया कि भरत राम मिलाप देखकर देवताओं की भी आंखें भर गयीं। भरत राम की चरण पादुका लेकर नाचते इठलाते अयोध्या लौटे और पादुका को सिंहासन पर रख कर नन्दीग्राम में तपस्वी का जीवन जीने लगे। मां कौशल्या और सुमित्रा को छोड़कर उन्होने कैकयी का मुंह तक नहीं देखा और ना मां ही कहा। कौशल्या के समझाने के बाद भी भरत ने बार बार दुहराया मां कैकयी की कोख से पैदा होने कारण राम वनवास के लिए वह भी जिम्मेदार हैं। ना पैदा होता और ना कैकेयी राम को वनवास भेजती।
अभिमान और अज्ञानता कष्ट का कारण
विजय कौशल ने बताया कि अभिमान और अज्ञानता ही समस्या की जड़ है। इसी कारण इन्द्र पुत्र जयंत को भी राम का कोप भाजन होना पड़ा। वनवास के दौरान कौआ का रूप धारण कर जयंत ने माता के चरणों में चोच मारा..खून बहने लगा। राम ने संधान कर सीक से जयंत को मारने तीर छोड़ा..तीनों लोक में कोई बचाने वाला नहीं मिला। लेकिन हरि कृपा से नारद ने बचने का उपाया बताया। फिर राम ने जयंत को ना केवल जीवनदान दिया। बल्कि एक दृष्टि भी दिया। आज ज्यादातर लोग एक दृष्टि को एक आंख से जोड़कर देखते हैं। जबकि इसका मतलब सम्यक नजर और दृष्टिकोण से है।
छत्तीसगढ़ तपस्वियों की धरती
महाराज ने बताया गुरू की कृपा मतलब उस पर हरि की कृपा है। चाहे जयंत के साथ नारद की कृपा हो या फिर माता शबरी के साथ मतंग ऋषि की कृपा हो। महराज ने बताया छत्तीसगढ़ तपस्वियों की धरती है। उन्होने वनवास के दौरान पाया कि राक्षसों ने सज्जनों का जीना मुश्किल कर दिया है। इसके बाद राम ने दण्डकारण्य को राक्षस विहीन करने का संकल्प लिया।
रावण ने तैयार किया मुक्ति का रास्ता
महाराज ने कथा प्रसंग के दौरान सुपर्णखा के नाक कटने की घटना को बहुत ही रोचक अंदाज में सबके सामने रखा। उन्होने बताया जैसा इंसान सोचता है आंखें वैसे ही देखती है,नाक वैसा ही सूंघता और कान भी वैसा ही करता है। सुपर्णखा के साथ भी ऐसा ही हुआ। और लक्ष्मण ने भगवान के इशारे पर नाक काट दिया। सुपर्णखा ने घटना की जानकारी अपने भाई खर दूषण को बताया। भगवान राम ने राक्षसी सेना को एक ही वाण में समूल नष्ट कर दिया।
महाराज ने बताया कि रावण ज्ञानी था। लेकिन राक्षसी बुद्धि और शाप के कारण राक्षस बना। खरदूषण की मौत के बाद उसे अंदेशा हो गया कि भगवान ने अवतार ले लिया है। अब उसका कल्याण निश्चित है। उसने मायावी रूप धारण कर सीता का अपहरण किया। जटायु राम संवाद के दौरान विजय कौशल ने बताया कि जटायु राजा दशरथ का मित्र था। लेकिन दशरथ को भगवान के हाथों अंतिम संस्कार का भाग्य नहीं मिला। लेकिन जटायु का अंतिम संस्कार खुद विधाता ने किया। क्योंकि भगवान के लिए भक्त हमेशा प्यारे होते हैं। यही कारण है कि जटायु की मनोकाना को राम ने पूरा किया।
सीता ने तोड़ी मर्यादा..शबरी ने इंतजार किया
संत प्रवर के मुख से शबरी और राम संवाद को सुनकर पूरा पंडाल मंत्र मुग्ध हो गया। उन्होने बताया कि राम ने शबरी के जूठे बेर खाकर भक्त और भगवान के बीच प्रेम की पराकाष्ठा को जाहिर किया। ऊंच नीच की भावना को मिटाया। महाराज ने कहा दुर्घटनाओं का कारण खुद इंसान ही होता है। सीता ने मर्यादा तोड़ी. लालच किया, संतो से दूरी बनाया इसी कारण माया ने उनका अपहरण किया। जबकि शबरी ने मर्यादा का पालन कर संत मिलन का इंतजार किया। और भगवान पर भरोसा रखा। राम ने चरणों में स्थान दिया।
*प्रसाद वितरण मारवाड़ी समाज की ओर से-रामकथा के छठवें दिन श्रद्धालुओं के बीच मारवाड़ी समाज की तरफ से प्रसाद वितरण किया गया। रामकथा के दौरान पत्रकारों के अलावा पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल, धरमलाल कौशिक,विधायक डॉक्टर कृष्णमूर्ति बांधी, और समिति के पदाधिकारियों ने प्रभु श्री राम की आरती कर आशीर्वाद लिया। व्यासपीठ की तरफ से मुख्य संरक्षक अमर अग्रवाल एवं श्रीमती शशि अग्रवाल को वैवाहिक वर्षगांठ के अवसर पर समिति के पदाधिकारियों ने अपनी शुभकामनाएं दी, संत प्रवर विजय कौशल महाराज ने शुभ आशीष दिया। प्रतिदिन प्रातः 7:00 श्री अमर अग्रवाल जी के राजेंद्र नगर निवास पर व्यासपीठ की ओर से प्रतिदिन होने वाले हनुमान स्तुति एवं अनुष्ठान कार्यक्रम में शामिल होने के लिए आमंत्रण सूचना दी गई।
कार्यक्रम में विशेष उपस्थिति
रामकथा के दौरान आयोजन समिति के सदस्य गुलशन ऋषि, महेश अग्रवाल ,रामअवतार अग्रवाल सुनील संथालिया, रामदेव कुमावत गोपाल शर्मा समेत पाटलिपुत्र विकास मंच के एस पी सिंह,गुरु घासीदास सतनामी सेवा समिति के नंद मधुकर, नेपाली समिति से धन कुमार प्रधान, तमिल मंडलम से पी एस पापा नादम, आनंद गढ़वाल, नरेश सारथी, कछवाहा विकास समिति के शंकर कछवाहा, मोहन देव पुजारी बिहारीलाल ताम्रकार, डॉ अशोक अग्रवाल, चित्रलेखा तिवारी, राजकुमार तिवारी दिलीप शर्मा, सुनीता राकेश मिश्रा धीरज बाजपेई, जवाहर अर्चना सराफ, किरण अग्रवाल , सुरेश गुप्ता, नीरज वर्मा, चिंटू खंडेलवाल, सुरेश जाजोदिया, संगम शुक्ला, अनमोल झा, महर्षि बाजपेयी, रोहित मिश्रा, मोनू रजक, विवेक खत्री, अनुज त्रेहान, ऋषभ चतुर्वेदी, अमन सोनी,रोशन सिंह, केतन सिंह अभिषेक तिवारी नितिन पटेल, शुभम मोनू रजक, सचिन सोनी आदि ने महाराज का अभिनंदन किया और आशीर्वाद भी लिया।