सहमति से बनाए संबंध, गर्भपात की इजाजत नहीं… 17 साल की लड़की की याचिका पर HC ने सुनाया फैसला
(शशि कोन्हेर) : बॉम्बे हाई कोर्ट की औरंगाबाद पीठ ने 17 वर्षीय लड़की से जुड़ी याचिका पर बड़ा फैसला सुनाया। लड़की ने 25 सप्ताह से अधिक के गर्भ को समाप्त करने के लिए अदालत से गर्भपात की अनुमति मांगी थी।
अदालत ने लड़की का याचिका को यह कहते हुए इनकार कर दिया कि उसने अपने प्रेमी के साथ सहमति से संबंध बनाए थे। अदालत ने कहा कि लड़की को सारी जानकारी थी, अगर गर्भपात करना ही था तो लड़की फरवरी में क्यों नहीं आई? जब उसे प्रेग्नेंट होने का पता चला था।
न्यायमूर्ति रवींद्र वी घुगे और न्यायमूर्ति वाईजी खोबरागड़े की खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा कि लड़की को गर्भावस्था के बारे में पूरी समझ थी और वह खुद गर्भावस्था किट लेकर आई थी और गर्भावस्था की पुष्टि की। अदालत को यह भी मालूम हुआ कि 29 जुलाई लड़की 18 साल की पूरी हो रही है। 26 जुलाई को दिए अपने आदेश में अदालत को यह मालूम हुआ कि दिसंबर 2022 से लड़की और लड़के के बीच प्रेम संबंध चल रहा है।
अदालत में याचिका लड़की द्वारा गायर की गई। जिसमें लड़की ने 25 सप्ताह की गर्भावस्था को समाप्त करने की मांग की थी। याचिका में लड़की ने दावा किया था कि वह यौन अपराधों से बच्चों की सुरक्षा (POCSO) अधिनियम के प्रावधानों के तहत नाबालिग है और गर्भावस्था से उसके मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान होगा, क्योंकि वह भविष्य में डॉक्टर बनना चाहती है।
दिसंबर 2022 से बन रहे संबंध
पीठ ने 18 जुलाई के अपने पहले आदेश में लड़की को मेडिकल जांच के लिए रेफर करते हुए कहा था कि वह जुलाई के अंत में 18 साल की हो जाएगी और उसके और आरोपी के बीच दिसंबर 2022 से सहमति से शारीरिक संबंध थे। इसके अलावा, याचिकाकर्ता पीड़िता वह खुद प्रेग्नेंसी किट लेकर आईं और इस साल फरवरी में प्रेग्नेंसी की पुष्टि की।
निर्दोष नहीं है लड़की, उसे थी पूरी समझ
अदालत ने कहा, “इसलिए, ऐसा प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ता पीड़िता निर्दोष नहीं है और उसकी समझ पूरी तरह परिपक्व थी। इसके बाद उसने अपने गर्भवती होने की बात अपने आरोपी प्रेमी को बताई और फिर दोनों शादी करने के इरादे से भाग गए, लेकिन बालिग होने में कुछ दिन कम होने के कारण वे शादी नहीं कर सके। इसलिए, यदि याचिकाकर्ता को गर्भधारण करने में कोई दिलचस्पी नहीं थी, तो उस स्थिति में, वह तब गर्भपात के लिए आ सकती थी, जब उसे प्रेग्नेट की जानकारी मिली थी।
पीठ ने मेडिकल बोर्ड की एक रिपोर्ट का हवाला दिया जिसने पीड़ित लड़की की जांच की और कहा कि भ्रूण में कोई विसंगति नहीं थी और विकास सामान्य था। इसमें कहा गया था कि यदि गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति दी जाती है, तो “जन्म लेने वाला बच्चा जीवन के लक्षण दिखाएगा लेकिन स्वतंत्र रूप से जीवित रहने में सक्षम नहीं होगा।”
जीवन से खिलवाड़ नहीं कर सकते
पीठ ने कहा, “गर्भावस्था को समाप्त करने के लिए लड़की के अनुरोध पर विचार करते हुए, अगर बच्चे के जबरन प्रसव के बाद आज भी जीवित बच्चा पैदा होता है, तो इससे अविकसित जीवित बच्चा पैदा होगा…” अदालत ने कहा कि वह गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति देने के इच्छुक नहीं है क्योंकि किसी भी स्थिति में बच्चा स्वस्थ पैदा होना चाहिए और प्राकृतिक प्रसव केवल 15 सप्ताह (आदेश की तारीख से) दूर है।