छत्तीसगढ़

संविधान ही एक मात्र ऐसा ग्रंथ है जिसमे महिला एवं पुरुष में किसी प्रकार का भेद नहीं किया गया है – डांगी

(शशि कोनहेर) : अंतराष्ट्रीय महिला दिवस पर पं•रविशंकर शुक्ल विश्वविधालय रायपुर में विधि संकाय के छात्रों को संबोधित करते हुए वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी एवम् राज्य पुलिस अकादमी के निदेशक डांगी ने यह बात कही है।उन्होंने संबोधित करते हुए।


“अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर समस्त महिला शक्ति को बधाई एवम् प्रणाम ” कहा साथ ही कहा कि
हर व्यक्ति को अपने आप से सवाल  जरूर पूछना चाहिए  कि आखिर महिला दिवस मनाने की आवश्यकता क्यों पड़ी ?


क्या महिला के बिना इस मानव जाति का अस्तित्व संभव है ? जिस महिला शक्ति के बिना मानव जाति की कल्पना नहीं की जा सकती वह महिला शक्ति सदियों से अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है और हर युग में उसके साथ छल ही हुआ है l छल भी उसके अपनों ने ही किया है l वैदिक काल से लेकर आधुनिक काल तक महिलाओं की स्थिति में उतार-चढ़ाव रहा है l वैदिक काल में महिलाओं की स्थिति काफी हद तक ठीक थी लेकिन उत्तर वैदिक काल से ही उनकी समाज में स्थिति उत्तरोत्तर खराब ही होती गई स्त्री को शूद्र की कैटेगरी में रखा गया ।

उनको भी शूद्रों की तरह न तो शिक्षा का अधिकार था और न हीं सामाजिक व्यवस्था में सम्मान l उनके साथ दोयम दर्जे का बर्ताव किया जाता था l मनुस्मृति में महिलाओं के लिए बहुत निम्न किस्म की शब्दावली का प्रयोग किया गया है एवं स्त्री को पुरुष की दासी के रूप में स्थापित किया गया है l
उन्होंने संविधान का महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि देश में यदि महिलाओं को गरिमा पूर्ण स्थान समाज में दिया है तो वो मात्र देश का संविधान ही है ।


देश का संविधान ही एक मात्र ऐसा ग्रंथ है जिसमे महिला एवं पुरुष में किसी प्रकार का भेद नहीं किया गया है   हमारे देश का जितना नुकसान लैंगिक भेदभाव ने किया है, शायद ही किसी और कारण ने किया हो ।क्यूंकि लैंगिक भेदभाव राष्ट्र में सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक अंतर ले आता है जो देश को पीछे की ओर ढ़केलता है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए संविधान निर्माताओं ने विशेषकर डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने लैंगिग भेदभाव को संविधान में कहीं पर भी स्थान नहीं दिया है ।

उनका कहना भी था की “मैं किसी समुदाय की प्रगति उस समुदाय की महिलाओं की प्रगति के आधार पर मापता हूं।” इसीलिए संविधान में लिंग भेद का कोई स्थान नहीं है । यानि महिलाओं को भी वो सब अधिकार दिए है जो पुरुषों को दिए जिस दिन हमारे देश की हर महिला शक्ति भारत के संविधान को सुबह-शाम पढ़ना शुरू कर देगी उस दिन से उसे सभी प्रकार के शोषण से मुक्ति का रास्ता मिल जाएगा एवं उसे आगे बढ़ने और देश के निर्माण की भागीदारी से कोई नहीं रोक पाएगा ।


संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों का ही कमाल है की आज हर क्षेत्र में महिला शक्ति ने अपना लोहा मनवाया है ।उनका कहना है कि महिलाएं चाहे वो देश की राष्ट्रपति हो, प्रधानमंत्री, राज्यपाल, मुख्यमंत्री, मंत्री, न्यायाधीश, आई ए एस, आई पी एस, वैज्ञानिक, डॉक्टर, अंतरिक्ष, सेना ऐसा कोई क्षेत्र नहीं बचा है जहां महिलाओं ने संविधान द्वारा दिए अधिकारों से प्राप्त अवसर मिलने से यह साबित कर दिया कि कोई भी व्यक्ति किसी से कम नहीं होता है वो सब कर सकता है यदि उसे अवसर दिया जाए  ।


कहा भी गया है की यदि किसी देश को विकसित करना है तो लोगों को जगाना होगा और “लोगों को जगाने के लिये, महिलाओं का जागृत होना जरुरी है। एक बार जब वो अपना कदम उठा लेती है, परिवार आगे बढ़ता है, गाँव आगे बढ़ता है और राष्ट्र विकास की ओर उन्मुख होता है।“ भारत में, महिलाओं को सशक्त बनाने के लिये सबसे पहले समाज में उनके अधिकारों और मूल्यों को क्षति पहुंचाने वाले उन सभी राक्षसी सोच को मारना जरुरी है जैसे दहेज प्रथा, अशिक्षा, यौन हिंसा, असमानता, भ्रूण हत्या, महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा, बलात्कार, वैश्यावृति, मानव तस्करी और भी ऐसे ही दूसरे विषय। इस तरह की बुराईयों को मिटाने के लिये एवं भारत के संविधान में उल्लिखित समानता के अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए महिलाओं को सशक्त बनाना सबसे प्रभावशाली उपाय है । लैंगिक समानता को प्राथमिकता देने से ही पूरे भारत में महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा मिलेगा। महिला सशक्तिकरण के उच्च लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये इसे हर एक परिवार में बचपन से प्रचारित व प्रसारित करना होगा। केवल शिक्षित व्यक्ति ही अपने अधिकारों को जान सकता है इसलिए यह जरूरी है की हर बेटी को पढ़ने का मौका समाज को देना होगा I मजबूत समाज एवं राष्ट्र के लिए ये जरुरी है कि महिलाएँ शारीरिक, मानसिक और सामाजिक रुप से मजबूत हो। चूंकि एक बेहतर शिक्षा की शुरुआत बचपन से घर पर हो सकती है, महिलाओं के उत्थान के लिये एक स्वस्थ परिवार की जरुरत है जो राष्ट्र के सर्वांगीण विकास के लिये आवश्यक है। आज भी कई पिछड़े क्षेत्रों में माता-पिता की अशिक्षा, असुरक्षा और गरीबी की वजह से कम उम्र में विवाह हो जाता है और बच्चे भी जिससे महिलाओं के शारीरिक एवं मानसिक विकास प्रभावित होता है। महिलाओं को मजबूत बनाने के लिये महिलाओं के खिलाफ होने वाले दुर्व्यवहार, लैंगिक भेदभाव, सामाजिक अलगाव तथा हिंसा आदि को रोकने के लिये सरकार कई सारे कदम भी उठा रही है। फिर भी अभी बहुत किया जाना अपेक्षित है l

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