जशपुर

प्रदेश के एक आईएएस अधिकारी पर गिरी डीलिस्टिंग की गाज… और कई की अधिकारियों की नौकरियां खतरे में- गणेश राम भगत

(शशि कोन्हेर) : छत्तीसगढ़ में एक आईएएस अधिकारी के खिलाफ फर्जी जाति प्रमाण पत्र के जरिए नौकरी पाने का मामला प्रकाश में आया है. जाति प्रमाण पत्र समिति की रिपोर्ट के बाद अब अधिकारी की नौकरी खतरे में बताई जा रही है. हालांकि आईएएस अवार्ड होने के बाद अब राज्य सरकार नौकरी से बर्खास्त नहीं कर सकती, बल्कि केंद्र को प्रस्ताव भेजना होगा. आईएएस अधिकारी का नाम आनंद कुमार मसीह है. वे पुलिस जवाबदेही प्राधिकरण में सचिव हैं. आनंद कुमार मसीह का राज्य प्रशासनिक सेवा में चयन 1991 में हुआ था. जाति संबंधी विवाद के कारण उन्हें तीन साल देर से 2020 में आईएएस अवार्ड हुआ था.

इससे पहले 2007 में जाति प्रमाण पत्र की जांच के लिए बनी उच्च स्तरीय छानबीन समिति ने उरांव अनुसूचित जनजाति के प्रमाण पत्र को निरस्त कर दिया था. इसके खिलाफ मसीह ने हाईकोर्ट की शरण ली थी. हाईकोर्ट ने जुलाई 2018 में अपने निर्णय में उच्च स्तरीय समिति के जाति प्रमाण पत्र निरस्तीकरण के आदेश को अपास्त कर दिया था. हाईकोर्ट के निर्णय के मुताबिक उच्च स्तरीय छानबीन समिति ने मामले को विजिलेंस सेल को सौंप दिया. विजिलेंस सेल ने अपनी जांच के बाद जो रिपोर्ट सौंपी, उसमें मसीह के उरांव जनजाति के होने के बजाय ईसाई धर्म के होने की पुष्टि हुई है.


आनंद मसीह ने बताया कि उनके पिता का नाम ईशु प्रसाद मसीह है. उनके दादा बलदेव प्रसाद हैं. उनका मूल निवास जांजगीर चांपा जिले के चांपा में है. उनकी माता एमए हिंदी और पिता ने आयुर्वेद कॉलेज से पढ़ाई की है. मसीह से जब वंशावली मांगी गई तो उन्होंने पेश नहीं किया. इसके बाद विजिलेंस सेल ने चांपा के पटवारी हल्का नंबर-4 से गांव वालों की मौजूदगी में पंचनामा बनाया. इसमें यह पाया गया कि चांपा के मिसल बंदोबस्त में मसीह के पूर्वजों का नाम नहीं है. मसीह के पिता के सर्विस बुक में जाति के सामने क्रिश्चन लिखा मिला. लोगों ने अपने बयान में बताया कि मसीह आदिवासी परिवार के नहीं हैं. वे ईसाई धर्म को मानते हैं. सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा समय-समय पर जो आदेश जारी किया गया है, उसके मुताबिक फर्जी जाति प्रमाण पत्र की मदद से नौकरी पाने वालों को बर्खास्त किया जाएगा. हालांकि मसीह अब आईएएस हो गए हैं, इसलिए उनके संबंध में डीओपीटी से निर्णय होगा. राज्य सरकार की ओर से इस पर रिपोर्ट भेजनी होगी. जानकारों का कहना है कि फर्जी जाति प्रमाण पत्र के आधार पर नौकरी जा सकती है ।
विदित हो कि प्रदेश में इस प्रकार का यह पहला मामला नहीं है बल्कि जशपुर जिले के अधिकांश गांव के राजस्व अभिलेखों में जाति को लेकर उस प्रकार की विसंगति है जहां मिशल बंदोबस्त 1925 में जाति के कालम में क्रिस्तान लिखा है तो उसी व्यक्ति के वर्ष 1949 के अधिकार अभिलेख में जाति उरांव दर्शित है ।

अखिल भारतीय जनजाति सुरक्षा मंच अपने आंदोलन में पिछले 15 वर्षों से यह मुद्दा उठाता रहा है कि आखिर एक व्यक्ति के राजस्व अभिलेखों में दो जातियों का उल्लेख है तो किस आधार में। उस व्यक्ति के जाति का निर्धारण अनुसूचित जनजाति के रूप में किया जा रहा है ,इस सम्बंध में सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत जानकारी इकट्ठा कर मंच के राष्ट्रीय संयोजक गणेश राम भगत ने कांवर में भरकर दस्तावेज जशपुर और सरगुजा कलेक्टर को सौंपा गया था ।

इस सम्बंध में श्री भगत का कहना है कि धर्मांतरित लोगों को अनुसूचित जनजाति की सूची से बाहर करने की हमारी मांग वर्षों से चली आ रही है और वास्तव में ऐसे लोगों को आरक्षण का लाभ देना असंवैधानिक है हमारे आंदोलन का प्रभाव है कि श्री मसीह की जाति की जांच इस एंगल से की गई और उसे प्रमाणित माना है साथ ही उन्होंने कहा कि यह तो शुरुआत है अभी देखते जाइये कई रसूखदार लोग अभी इस जांच के दायरे में आएंगे ,और यही कारण है कि हमारे डिलिस्टिंग आंदोलन से मिशन भयभीत है क्योंकि उन्हें मालूम है कि इस प्रकार के जांच से उनकी दुकानदारी ठप हो जाएगी और वास्तव में यही तो डिलिस्टिंग है ।

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