अवैध रिश्तों को फिर से घोषित करें अपराध, पैनल की केंद्र को सलाह…..
अवैध रिश्तों को फिर से अपराध घोषित कर देना चाहिए क्योंकि शादी की संस्था पवित्र है और इसकी रक्षा होनी चाहिए। सरकार को यह सलाह संसदीय पैनल ने भारतीय न्याय संहिता पर दी है। यह बिल केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह द्वारा सितंबर में पेश किया गया था। इस समिति ने अवैध रिश्तों के साथ-साथ होमोसेक्सुएलिटी को भी अपराध के दायरे में लाने की सिफारिश भी की है। साथ ही संसदीय समिति ने यह भी कहा है कि इसे जेंडर न्यूट्रल अपराध माना चाहिए।
यानी पुरुष और महिला दोनों को समान रूप से उत्तरदायी माना जाए। अगर पैनल की यह रिपोर्ट सरकार द्वारा स्वीकार कर ली जाती है तो 2018 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले से विरोधाभास पैदा होना तय है। 2018 में सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय बेंच ने अपने फैसले में कहा था कि अवैध रिश्ता अपराध नहीं हो सकता और इसे होना भी नहीं चाहिए।
न्याय प्रक्रिया में तेजी आने की है दलील
बता दें कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने सितंबर में क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम को मजबूत करने के लिए लोकसभा में तीन बिल पेश किए थे। इनके नाम भारतीय न्याय संहिता, भारतीय साक्ष्य विधेयक और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता है।
गृहमंत्री के मुताबिक इन कानूनों को लागू करने के बाद न्याय प्रकिया में तेजी आएगी। इसके बाद इस बिल को स्क्रूटनी के लिए भाजपा सांसद बृज लाल की अध्यक्षता वाली गृह मामलों की स्थायी समिति को भेजा गया था। हालांकि कांग्रेस सांसद पी चिदंबरम ने इस पर आपत्ति जताई थी। उन्होंने कहा था कि सरकार को किसी कपल की निजी जिंदगी में झांकने का कोई अधिकार नहीं है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा था कि यह तीनों बिल बड़े पैमाने पर वर्तमान कानूनों की कॉपी-पेस्ट हैं।
क्या था 2018 का फैसला
गौरतलब है कि साल 2018 में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने अवैध रिश्तों पर फैसला सुनाया था। बेंच ने कहा था कि एडल्टरी तलाक का आधार हो सकता है, लेकिन यह कोई क्रिमिनल ऑफेंस नहीं है।
कोर्ट ने कहा था कि यह 163 साल पुराना, औपनिवेशिक काल का कानून है जो पति पत्नी का स्वामी है के कॉन्सेप्ट को फॉलो करता है। सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून को पुराना, मनमाना और पितृसत्तात्मक कहा था। यही नहीं, कोर्ट द्वारा कहा गया था कि यह एक महिला की स्वायत्तता और गरिमा का उल्लंघन करता है।
2018 के फैसले से पहले क्या थी व्यवस्था
साल 2018 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पूर्व कानून कहता था कि अगर किसी पुरुष ने महिला के साथ उसके पति की मर्जी के बिना संबंध बनाए तो उसे पांच साल की जेल हो सकती है। हालांकि इस मामले में महिला को सजा नहीं होने का प्रावधान था। अब गृह मामलों की स्थायी समिति की रिपोर्ट चाहती है कि एडल्टरी कानून बदलकर अपराध के दायरे में वापस लाया जाए।
इसका मतलब है कि पुरुष और महिला दोनों को सजा का सामना करना पड़ेगा। स्थायी समिति ने यह भी कहा है कि बिना सहमति लिए सेक्सुअल एक्ट (जिसे आंशिक रूप से रद्द की गई धारा 377 में होमोसेक्सुएलिटी के रूप में परिभाषित किया गया था) भी फिर से अपराध के दायरे में आना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में भी धारा 377 को आंशिक रूप से खारिज किया था। पूर्व सीजेआई दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली बेंच ने इस प्रतिबंध को प्रतिबंध तर्कहीन, अक्षम्य और स्पष्ट रूप से मनमाना बताया था।