छत्तीसगढ़ी बर जीव देवैया..पैदल रेंगईया…हमर बईहा..82 साल के जवान.. नंदकिशोर शुक्ला
(शशि कोन्हेर) : बिलासपुर। लोग सही कहते हैं कि मंदिरों के गुंबदों की हर कोई सराहना करता है। लेकिन उन गुम्बदों को मजबूती देने वाले नींव के पत्थरों की सराहना तो दूर उनका जिक्र तक कोई नहीं करता। बिलासपुर के रहने वाले 82 वर्षीय युवा श्री नंदकिशोर शुक्ला को बिलासपुर से चकरभाठा और वहां से एयरोड्रम वह धमनी बन्नाक होते हुए बिलासपुर तक पदयात्रा करते देख, मुझे उनके फेफड़ों और स्टेमिना पर रश्क और अपने स्टेमिना पर तरस आने लगा।
छत्तीसगढ़ी भाषा के लिए उनका उत्साह उनकी पदयात्रा करने के उत्साह से कई गुना अधिक है। हो सकता है कि कुछ लोग मेरे विचार से असहमत हों..! लेकिन यह अटल सत्य है कि छत्तीसगढ़ी भाषा को राजभाषा का दर्जा देने के पीछे यदि किसी शख्स की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण रही है तो वे आज के हमारे कथा नायक श्री नंद किशोर शुक्ला ही हैं। डॉक्टर कृष्णमूर्ति बांधी के साथ मिलकर जिस तड़प और शिद्दत से उन्होंने छत्तीसगढ़ी भाषा के लिए लंबी लड़ाई लड़ी है उसे मैंने अपनी आंखों से देखा है। और उसका ही प्रणाम हुआ कि हमारी छत्तीसगढ़ी को राजभाषा का दर्जा और सम्मान मिल पाया।
बिलासपुर से पैदल चकरभाठा के लिए निकले श्री शुक्ला से मेरी भेंट विधानसभा अध्यक्ष श्री धरमलाल कौशिक के निवास पर हो गई। किसी को भी अजीब लगने वाली उनकी वेशभूषा बता रही थी कि छत्तीसगढ़ी भाषा के लिए उनकी दीवानगी ने उन्हें एक तरह से “बइहा” ही बना दिया है। शुक्रवार को भी वे चकरभाठा में प्रसिद्ध लोक गायिका सुरुज बाई खांडे की स्मृति में हो रहे एक कार्यक्रम में शरीक होने के लिए पैदल निकल पड़े थे। उनकी बातचीत और उनके भीतर की तड़प तथा संघर्ष का जज्बा देखकर यह लगता है कि छत्तीसगढ़ी को राजभाषा का दर्जा देने वाला यह शख्स तब तक आराम नहीं करेगा जब तक छत्तीसगढ़ी राजभाषा कागजों से उतर कर सरकारी कामकाज, स्कूली प्राथमिक शिक्षा मैं लागू होते हुए लोगों के दिलो-दिमाग पर सवार नहीं हो जाती।
(उनके साथ पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्री धरमलाल कौशिक की मौजूदगी में हुई बातचीत के सार पर फिर कभी..)